पटना से जितेंद्र कुमार सिन्हा।
आज नवरात्रि की नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा हो रही है। मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को 18 प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान की थीं।
‘नवरात्र’ शब्द का अर्थ नौ विशेष रात्रियों से है। इस अवधि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ‘रात्रि’ को सिद्धि का प्रतीक माना गया है। प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की तुलना में अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होली, शिवरात्रि और नवरात्रि जैसे पर्व रात में मनाए जाते हैं।
यह मान्यता भी है कि नवरात्रि के समय मां दुर्गा धरती पर आती हैं और अपने भक्तों के बीच नौ दिन तक निवास करती हैं।
मां दुर्गा की उत्पत्ति देवताओं ने राक्षसों के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए की थी। महिषासुर और मां दुर्गा का युद्ध नौ दिन चला, और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर को मारकर विजय प्राप्त की। इसी कारण से नवरात्रि के नौवें दिन लोग अपनी आजीविका से जुड़े उपकरणों की पूजा करते हैं।
नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की विशेष पूजा की जाती है। मां दुर्गा के सभी रूप अद्वितीय हैं, और शारदीय नवरात्रि के बाद दशमी पर सिंदूर खेला, विसर्जन और रावण दहन होता है।
मां सिद्धिदात्री, जो सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली देवी हैं, की पूजा नवमी के दिन होती है। उनका महत्व तब शुरू हुआ जब ब्रह्मांड एक शून्य था और देवी कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसके बाद त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ—ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन), और शिव (विनाश)। भगवान शिव ने माँ कुष्मांडा से उन्हें पूर्णता प्रदान करने का अनुरोध किया, और मां सिद्धिदात्री ने भगवान शिव को 18 सिद्धियाँ प्रदान कीं। इनमें अष्ट सिद्धियाँ (8 प्रमुख सिद्धियाँ) और 10 माध्यमिक सिद्धियाँ शामिल हैं।
मां सिद्धिदात्री ने ब्रह्मा की प्रार्थना सुनकर शिव के आधे शरीर को महिला के रूप में बदल दिया, जिससे भगवान शिव अर्धनारीश्वर कहलाए। इसके बाद ब्रह्मा ने शेष ब्रह्मांड और जीवित प्राणियों का निर्माण किया। मां सिद्धिदात्री ने ब्रह्मांड के निर्माण में ब्रह्मा की सहायता की और शिव को पूर्णता प्रदान की।
मां सिद्धिदात्री को कमल या सिंह पर विराजमान दिखाया जाता है। उनकी चार भुजाओं में शंख, गदा, कमल और चक्र होते हैं। वे अपने भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।
मान्यता है कि उनकी पूजा करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है, जैसे अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।
हिमाचल के नंदा पर्वत पर उनका एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। उनकी उपासना करने से बाकी सभी देवी रूपों की पूजा भी स्वतः हो जाती है और अष्ट सिद्धि, नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र :
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।