भारत में शक संवत् के अनुसार वर्तमान वर्ष 1946 (2024 ईस्वी के अनुसार) है।
प्रत्येक तिथि के देवता, उनकी विशेषता व संज्ञा तथा पूजा विधियाँ भी अगल- अलग
पटना से स्थानीय संपादक जितेंद्र कुमार सिन्हा।
भारत में शक संवत् के अनुसार वर्तमान वर्ष 1946 (2024 ईस्वी के अनुसार) है। हिंदू कैलेंडर, जिसे पंचांग भी कहा जाता है, एक चंद्र-सौर कालगणना प्रणाली है। हिंदू नव वर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत भी कहते हैं।
शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष
मासिक पंचांग यानी हिंदू कैलेंडर में एक महीने को 30 दिनों में बांटा गया है। इस 30 दिनों को दो-दो पक्षों में बांटा जाता है। जिसमें 15 दिन के एक पक्ष को शुक्ल पक्ष कहते है। बाकी बचे 15 दिन को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। चंद्रमा की कलाओं के ज्यादा और कम होने को ही शुक्ल और कृष्ण पक्ष कहते हैं।
इसमें चंद्र दिवस, सौर दिवस, चंद्र महीना, सौर महीना, और खगोलीय घटनाओं के आधार पर समय निर्धारण शामिल है। इसमें चैत, बैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन जैसे 12 महीनों का विवरण होता है।
भारतीय संस्कृति और ज्योतिष में शुभ कार्यों जैसे निर्माण, व्यवसाय, विवाह आदि के लिए शुभ मुहूर्त का चयन अनिवार्य माना गया है। इसके साथ ही, तिथियों और उनके संबंधित देवताओं का भी ध्यान रखा जाता है।
तिथियों का महत्व और उनकी गणना
ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा के उदय और अस्त होने से तिथि का निर्धारण होता है। अमावस्या के बाद चंद्रमा के सूर्य से 12 अंश दूर जाने पर प्रतिपदा होती है, और चंद्रमा के 180 अंश तक पहुंचने पर पूर्णिमा आती है। तिथियां शुक्ल पक्ष (प्रतिपदा से पूर्णिमा) और कृष्ण पक्ष (प्रतिपदा से अमावस्या) में विभाजित होती हैं।
प्रत्येक तिथि का देवता होता है, जैसे:
- सूर्य – शिव
- चंद्र – दुर्गा
- मंगल – कार्तिकेय
- बुध – विष्णु
- गुरु – ब्रह्मा
- शुक्र – इंद्र
- शनि – काल
शुभ कार्यों से पहले तिथि और उनके स्वामी देवता का ध्यान रखा जाता है।
तिथियों की विशेषताएँ और संज्ञाएँ
तिथियों को पांच प्रकार की संज्ञाओं में बांटा गया है:
- नंदा: प्रतिपदा से पंचमी (शुभ कार्यों के लिए)
- भद्रा: षष्ठी से दशमी (यात्रा और कला से जुड़े कार्यों के लिए)
- जया: एकादशी से पूर्णिमा (युद्ध और साहसिक कार्यों के लिए)
- रिक्ता: चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी (मंगल कार्यों के लिए अशुभ)
- पूर्णा: पूर्णिमा (विवाह, राजगद्दी आदि के लिए शुभ)
तिथियों के अनुसार पूजा और लाभ
प्रत्येक तिथि के देवता और पूजा के लाभ इस प्रकार हैं:
- प्रतिपदा: अग्निदेव की पूजा से यश और समृद्धि।
- द्वितीया: ब्रह्मा की पूजा से पुण्य और दान का महत्व।
- तृतीया: गौरी-कुबेर की पूजा से सौभाग्य में वृद्धि।
- चतुर्थी: गणेश पूजा से विघ्नों का नाश।
- पंचमी: नाग देवता की पूजा से भय और कालसर्प दोष का निवारण।
- षष्ठी: कार्तिकेय की पूजा से ज्ञान और समृद्धि।
- सप्तमी: सूर्य की पूजा से स्वास्थ्य लाभ।
- अष्टमी: रुद्र (शिव) की पूजा से रोगों का नाश।
- नवमी: दुर्गा पूजा से यश में वृद्धि।
- दशमी: यमराज की पूजा से बाधाओं का निवारण।
- एकादशी: विश्वेदेवा की पूजा से भूमि लाभ।
- द्वादशी: विष्णु पूजा से सुख की प्राप्ति।
- त्रयोदशी: कामदेव की पूजा से वैवाहिक सुख।
- चतुर्दशी: शिव पूजा से मनोकामनाओं की पूर्ति।
- पूर्णिमा: चंद्रमा की पूजा से सुख और समृद्धि।
- अमावस्या: पितरों के श्राद्ध और दान से शांति।
निष्कर्ष
हिंदू पंचांग न केवल खगोलीय घटनाओं को समझने का माध्यम है, बल्कि जीवन के हर महत्वपूर्ण पहलू में मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। शुभ तिथियों और उनके देवताओं के प्रति श्रद्धा और नियमों का पालन जीवन में सुख और सफलता लाने में सहायक माना जाता है।
भारत में चल रहा शक संवत् वर्ष
भारत में शक संवत् के अनुसार वर्तमान वर्ष 1946 (2024 ईस्वी के अनुसार) है। शक संवत् का आरंभ 78 ईस्वी में हुआ था और इसे भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर माना गया है। इसका उपयोग पंचांगों के साथ-साथ सरकारी उद्देश्यों में भी होता है।
नेपाल में हिन्दू कैलेंडर
नेपाल में विक्रम संवत् का उपयोग होता है, जो भारत के विक्रम संवत् से मेल खाता है। वर्तमान में नेपाल का विक्रम संवत् 2081 (2024 ईस्वी के अनुसार) है। नेपाल में इसे आधिकारिक कैलेंडर के रूप में मान्यता प्राप्त है और धार्मिक अनुष्ठानों में इसका प्रमुखता से उपयोग किया जाता है। विक्रमी कैलेंडर का नाम राजा विक्रमादित्य के नाम पर रखा गया है और यह 57 ईसा पूर्व से शुरू होता है।
तुलनात्मक
दोनों कैलेंडरों में महीनों के नाम और गणना लगभग समान होती है, लेकिन कालक्रम और उपयोग के उद्देश्य में अंतर है।
भारत में कई प्रतिष्ठित प्रकाशक हिंदू पंचांग कैलेंडर प्रकाशित करते हैं। वाराणसी के कैलेंडर विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं क्योंकि वहाँ ज्योतिष और सनातन धर्म परंपराओं का प्राचीन केंद्र रहा है। यहां कुछ प्रमुख प्रकाशकों के नाम दिए गए हैं:
1. श्री काशी विश्वनाथ पंचांग (वाराणसी)
- यह पंचांग वाराणसी से प्रकाशित होता है और उत्तर भारत में अत्यधिक प्रचलित है।
2. विजय प्रकाशन मंदिर (वाराणसी)
- यह प्रकाशन वाराणसी के धार्मिक और ज्योतिषीय साहित्य के लिए प्रसिद्ध है।
3. गोला दीनानाथ पंचांग (वाराणसी)
- वाराणसी का यह पंचांग भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय है।
4. चौखंबा प्रकाशन (वाराणसी)
- यह प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथों और पंचांगों का प्रकाशन करता है।
5. लहरी प्रकाशन (वाराणसी)
- पंचांग और अन्य ज्योतिषीय किताबें प्रकाशित करता है।
6. कैलाश पंचांग (पुणे)
- महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में लोकप्रिय।
7. गुजराती पंचांग (अहमदाबाद)
- गुजरात क्षेत्र में प्रचलित है।
8. तमिल पंचांग (तमिलनाडु)
- तमिलनाडु में हिंदू पंचांग का प्रमुख स्रोत।
9. श्री गोवर्धन पंचांग (मथुरा)
- मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में प्रसिद्ध है।
वाराणसी का कैलेंडर इसलिए अधिक देखा जाता है क्योंकि यह उत्तर भारत के समय और धार्मिक गतिविधियों के अनुसार होता है। अधिकांश धार्मिक पर्व और शुभ मुहूर्त इसी पंचांग के आधार पर तय किए जाते हैं।