प्रस्तावना : विविधताओं से भरे देश में संवेदनशील मुद्दा
भारत एक बहुजातीय, बहुधार्मिक और सांस्कृतिक विविधता से भरा देश है। यहां जनगणना जैसे विषय पर विशेष सतर्कता की आवश्यकता होती है, खासकर जब वह जातीय आधार पर हो। हाल ही में भारतीय जन क्रांति दल (डेमोक्रेटिक) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. राकेश दत्त मिश्र ने जातीय जनगणना का कड़ा विरोध किया है।

क्या है जातीय जनगणना?
जातीय जनगणना का अर्थ है – देश की आबादी का वर्गीकरण जातियों के आधार पर करना। स्वतंत्रता के बाद से अब तक केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जानकारी ली जाती रही है। अब कुछ राजनीतिक दल और राज्य सरकारें ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की गिनती की मांग कर रही हैं।
डॉ. मिश्र का विरोध : एकता के खिलाफ साजिश
डॉ. राकेश मिश्र ने कहा कि जातीय जनगणना हिंदू समाज को बांटने और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने की एक साजिश है। उन्होंने कहा, “जो पार्टी पहले पाकिस्तान और देश की सुरक्षा की बातें करती थी, वही अब समाज को जातियों में तोड़ रही है।”
ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाना?
डॉ. मिश्र ने सवाल उठाया – क्या महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों से ज्यादा जरूरी जातीय जनगणना है? उन्होंने कहा कि जनता की मूल समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए यह जातिगत राजनीति की जा रही है।
संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ
डॉ. मिश्र ने कहा कि भारत के संविधान निर्माता जातिवाद समाप्त करना चाहते थे। डॉ. अंबेडकर ने आरक्षण की व्यवस्था सामाजिक न्याय के लिए की थी, न कि राजनीतिक जातिवाद के लिए। जातीय जनगणना संविधान की भावना के विपरीत है।
विभाजन, वैमनस्य और ध्रुवीकरण का खतरा
जातीय जनगणना से समाज में वर्गीकरण बढ़ेगा, जिससे जातिगत वैमनस्य और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बल मिलेगा। इससे सामाजिक एकता को सीधा नुकसान पहुंचेगा।
समाज को जागरूक करने की अपील
डॉ. मिश्र ने युवाओं, संत समाज, बुद्धिजीवियों और राष्ट्रभक्तों से इस षड्यंत्र के खिलाफ मुखर होने की अपील की। उन्होंने कहा, “जो समाज एकजुट नहीं रहता, उसकी दिशा और दशा दोनों बिखर जाती हैं।”
सहअस्तित्व की सोच ज़रूरी
डॉ. मिश्र ने सुझाव दिया कि यदि समाज के वंचितों को मदद करनी है, तो आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर नीतियां बनें। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति को जनगणना का आधार बनाया जाए, न कि जाति।
राजनीतिक हथियार नहीं बने जनगणना
उन्होंने चेतावनी दी कि जातीय जनगणना को सामाजिक न्याय के नाम पर राजनीतिक औजार नहीं बनने देना चाहिए। यह केवल विरोध नहीं, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी है जिसे समय रहते समझना होगा।
समापन : क्या फिर बंटवारे की ओर?
डॉ. मिश्र ने कहा कि आज समय है सोचने का – क्या हम फिर से एक और बंटवारे की ओर बढ़ रहे हैं? क्या वोट की राजनीति समाज को जातियों में बांट रही है? यदि अब भी नहीं चेते, तो आने वाला कल समाज के लिए घातक हो सकता है।
Caste Census: A Conspiracy to Break National Unity – Dr. Rakesh
जातिवार जनगणना को मिली मंजूरी: एक महत्वपूर्ण निर्णय
PIB 30 अप्रैल 2025
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बड़ा फैसला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति ने एक अहम फैसला लिया। अब आगामी जनगणना में जातिवार गणना को भी शामिल किया जाएगा।
देश के हित में लिया गया निर्णय
सरकार का कहना है कि यह निर्णय राष्ट्र और समाज के समग्र हितों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। इससे नीतियों में अधिक सटीकता और न्याय सुनिश्चित किया जा सकेगा।
संविधान में जनगणना का स्थान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के अनुसार, जनगणना केंद्र सरकार का विषय है। यह विषय सातवीं अनुसूची की संघ सूची के 69वें स्थान पर आता है। यानि जनगणना करवाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है।
राज्यों द्वारा किए गए सर्वेक्षण
हाल के वर्षों में कुछ राज्यों ने जातिवार सर्वेक्षण किए हैं। लेकिन इनमें पारदर्शिता और उद्देश्य स्पष्ट नहीं थे। कुछ सर्वेक्षण राजनीतिक मकसदों से प्रेरित थे, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति बनी।
एक समान और पारदर्शी प्रक्रिया की दिशा में कदम
सरकार का मानना है कि अलग-अलग राज्यों द्वारा कराए गए जातिगत सर्वेक्षणों के बजाय एक एकीकृत और पारदर्शी जातिवार गणना बेहतर होगी। इससे समाज में विश्वास और संतुलन बना रहेगा और राजनीतिक दवाब से आंकड़े प्रभावित नहीं होंगे।
समापन विचार
केंद्रीय मंत्रिमंडल का यह निर्णय न केवल एक प्रशासनिक कदम है, बल्कि एक सामाजिक सन्देश भी है – कि सभी वर्गों की जानकारी समान रूप से दर्ज की जाए ताकि नीति-निर्माण में संतुलन और न्याय कायम हो सके।