जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 5 अप्रैल, 2025 ::
नवरात्रि का महत्व और पौराणिक पृष्ठभूमि
‘नवरात्र’ शब्द का अर्थ होता है नौ विशेष रात्रियाँ। इस अवधि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने रात्रि को विशेष महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, शिवरात्रि और नवरात्र जैसे पर्व रात में मनाए जाते हैं। मान्यता है कि इन दिनों मां दुर्गा पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों के साथ नौ दिनों तक निवास करती हैं।

मां दुर्गा की उत्पत्ति देवताओं ने राक्षसों के अत्याचार से रक्षा के लिए की थी। महिषासुर से नौ दिन युद्ध के बाद दसवें दिन मां दुर्गा ने उसे पराजित कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारण नवरात्रि के नौवें दिन को विशेष माना जाता है और उस दिन आजीविका व कार्य उपकरणों की पूजा की जाती है।
मां सिद्धिदात्री : नवरात्रि की नौवीं देवी
नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है। मां दुर्गा की यह नवमी शक्ति सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं। इनकी पूजा से अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मांड की रचना और अर्धनारीश्वर की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब सृष्टि शून्य और अंधकार से भरी थी, तब मां कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की। फिर उन्होंने त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सृष्टि की। भगवान शिव ने उनसे पूर्णता की याचना की। तब मां कुष्मांडा ने एक देवी की रचना की, जिन्होंने शिव को 18 प्रकार की सिद्धियां प्रदान कीं। यह देवी थीं मां सिद्धिदात्री।
ब्रह्मा को सृष्टि रचने के लिए स्त्री-पुरुष की आवश्यकता थी। जब वह ऐसा नहीं कर सके, तब उन्होंने मां सिद्धिदात्री से प्रार्थना की। मां ने भगवान शिव के आधे शरीर को स्त्री रूप में बदल दिया, जिससे अर्धनारीश्वर की उत्पत्ति हुई। इसके बाद ब्रह्मा ने जीवों की रचना की। इस प्रकार मां सिद्धिदात्री ने ब्रह्मांड की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप और सिद्धियाँ
मां सिद्धिदात्री को कमल या सिंह पर विराजमान दिखाया जाता है। उनके चार हाथ होते हैं जिनमें शंख, गदा, कमल और चक्र होते हैं। वे भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान देती हैं और अज्ञानता को दूर करती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, मां सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधकों को अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व। भगवान शिव ने भी इन्हीं सिद्धियों को प्राप्त कर अर्धनारीश्वर रूप धारण किया था।
हिमाचल प्रदेश के नन्दापर्वत पर मां सिद्धिदात्री का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह भी माना जाता है कि इनकी आराधना से दुर्गा के सभी रूपों की पूजा स्वतः हो जाती है और साधक को विवेक, बुद्धि, अष्ट सिद्धि और नव निधि प्राप्त होती है।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
निष्कर्ष:
नवरात्रि की नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की उपासना से न केवल आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है, बल्कि यह भी माना जाता है कि उनकी कृपा से ही भगवान शिव अर्धनारीश्वर रूप में जाने जाते हैं। यह दिन पूर्णता, शक्ति और सृष्टि की दिव्यता का प्रतीक है।