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भारत सरकार का प्रमुख कर्तव्य पूरे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। देश की सशस्त्र सेनाओं की सर्वोच्च कमान राष्ट्रपति के पास होती है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र सरकार (मंत्रिमंडल) के पास होती है। यह कार्य रक्षा मंत्रालय के ज़रिए पूरा किया जाता है।
1776 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शुरू हुआ सैन्य विभाग, 1895 में बंगाल, मद्रास और बंबई की प्रेसीडेंसी सेनाओं को मिलाकर एकीकृत भारतीय सेना बनाई गयी। 1938 में इसे नया नाम मिला: रक्षा विभाग।फिर 1947 में बना रक्षा मंत्रालय। जो अब एक केबिनेट मंत्री के अधीन है।
रक्षा मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य
रक्षा मंत्रालय तीनों सेनाओं को नीति, साधन और संसाधन प्रदान करता है ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर सकें। इसके प्रमुख रक्षा मंत्री होते हैं, और मंत्रालय का कार्य है:
- नीति बनाना और लागू करना
- सेना मुख्यालयों, उत्पादन इकाइयों और अनुसंधान संगठनों को दिशा-निर्देश देना
- सीमित संसाधनों में कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करना
रक्षा मंत्रालय के प्रमुख विभाग
रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत पांच प्रमुख विभाग काम करते हैं:
1. रक्षा विभाग
यह तीनों सेनाओं (थल, जल, वायु) और उनके समन्वय से जुड़े कार्य देखता है। यह संसद, विदेशी सहयोग, बजट और नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाता है।
2. सैन्य कार्य विभाग (DMA)
इस विभाग के प्रमुख चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) होते हैं। इसका उद्देश्य तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय और संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना है।
3. रक्षा उत्पादन विभाग
यह विभाग आयुध निर्माण, रक्षा सामग्री के स्वदेशीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र की रक्षा उत्पादन इकाइयों की निगरानी करता है।
4. रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग (DRDO)
इस विभाग का कार्य रक्षा तकनीक का अनुसंधान, डिज़ाइन और विकास है, ताकि सेनाओं को आधुनिक और आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
5. भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग
यह विभाग रिटायर्ड सैनिकों के पुनर्वास, कल्याण योजनाओं और पेंशन संबंधी मामलों की देखभाल करता है।
इतिहास: कहां से शुरू हुआ रक्षा तंत्र
- 1776 में कोलकाता में ईस्ट इंडिया कंपनी ने सैन्य विभाग बनाया था।
- 1883 में सैन्य विभाग को सचिवालय के चार प्रमुख विभागों में शामिल किया गया।
- 1895 में बंगाल, मद्रास और बंबई की प्रेसीडेंसी सेनाओं को मिलाकर एकीकृत भारतीय सेना बनाई गई।
- 1906 में सैन्य विभाग को सेना विभाग और सैन्य आपूर्ति विभाग में बाँटा गया।
- 1938 में इसे नया नाम मिला: रक्षा विभाग।
- 1947, आज़ादी के बाद, यह रक्षा मंत्रालय बन गया, जो अब एक केबिनेट मंत्री के अधीन है।
स्वतंत्र भारत में प्रमुख बदलाव
- 1955 में सेना प्रमुखों को “कमांडर-इन-चीफ” की बजाय “सेनाध्यक्ष” कहा जाने लगा।
- 1962 में रक्षा उत्पादन विभाग,
- 1965 में रक्षा पूर्ति विभाग बनाए गए।
- बाद में इन्हें मिलाकर रक्षा उत्पादन और पूर्ति विभाग बना, जो अब सिर्फ रक्षा उत्पादन विभाग है।
- 1980 में रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग,
- और 2004 में भूतपूर्व सैनिक कल्याण विभाग की स्थापना की गई।
रक्षा सचिव की भूमिका
रक्षा सचिव, रक्षा विभाग के प्रमुख होते हैं और वे पूरे मंत्रालय के सभी विभागों में समन्वय बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाते हैं।
निष्कर्ष:
भारत का रक्षा मंत्रालय देश की सुरक्षा का आधार है। इसमें न केवल सेनाओं का संचालन होता है, बल्कि अनुसंधान, उत्पादन, और पूर्व सैनिकों का कल्याण भी शामिल है। इसका इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है, लेकिन समय के साथ यह और अधिक संगठित, सशक्त और आधुनिक बनता गया है।
Photo Caption रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रक्षा मंत्रालय की अर्द्धवार्षिक हिंदी पत्रिका ‘सशक्त भारत’ के प्रथम संस्करण का विमोचन किया। Photo-PIB
Here is the English version of the article, rewritten in simple and informative language with headings and sub-headings:
भारतीय सेना व रक्षा मंत्रालय की ऐतिहासिक विकास यात्रा (1776 से 2004 तक) को अच्छी तरह बताया गया है, लेकिन उसमें ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) का कोई उल्लेख नहीं है।
कारण यह है:
ISRO, रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत नहीं आता।
ISRO एक स्वतंत्र अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी है, जो भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) के तहत काम करती है और इसका सीधा नियंत्रण प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के अधीन होता है।
ISRO का दायरा क्या है?
- इसका मुख्य कार्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए उपग्रह, रॉकेट, अंतरिक्ष मिशन आदि का विकास करना है।
- हालाँकि कुछ मामलों में ISRO की तकनीकें, जैसे सैटेलाइट इमेजिंग, रडार, और संचार तकनीक, भारत की रक्षा प्रणाली को सहयोग करती हैं — लेकिन ISRO स्वयं सैन्य संगठन नहीं है।
रक्षा क्षेत्र में अंतरिक्ष से जुड़े विभाग कौन से हैं?
रक्षा के दृष्टिकोण से भारत ने “Defence Space Agency (DSA)” और “Defence Space Research Organisation (DSRO)” जैसे संगठन बनाए हैं, जो सैन्य उपयोग के लिए अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने में लगे हैं — ये रक्षा मंत्रालय के अधीन आते हैं, जबकि ISRO मुख्य रूप से शोध व विकास करता है।
यदि आप चाहें तो मैं ISRO और रक्षा मंत्रालय के बीच सहयोग पर भी एक संक्षिप्त लेख तैयार कर सकता हूँ। क्या आपको वह चाहिए?
यह रहा ISRO और रक्षा मंत्रालय के बीच सहयोग पर एक संक्षिप्त फीचर लेख, जिसे आप न्यूज़ या सामान्य ज्ञान लेख के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं:
ISRO और रक्षा मंत्रालय: विज्ञान और सुरक्षा का संगम
भूमिका
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मुख्य उद्देश्य देश के लिए वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक विकास के लिए अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग करना है। वहीं, भारत का रक्षा मंत्रालय देश की सीमाओं की सुरक्षा और सैन्य शक्ति को मज़बूत करने के लिए उत्तरदायी है। दोनों की जिम्मेदारियाँ अलग-अलग हैं, लेकिन 21वीं सदी में अंतरिक्ष और सुरक्षा एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं।
सीमित दूरी, गहरा सहयोग
ISRO सीधे रक्षा मंत्रालय के अधीन नहीं आता — वह प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत कार्य करता है। फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ ISRO और रक्षा मंत्रालय के बीच रणनीतिक सहयोग देखा गया है:
- रडार और सैटेलाइट आधारित निगरानी (Surveillance):
ISRO द्वारा विकसित उपग्रह जैसे Cartosat और RISAT (Radar Imaging Satellite) भारत की निगरानी क्षमताओं को बढ़ाते हैं। ये सीमाओं पर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए रक्षा बलों को जरूरी जानकारी देते हैं। - संचार उपग्रह (GSAT सीरीज़):
ISRO द्वारा विकसित संचार उपग्रहों की सहायता से सेना के तीनों अंगों (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) को दूरस्थ क्षेत्रों में तेज और सुरक्षित संचार व्यवस्था प्राप्त होती है। - Anti-Satellite (ASAT) परीक्षण:
27 मार्च 2019 को भारत ने “मिशन शक्ति” के तहत एक उपग्रह-नाशक मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इस मिशन में ISRO की तकनीकी सहायता और DRDO (Defence Research and Development Organisation) की सैन्य विशेषज्ञता का तालमेल देखने को मिला। - गगनयान और रक्षा प्रयोग:
ISRO के मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान में भारतीय वायुसेना के पायलट प्रशिक्षण पा रहे हैं, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष-आधारित सैन्य क्षमताएं भी विकसित की जा सकें।
भविष्य की संभावनाएँ
जैसे-जैसे अंतरिक्ष युद्ध (Space Warfare) की अवधारणा बढ़ रही है, भारत ने भी Defence Space Agency (DSA) और Defence Space Research Organisation (DSRO) की स्थापना की है, जो ISRO के साथ सामरिक रूप से तालमेल बनाकर अंतरिक्ष आधारित रक्षा प्रणालियों का विकास कर रही हैं।
निष्कर्ष
हालाँकि ISRO का मूल उद्देश्य शांतिपूर्ण अंतरिक्ष प्रयोग है, फिर भी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति इसकी तकनीकी भूमिका बेहद अहम है। रक्षा मंत्रालय और ISRO का सहयोग आने वाले वर्षों में और भी रणनीतिक गहराई हासिल करेगा — जहाँ विज्ञान और सुरक्षा मिलकर एक सुरक्षित भारत की नींव मजबूत करेंगे।
Ministry of Defence: The Backbone of India’s National Security
Responsibility for National Security
The Government of India is responsible for ensuring the security of the entire country. The President of India holds the supreme command of the armed forces, while the Cabinet is responsible for national security. This responsibility is carried out through the Ministry of Defence (MoD).
Main Role of the Ministry of Defence
The Ministry of Defence provides policy support, resources, and guidance to the three armed forces (Army, Navy, Air Force). The Defence Minister heads the ministry. Its key roles include:
- Formulating and implementing defence-related policies
- Communicating with military headquarters and defence-related organisations
- Ensuring the implementation of government-approved plans within available resources
Major Departments Under the Ministry of Defence
The MoD functions through five key departments, each with specific responsibilities:
1. Department of Defence
It handles matters related to the three services, integrated defence staff (IDS), and inter-service coordination. It also manages defence policy, budget, parliamentary affairs, and international defence cooperation.
2. Department of Military Affairs (DMA)
Headed by the Chief of Defence Staff (CDS), this department promotes jointness among the three forces and ensures optimal use of resources.
3. Department of Defence Production
This department oversees arms manufacturing, indigenization of defence equipment, and control of public-sector defence units.
4. Defence Research and Development Department
Led by a Secretary, this department advises on scientific aspects of military equipment and works on research, design, and development of military systems.
5. Department of Ex-Servicemen Welfare
This department is responsible for the rehabilitation, welfare, and pensions of ex-servicemen.
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Historical Background: How It All Began
- In 1776, the East India Company set up a Military Department in Kolkata to manage military orders.
- By 1883, it was reorganized into one of four main departments in the Company’s secretariat.
- In 1895, the separate Presidency armies (Bengal, Bombay, Madras) were unified into a single Indian Army.
- In 1906, the Military Department was replaced by two separate departments: the Army Department and Military Supply Department.
- In 1938, the Army Department was renamed the Department of Defence.
- After independence in 1947, it became the Ministry of Defence under a Cabinet Minister.
Key Developments After Independence
- In 1955, the heads of the three forces were officially named Chief of the Army Staff, Naval Staff, and Air Staff.
- In 1962, the Department of Defence Production was created.
- In 1965, the Department of Defence Supplies was formed, later merged into the Department of Defence Production.
- In 1980, the Defence R&D Department (DRDO) was established.
- In 2004, the Department of Ex-Servicemen Welfare was created.
Role of the Defence Secretary
The Defence Secretary heads the Department of Defence and is also responsible for coordinating the activities of all five departments within the ministry.
Conclusion:
India’s Ministry of Defence is the cornerstone of the country’s security system. From policy-making to advanced research, production to veteran welfare, the ministry handles a wide range of responsibilities that ensure a strong and self-reliant defence system for the nation.