रिपोर्ट — जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 30 अक्टूबर
राजनीतिक सरगर्मी और वादों की बारिश-
बिहार में 2025 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक गतिविधियों का नया अध्याय लेकर आया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों जनता के बीच वादों की लंबी सूची लेकर उतरे हैं — शिक्षा, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, किसानों के अधिकार, आरक्षण और बिजली जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर कई बड़े वादे किए जा रहे हैं।

हर दल का दावा है कि उसके पास “बदलाव” और “विकास” का स्पष्ट खाका है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये वादे बिहार की आर्थिक और प्रशासनिक सीमाओं में संभव हैं?
हर परिवार को सरकारी नौकरी — क्या यह संभव है?
सबसे बड़ा और चर्चा में रहा वादा है — प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी।
बिहार में लगभग 2.3 करोड़ परिवार हैं, जबकि कुल सरकारी पद मात्र 4.7 लाख हैं। इनमें से लगभग 3.8 लाख भरे हुए हैं।
इस हिसाब से अधिकतम 1 लाख नई नौकरियाँ दी जा सकती हैं, जबकि वादा लगभग 2 करोड़ नई नौकरियों का है — जो आर्थिक रूप से असंभव है।
सालाना औसत वेतन और भत्तों का खर्च प्रति कर्मचारी 5 लाख रुपए है। यदि 2 करोड़ लोगों को नौकरी दी जाए तो वार्षिक खर्च ₹100 लाख करोड़ होगा, जो केंद्र के पूरे बजट से दो गुना से अधिक है।
“माय बहिन मान योजना” — महिलाओं को ₹2,500 मासिक भत्ता
यह योजना महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के नाम पर प्रस्तावित है।
बिहार में लगभग 6 करोड़ महिलाएँ हैं। यदि प्रत्येक को ₹2,500 महीना दिया जाए, तो मासिक खर्च ₹15,000 करोड़ और वार्षिक खर्च ₹1.8 लाख करोड़ होगा। जबकि राज्य का बजट ₹2.7 लाख करोड़ है।
इस स्थिति में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे पर गंभीर असर पड़ेगा।
यह योजना सामाजिक रूप से सराहनीय है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से टिकाऊ नहीं मानी जा सकती।
पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली-
OPS बहाल करने का वादा कई राज्यों में चर्चा में है।
अगर बिहार में यह लागू होती है तो आगामी 20 वर्षों में पेंशन व्यय ₹80,000 करोड़ प्रति वर्ष तक पहुँच सकता है।
राजनीतिक रूप से लोकप्रिय होने के बावजूद यह निर्णय राज्य की वित्तीय स्थिति पर भारी पड़ेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि संशोधित NPS में सुधार ही बेहतर विकल्प है।
हर परिवार को 200 यूनिट मुफ्त बिजली-
राज्य में 2.2 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। 200 यूनिट बिजली की औसतन कीमत ₹1,500 होती है।
यदि यह मुफ्त दी जाए तो वार्षिक खर्च ₹40,000 करोड़ तक पहुँच जाएगा।
बिजली कंपनियाँ पहले से घाटे में हैं, और इतनी बड़ी सब्सिडी से राज्य के बजट पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
कम अवधि में यह योजना लोकप्रिय हो सकती है, मगर दीर्घकालिक रूप से राजकोषीय असंतुलन बढ़ा सकती है।
जन स्वास्थ्य सुरक्षा योजना — ₹25 लाख का बीमा कवच-
प्रत्येक परिवार को ₹25 लाख के बीमा का वादा किया गया है।
यदि 2.3 करोड़ परिवारों को यह सुविधा दी जाए, तो बीमा प्रीमियम के रूप में सालाना ₹25,000–₹27,000 करोड़ का खर्च आ सकता है।
यह आर्थिक रूप से तभी संभव है जब इसे केवल गरीब या कमजोर वर्गों तक सीमित रखा जाए।
सभी फसलों पर MSP और APMC मंडी की बहाली-
MSP नीति केंद्र सरकार के अधीन है और राज्य इसे स्वतंत्र रूप से लागू नहीं कर सकता।
सभी फसलों की MSP पर खरीद के लिए बिहार को ₹30,000–₹50,000 करोड़ का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा।
यह वादा आंशिक रूप से ही संभव है।
आरक्षण को 75% तक बढ़ाने का दावा-
संविधान के अनुसार आरक्षण सीमा 50% तय है।
कुछ राज्यों को नौवीं अनुसूची में विशेष छूट मिली है, पर बिहार को ऐसा करने के लिए केंद्र की स्वीकृति चाहिए।
यह वादा फिलहाल संवैधानिक रूप से संदिग्ध और राजनीतिक रूप से प्रतीकात्मक है।
वक्फ एक्ट समाप्त करने और अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़े वादे-
वक्फ एक्ट 1995 केंद्र सरकार का कानून है। राज्य इसे समाप्त नहीं कर सकता, केवल नियमों में संशोधन कर सकता है।
इस वादे को संवैधानिक रूप से अव्यवहारिक माना जा रहा है, हालांकि यह राजनीतिक विमर्श को प्रभावित कर सकता है।
बोधगया मंदिर प्रबंधन का अधिकार सिर्फ बौद्धों को देने का वादा-
बोधगया मंदिर का संचालन “Bodh Gaya Temple Act, 1949” के अंतर्गत मिश्रित समिति द्वारा किया जाता है।
अगर इसे बदला गया तो यह धार्मिक भेदभाव के अंतर्गत आएगा और संवैधानिक विवाद खड़ा कर सकता है।
कानूनी रूप से इस वादे का क्रियान्वयन लगभग असंभव है।
OBC एक्ट लाने का दावा-
SC-ST एक्ट की तर्ज पर OBC एक्ट लाने का वादा किया गया है।
यह कानूनी रूप से संभव नहीं है क्योंकि जातिगत उत्पीड़न से संबंधित प्रावधान पहले से मौजूद हैं।
राज्य स्तर पर नया एक्ट पारित करना संवैधानिक रूप से जटिल होगा।
आर्थिक वास्तविकता बनाम राजनीतिक प्रतिस्पर्धा-
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अधिकांश वादे जनभावनाओं को केंद्र में रखे गए हैं।
राज्य की अर्थव्यवस्था मुख्यतः केंद्र की सहायता और कृषि पर निर्भर है।
5 लाख करोड़ से अधिक के इन वादों से बिहार का वित्तीय संतुलन डगमगा सकता है।
राजनीतिक वादों की यह होड़ विकास की वास्तविकता से कहीं दूर दिखाई देती है।
Patna Bihar Assembly Elections 2025 Promises — How feasible is it
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