क्या है ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विश्व के अन्य देशों में व्यवस्था?
पटना के स्थानीय संपादक जितेंद्र कुमार सिन्हा।
केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र में “One Nation, One electrician” से जुड़े दो विधेयक पेश किए। इनमें पहला विधेयक पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने से संबंधित है, जबकि दूसरा केंद्र शासित प्रदेशों के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन का प्रस्ताव करता है।
हालांकि, इन विधेयकों को संविधान संशोधन के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत नहीं मिल पाया, जिसके कारण ये पारित नहीं हो सके। विधेयकों को अब संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को समीक्षा के लिए भेजा गया है। समिति का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के सांसद पीपी चौधरी करेंगे। इसमें लोकसभा के 27 और राज्यसभा के 12 सदस्य शामिल हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1951 से 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। लेकिन 1968-69 में कुछ विधानसभाओं के समयपूर्व भंग होने और चौथी लोकसभा के भंग होने के कारण यह परंपरा समाप्त हो गई। इसके बाद से देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
किन देशों में लागू है यह व्यवस्था?
विश्व के कई देशों में चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, जिनमें दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, जर्मनी, बेल्जियम, स्पेन और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में संसदीय और स्थानीय चुनाव एक साथ होते हैं, जिससे समय और संसाधनों की बचत होती है।
संभावित प्रभाव
यदि यह विधेयक पारित होता है, तो 2034 से भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। लेकिन इसे लागू करने के लिए कई राज्यों के विधानसभा कार्यकाल में कटौती करनी होगी। उदाहरण के लिए, दिल्ली में फरवरी 2025, बिहार में नवंबर 2025 और तमिलनाडु में अप्रैल 2026 में चुनाव होने हैं। “एक देश, एक चुनाव” लागू होने पर इनका कार्यकाल प्रभावित होगा।
फायदे और चुनौतियां
फायदे:
- समय और धन की बचत: बार-बार चुनाव कराने में लगने वाला खर्च कम होगा।
- स्थिरता: आचार संहिता बार-बार लागू नहीं होने से विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे।
- प्रभावी प्रशासन: चुनावी गतिविधियों के दौरान प्रशासनिक और सुरक्षा तंत्र पर पड़ने वाला बोझ कम होगा।
- दीर्घकालिक योजना: सरकारें अल्पकालिक लाभ के बजाय दीर्घकालिक योजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
चुनौतियां:
- लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल में सामंजस्य स्थापित करना बड़ा मुद्दा है।
- राजनीतिक दलों और राज्यों के बीच सहमति बनाना कठिन होगा।
- भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में इतनी बड़ी चुनाव प्रक्रिया का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण होगा।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना
2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से “एक देश, एक चुनाव” भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकताओं में शामिल है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इसके पक्षधर थे।
कुल मिलाकर, “एक देश, एक चुनाव” न केवल समय और संसाधनों की बचत करेगा, बल्कि देश में राजनीतिक स्थिरता लाने और विकास कार्यों को गति देने का भी माध्यम बन सकता है। हालांकि, इसे लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ व्यापक सहमति भी आवश्यक होगी।
लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव कराने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत ने एक दैनिक समाचारपत्र को बताया है कि, लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव कराने के लिए मौजूदा व्यवस्था में कई बदलाव करने होंगे। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए अतिरिक्त ईवीएम मशीनों, सुरक्षा बलों, और चुनावी कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।
ईवीएम की संख्या में भारी वृद्धि आवश्यक
रावत के अनुसार, वर्तमान में ईवीएम तैयार करने वाली सरकारी कंपनियां लगभग 10 लाख मशीनें तैयार करने में सक्षम हैं। लेकिन एक साथ चुनाव आयोजित करने के लिए उन्हें 25 लाख अतिरिक्त ईवीएम मशीनें तैयार करनी होंगी।
सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती
एक साथ चुनाव कराने पर सुरक्षा बलों की मांग भी बढ़ेगी। हालांकि, इसे अधिक चरणों में चुनाव आयोजित करके प्रबंधित किया जा सकता है, जिससे स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी
वर्तमान में 12 लाख मतदान केंद्रों पर चुनाव आयोजित करने के लिए लगभग 70 लाख कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। लेकिन एक साथ चुनाव कराने पर हर मतदान केंद्र पर एक अतिरिक्त पोलिंग अधिकारी की तैनाती करनी होगी, जिससे लगभग 12 लाख अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत पड़ेगी।
ओ.पी. रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना एक बड़ी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होगी, जिसके लिए पर्याप्त संसाधन और योजना की आवश्यकता है।
समान चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति को सितंबर 2023 में सौंपी थी रिपोर्ट
राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को एकसाथ कराने के लिए व्यापक सिफारिशें
समान चुनाव पर गठित उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) ने भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु को अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपी। यह 18,626 पन्नों की रिपोर्ट 2 सितंबर, 2023 को समिति के गठन के बाद 191 दिनों की गहन चर्चा, शोध और परामर्श का परिणाम है। समिति की अध्यक्षता भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने की।
समिति में प्रमुख सदस्यों के रूप में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह, राज्यसभा में पूर्व विपक्ष नेता श्री गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री एन.के. सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता श्री हरीश साल्वे, और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त श्री संजय कोठारी शामिल थे। कानून और न्याय मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल हुए, और समिति के सचिव डॉ. नितिन चंद्रा थे।
व्यापक परामर्श और प्रमुख निष्कर्ष
समिति ने विभिन्न हितधारकों से विचार-विमर्श कर उनके सुझाव लिए:
- राजनीतिक दल: 47 राजनीतिक दलों ने अपनी राय प्रस्तुत की, जिनमें से 32 दलों ने समान चुनाव का समर्थन किया।
- जनता की राय: सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रकाशित एक सार्वजनिक नोटिस के जवाब में 21,558 प्रतिक्रियाएं मिलीं, जिनमें 80% ने समान चुनाव का समर्थन किया।
- कानूनी विशेषज्ञ: समिति ने चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, 12 उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, चार पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों और भारत के चुनाव आयोग के साथ चर्चा की।
- आर्थिक हितधारक: सीआईआई, फिक्की, एसोचैम जैसे प्रमुख व्यापार संगठनों और प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने बताया कि बिखरे हुए चुनावों से मुद्रास्फीति बढ़ती है, आर्थिक विकास धीमा होता है, और सार्वजनिक व्यय व सामाजिक समरसता प्रभावित होती है।
प्रमुख सिफारिशें
- दो चरणों में क्रियान्वयन:
- पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए समान चुनाव कराए जाएंगे।
- दूसरे चरण में नगर निकायों और पंचायतों के चुनावों को लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों के साथ समन्वित किया जाएगा, ताकि वे राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के 100 दिनों के भीतर आयोजित हो सकें।
- एकीकृत मतदाता सूची और पहचान पत्र:
- राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय तीनों स्तरों के चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र (EPIC) का उपयोग किया जाए।
- संविधान में न्यूनतम संशोधन:
- सिफारिशें मौजूदा संवैधानिक ढांचे के अनुरूप तैयार की गई हैं, जिससे संविधान में केवल न्यूनतम संशोधन की आवश्यकता होगी।
प्रभाव और निष्कर्ष
समिति ने निष्कर्ष दिया कि समान चुनाव से पारदर्शिता, समावेशिता और मतदाताओं का विश्वास काफी बढ़ेगा। यह सुधार आर्थिक कुशलता को बढ़ावा देगा, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करेगा, सामाजिक समरसता को प्रोत्साहित करेगा और विकास एजेंडे को गति देगा।
समान चुनाव के लिए मिला व्यापक समर्थन भारत की लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करेगा और “इंडिया यानी भारत” की प्रगति और एकता के लक्ष्यों को पूरा करेगा।