पटना से स्थानीय संपादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा
किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर फिर से दिल्ली कूच किया है। इस दौरान उन्हें बॉर्डर पर ही रोका गया, जिससे दिल्ली-एनसीआर में हालात बिगड़ते नजर आ रहे हैं।
आंदोलन से आम जन को समस्याएँ-
आम लोग इस आंदोलन के कारण होने वाली असुविधाओं से भयभीत हैं। मरीज, छात्र, राहगीर, और दैनिक कर्मी आंदोलनों के चलते सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
मांगें और समाधान
किसानों की प्रमुख मांगें:
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी।
- खेतीहर मजदूरों के लिए पेंशन।
- कृषि ऋण माफी और भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की बहाली।
हालांकि, केंद्र सरकार का कहना है कि वह पिछले 10 वर्षों से MSP में वृद्धि कर रही है और किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। कृषि बजट में वृद्धि, फसल बीमा योजना और विविधीकरण की योजनाएं लागू की गई हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप और आंदोलन की दशा
इस आंदोलन में राजनीतिक दलों के झंडे दिखने लगे हैं। किसानों के दलित प्रेरणा स्थल पर अवरोधक तोड़ने की घटना ने प्रशासन की मुश्किलें बढ़ा दीं। हालांकि, इस बार संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) और हरियाणा के किसान संगठनों ने आंदोलन से दूरी बना ली है।
पिछले अनुभवों से सबक
2020 में तीन कृषि कानूनों के विरोध में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ था, जिसमें लाल किले जैसी जगहों पर अशांति देखने को मिली थी। किसानों का बार-बार दिल्ली कूच करना एक गंभीर प्रश्न उठाता है—क्या उनकी समस्याओं का समाधान समय पर नहीं हो सकता?
सरकार और किसानों के बीच संवाद की कमी
किसानों का आरोप है कि सरकार फरवरी के बाद से बातचीत के लिए आगे नहीं आई। जबकि संवाद से ही समाधान निकाला जा सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 सदस्यीय समिति बनाई है, लेकिन यह कितनी प्रभावी होगी, यह समय बताएगा।
आगे की राह
किसानों की समस्याओं का समाधान निकालना जरूरी है। यह आंदोलन केवल किसानों को ही नहीं, बल्कि आम जनता और देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डालता है। केंद्र और राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से एक दीर्घकालिक समाधान की दिशा में कार्य करना चाहिए।
Farmers’ Protest: Challenges for the Public and the Path to Solutions