जितेन्द्र कुमार सिन्हा, पटना, 13 सितम्बर
बच्चों को सुलाने, खाना खाने के लिए मनाने, या किसी काम के लिए कभी लोरी सुनाई जाती है, तो कभी डरावनी कहानियाँ। बच्चे प्यार भरी लोरी सुनकर सो जाते हैं या डरावनी कहानी सुनकर खाना खाने और काम करने पर मजबूर हो जाते हैं। इसलिए फिल्म “शोले” में भी कहा गया है, “सो जा नहीं तो गब्बर सिंह आ जाएगा।”
इस प्रकार की घटनाओं का सामना कभी हम जैसे बच्चे भी किया करते थे। लगभग 60 साल पहले, जब मैं 6-7 साल का था और अपने गांव (पटना जिले का एक छोटा गांव) में रहता था, एक गर्मी की दोपहर मैंने चार बजे सोया और शाम के सात बजे जागा। बाहर अंधेरा हो चुका था। मेरे घर के सामने एक बड़ा चबूतरा था, जहाँ गाँव के कुछ बुजुर्ग बैठे थे। चबूतरे से कुछ दूरी पर हमारा बगीचा था, जिसमें एक कोने में बांसवारी और बाकी तीन कोनों पर बड़े-बड़े पीपल के पेड़ थे। आज भी वो पीपल के पेड़ खड़े हैं। उस समय बिजली नहीं थी, लेकिन दूर एक किलोमीटर पर जलते-बुझते हुई बल्ब जैसी रोशनी दिख रही थी।
चबूतरे पर बैठे बुजुर्गों में से एक ने बताया कि वो बल्ब नहीं, बल्कि राक्षस है। वह जब मुँह खोलता है तो आग निकलती है, और मुँह बंद करता है तो आग बुझ जाती है। थोड़ी देर बाद वो रोशनी बगीचे की तरफ बढ़ने लगी और फिर बांसवारी में गुम हो गई। फिर अचानक वह राक्षस बांसवारी से निकलकर पीपल के पेड़ की तरफ बढ़ने लगा और आगे बढ़ते हुए पगडंडी की ओर चला गया। पूरी घटना के दौरान अंधेरा होने के कारण सब कुछ बल्ब जैसा ही प्रतीत हो रहा था।
एक बुजुर्ग ने गांव के एक आदमी की कहानी सुनाई। चार दिन पहले जब वह दूसरे गाँव से रात में सामान लेकर लौट रहा था, तो उसे एक अजीब आदमी मिला, जिसके बाल लंबे और उलझे हुए थे। उस आदमी ने पूछा, “तुम चढ़ोगे या चढ़ाओगे?” गांव का वह व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट था, उसने सोचा कि यह कमजोर आदमी है, इसलिए उसने कहा, “चढ़ाओगे।” फिर वो आदमी अचानक उसके कंधे पर चढ़ गया और उसे पूरी रात गाँव में घुमाता रहा। जब सुबह की हल्की रोशनी हुई, तब जाकर वह आदमी उसे एक कुएं के पास छोड़कर चला गया। बुजुर्गों ने बताया कि वह आदमी राक्षस था। अगर वह उस पर चढ़ता, तो राक्षस उसे मार देता।
यह कहानी सुनने में काल्पनिक लग सकती है, लेकिन यह घटना पूरी तरह सच्ची है, जिसे खुली आँखों से देखा और सुना गया है।