spot_img
Friday, April 18, 2025
spot_img
HomeBreakingप्रयागराज "महाकुंभ" की ब्रह्म शाश्वतता?

प्रयागराज “महाकुंभ” की ब्रह्म शाश्वतता?

-

लेखक: अवधेश झा

परिचय

भारत में अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ सनातन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। अर्ध कुंभ छह वर्षों में, पूर्ण कुंभ बारह वर्षों में और महाकुंभ 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है। महाकुंभ केवल प्रयागराज में होता है और इसे अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक अवसर माना जाता है।

महाकुंभ का खगोलीय संयोग

महाकुंभ का आयोजन तब होता है जब वृहस्पति, सूर्य, और चंद्रमा कुंभ राशि में होते हैं। यह खगोलीय स्थिति शुभता का प्रतीक मानी जाती है, जिसमें नकारात्मकता का नाश और सकारात्मकता का उदय होता है। यह समय आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कुंभ का अर्थ और महत्व

“कुंभ” का शाब्दिक अर्थ “घड़ा” है, जो हमारे भीतर के ब्रह्म तत्व और आत्मा का प्रतीक है। प्रयागराज में कुंभ के आयोजन को ब्रह्म स्वरूप का दर्शन माना जाता है। यह आत्मा और परमात्मा के मिलन का अवसर है। कुंभ स्नान और कल्पवास आत्मचिंतन और आत्मज्ञान के लिए श्रेष्ठ साधन हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण

महाकुंभ के महत्व को समझाते हुए जस्टिस राजेंद्र प्रसाद ने कहा, “महाकुंभ सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह हमें आत्मा के ब्रह्म स्वरूप को जानने और संसार के मोह से मुक्ति पाने का अवसर देता है। शास्त्रों में कहा गया है, ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात ‘मैं ब्रह्म हूं।’ यह विचार जीवन को उच्चतम स्थिति तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करता है।”

खगोलीय दृष्टि से महाकुंभ

ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का स्वामी शनि है, जो स्थिरता और न्याय के देवता माने जाते हैं। सूर्य, जो आत्मा और तेज के प्रतीक हैं, जब कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तो यह समय आत्मिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ हो जाता है। वृहस्पति धर्म और अध्यात्म के प्रतीक हैं और चंद्रमा भक्ति और मन के प्रतिनिधि हैं। इन सबका संगम महाकुंभ को दिव्यता प्रदान करता है।

त्रिवेणी संगम का महत्व

प्रयागराज में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम ब्रह्म का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह स्थान त्रिभुवन के संगम का प्रतीक है और इसे ब्रह्म की शाश्वतता का केंद्र माना गया है।

निष्कर्ष

महाकुंभ का आयोजन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और आत्मज्ञान प्राप्त करने का अद्भुत अवसर है। यह हमें अपनी आंतरिक शक्ति और ब्रह्म स्वरूप का अनुभव कराता है। इसलिए, महाकुंभ में स्नान और कल्पवास को केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का मार्ग माना गया है।

“गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरू।”
हरि: ॐ!

Related articles

Bihar

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
spot_img

Latest posts