पटना से जितेन्द्र कुमार सिन्हा।
शारदीय नवरात्र नौ दिन का त्योहार है और प्रत्येक दिन मां दुर्गा के अलग- अलग रूप की स्तुति की जाती है। मां का प्रत्येक रूप अद्भुत और अद्वितीय शक्ति है। नवरात्र के पहले तीन दिन देवी दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी और चन्द्रघंटा की पूजा होती है। फिर अगले तीन दिन माता की कोमल रूप का पूजा यानि मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता और मां कात्यायनी की पूजा होती है। उसके बाद अंतिम तीन दिन मां कालरात्रि, मां महागौरी और मां सिद्धिदात्री की दिव्य रूप की पूजा होती है।
शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। मां ब्रह्मचारिणी का रूप तपस्विनी का है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है, तप का आचरण करने वाली। इनका स्वरूप अत्यंत तेजमय और भव्य है। मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं और श्वेत वस्त्र पहनती है। इनकी पूजा के दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है।
मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म ली थी और देवर्षि नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर जीवन व्यतीत की थी और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह की थी। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रहते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट भी सही थी। वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण मां ब्रह्मचारिणी का शरीर एकदम क्षीण हो गया था, उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज दी “उ…मां…” तब से मां ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी हो गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी मां ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे थे।
ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा था “ देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की है। तुम्हारे इस कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही हैं। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति के रूप में प्राप्त अवश्य होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ, शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।” इसके बाद माता घर लौट आई और कुछ दिनों बाद उनका विवाह महादेव शिव के साथ हो गया।
मां ब्रह्मचारिणी का रूप काफी शांत और मोहक है। माना जाता है कि जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। मां का यह स्वरूप ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर या शक्कर से बनी चीजों का भोग चढ़ाया जाता है। शक्कर से कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर से बनी खीर का भोग लगा जाता हैं। भोग में साबूदाना का खीर का भी भोग लगाया जाता हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सुबह उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनने के बाद मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान कर और प्रार्थना कर, पंचामृत स्नान कराया जाता है। फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित कर मां को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाया जाता है। इसके मां ब्रह्मचारिणी के इस मंत्र के साथ पूजा करना चाहिए :-
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
नवरात्र में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना जाता है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।
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नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा और उनके तपस्वी रूप की महिमा है।मां ब्रह्मचारिणी के जन्म, उनकी कठिन तपस्या, और भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने की कथा विस्तार से बताई कही व सुनी जातीहै। साथ ही, लेखक ने माॉं ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, भोग, और भक्तों को उनकी आराधना से प्राप्त होने वाले फलों का भी उल्लेख किया है।