पटना से जितेन्द्र कुमार सिन्हा।
आश्विन माह में मनाए जाने वाले शारदीय नवरात्र 03 अक्टूबर से शुरू हो गए हैं। इस दौरान मां दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन माता के एक विशेष रूप की आराधना का विधान है। पहले चार दिनों में मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और कुष्मांडा की पूजा हो चुकी है, और आज पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगी।
शारदीय नवरात्र एक महोत्सव है जो मां दुर्गा की भक्ति और साधना का प्रतीक है। नवरात्र के ये नौ दिन पूरे हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। मान्यता है कि इन दिनों में सच्चे मन से की गई पूजा से मां दुर्गा भक्तों को दोनों हाथों से आशीर्वाद देती हैं।
पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की माता हैं। कार्तिकेय को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है, और इसी कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कंदमाता कहा जाता है। स्कंदमाता चार भुजाओं वाली देवी हैं, जिनकी गोद में बाल रूप स्कंद विराजमान होते हैं। देवी का रंग शुभ्र होता है, और वे कमल पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। उनका वाहन सिंह है और वे सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी पूजा करने से साधक को अलौकिक तेज और योगक्षेम की प्राप्ति होती है, जिससे मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।
मां स्कंदमाता की पूजा से संतान सुख, बुद्धि, और चेतना में वृद्धि होती है। कहा जाता है कि कालिदास ने रघुवंशम और मेघदूत जैसी महान रचनाएं मां स्कंदमाता की कृपा से ही की थीं।
मां स्कंदमाता का स्वरूप क्रोध और पुत्र मोह के प्रतीकों का अद्भुत संगम है। शेर उनकी सवारी है, जो क्रोध का प्रतीक है, और उनकी गोद में बाल कार्तिकेय हैं, जो पुत्र मोह का प्रतीक हैं। यह रूप हमें सिखाता है कि भक्ति के मार्ग पर चलते हुए क्रोध और मोह पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
मां स्कंदमाता को पार्वती या गौरी भी कहा जाता है। भगवान स्कंद देवताओं के सेनापति थे और मां दुर्गा का यह स्वरूप विशेष रूप से उनकी माता के रूप में पूजनीय है। माना जाता है कि जिस साधक पर स्कंदमाता की कृपा होती है, उसके मस्तिष्क में अद्वितीय ज्ञान का उदय होता है। उनकी पूजा का तरीका अन्य देवी स्वरूपों की पूजा जैसा ही होता है।
कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से साथ ही बाल रूप स्कंद कुमार की भी पूजा पूरी मानी जाती है। इस दिन नारंगी वस्त्र धारण करने चाहिए और देवी को केले का भोग अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा खीर और सूखे मेवे का भी भोग लगाया जाता है, जिससे साधक के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
भारत में मां स्कंदमाता के दो प्रमुख मंदिर हैं—एक वाराणसी के जगतपुरा क्षेत्र में बागेश्वरी देवी मंदिर में स्थित है, जिसका उल्लेख काशी खंड और देवी पुराण में मिलता है। एक समय देवासुर नामक राक्षस ने वाराणसी में संतों और आम लोगों पर अत्याचार किया था, जिसे मां स्कंदमाता ने नष्ट किया और तब से यहां उनकी पूजा की जाती है। दूसरा प्रमुख मंदिर विदिशा, मध्य प्रदेश में स्थित है, जिसका निर्माण 1998 में हुआ था।
नवरात्र के दौरान उपवास में केवल गंगा जल और दूध का सेवन उत्तम माना जाता है, साथ ही फलाहार भी किया जा सकता है। यदि केवल फलाहार संभव न हो, तो अरवा चावल, सेंधा नमक, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जा सकता है। मां स्कंदमाता का मंत्र है:
या देवी सर्वभतेषु स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
पूजा मंत्र:
‘ॐ स्कन्दमात्रै नमः।।