पटना से स्थानीय संपादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा।
बिहार का गठन और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
बिहार का अस्तित्व भारत के मानचित्र पर 1 अप्रैल 1912 को आया, जब यह बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य बना। हालांकि, दिल्ली सरकार ने 12 दिसंबर 1911 को बिहार, उड़ीसा और छोटानागपुर को बंगाल से अलग करने की घोषणा की थी। इसकी आधिकारिक अधिसूचना 22 मार्च 1912 को जारी हुई, इसलिए हर वर्ष 22 मार्च को बिहार दिवस मनाया जाता है। इस साल बिहार 113 साल का हो जाएगा।

बिहार न केवल भारत का बल्कि पूरे विश्व का पहला गणराज्य (Republic) स्थापित करने वाला प्रदेश रहा है। प्राचीन काल में यहां कई गणराज्य थे, जिनमें वैशालीगणराज्य सबसे प्रमुख था। वैशाली को विश्व का प्रथम लोकतांत्रिक गणराज्य माना जाता है, जो लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व अस्तित्व में था।
बिहार का ऐतिहासिक महत्व-
पलासी के युद्ध से पहले बिहार एक स्वतंत्र सूबा था, लेकिन बक्सर की लड़ाई के बाद यह बंगाल, बिहार और उड़ीसा के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में आ गया। 1886 में इसे बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा बनाया गया, जो 1905 तक बना रहा। 1905 में बंगाल प्रेसिडेंसी से पूर्वी बंगाल अलग हुआ और 1912 में बिहार भी बंगाल से अलग होकर उड़ीसा के साथ स्वतंत्र प्रांत बना। बाद में, 1 अप्रैल 1936 को उड़ीसा बिहार से अलग हुआ और 2000 में झारखंड भी बिहार से अलग होकर नया राज्य बना।
बिहार का प्राचीन गौरव-
वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में बिहार को “बौद्ध बिहार” कहा गया है। यह राज्य चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक और शेरशाह सूरी जैसे शासकों की जन्म और कर्मभूमि रहा है। बिहार की भूमि ने गौतम बुद्ध और वर्धमान महावीर को ज्ञान प्रदान किया।
बिहार ने भारत को कई महापुरुष दिए हैं, जिनमें महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, चाणक्य, आर्यभट्ट, समुद्रगुप्त, विद्यापति, गुरु गोबिंद सिंह, बाबू कुंवर सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक, सच्चिदानंद सिन्हा और ब्रजकिशोर प्रसाद प्रमुख हैं।
बिहार की भौगोलिक विशेषताएँ-
बिहार का नाम बौद्ध विहारों के ‘विहार’ शब्द से लिया गया है। यह उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखंड से घिरा हुआ है। इसकी राजधानी पटना गंगा नदी के किनारे बसी है। बिहार अपने मखानों और मधुबनी चित्रकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता बिहार की राजकुमारी थीं। वे विदेह साम्राज्य (जिसमें वर्तमान के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मधुबनी और दरभंगा शामिल हैं) के राजा जनक की पुत्री हैं। किंवदंतियों के अनुसार, उनका जन्म पुनौरा में हुआ था, जो सीतामढ़ी के पास स्थित है।
वाल्मीकिनगर, जो पश्चिम चंपारण जिले में स्थित है, को रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली माना जाता है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की भूमिका
1857 के भारतीय विद्रोह में बाबू कुंवर सिंह ने नेतृत्व किया था। 80 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और छापामार युद्ध की तकनीक से अंग्रेजों को हैरान कर दिया।
इतिहास बताता है कि ईसा पूर्व छठी सदी में वैशाली विश्व का पहला गणराज्य था। यह वज्जी महाजनपद की राजधानी थी और यहाँ लिच्छवी गणराज्य का शासन था।
बिहार की पत्रकारिता का इतिहास
बिहार में पत्रकारिता का इतिहास भी समृद्ध रहा है।
- वर्ष 1853 में आरा से उर्दू समाचार पत्र “नूर उल अनवर” प्रकाशित हुआ।
- वर्ष 1872 में “बिहार बंधु” हिंदी समाचार पत्र का प्रकाशन हुआ।
- वर्ष 1874 में पटना से अंग्रेजी समाचार पत्र “बिहार हेराल्ड” की शुरुआत हुई।
बिहार के प्रतीक चिन्ह और पर्यावरण संरक्षण
बिहार राज्य के प्रतीक चिन्ह इस प्रकार हैं:
- राज्य वृक्ष – पीपल
- राज्य पुष्प – गेंदा
- राज्य पशु – बैल
- राज्य पक्षी – गोरैया
बिहार में हर वर्ष 20 मार्च को “गोरैया दिवस” मनाया जाता है, जिससे इस छोटे पक्षी के संरक्षण को बढ़ावा मिले।
निष्कर्ष
बिहार न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपराओं और ज्ञान की भूमि भी है। यहां के महान व्यक्तित्वों, ऐतिहासिक स्थलों और सांस्कृतिक धरोहरों ने इसे एक विशिष्ट पहचान दी है। बिहार दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि बिहार की गौरवशाली परंपरा और विकास का प्रतीक है।
बिहार : ज्ञान और विज्ञान की धरती
1. बिहार – विश्व को प्रजातंत्र सिखाने वाला प्रदेश
बिहार न केवल भारत का बल्कि पूरे विश्व का पहला गणराज्य (Republic) स्थापित करने वाला प्रदेश रहा है। प्राचीन काल में यहां कई गणराज्य थे, जिनमें वैशाली गणराज्य सबसे प्रमुख था। वैशाली को विश्व का प्रथम लोकतांत्रिक गणराज्य माना जाता है, जो लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व अस्तित्व में था।
वैशाली गणराज्य की विशेषताएँ
- वैशाली वज्जि महाजनपद की राजधानी थी।
- यहाँ लिच्छवी वंश के लोग लोकतांत्रिक शासन प्रणाली अपनाते थे।
- इस गणराज्य में एक सभा होती थी, जिसमें राजा को जनता चुनती थी और उसकी शक्ति सीमित होती थी।
- शासन में आम जनता की भागीदारी होती थी, जिसे “संघ” कहा जाता था।
- वैशाली में महिलाओं को भी सामाजिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त थे।
यह गणराज्य भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी के समय भी सक्रिय था। महावीर स्वामी का जन्म वैशाली के कुंडग्राम में हुआ था। इस गणराज्य की शासन प्रणाली आज के लोकतंत्र का आधार बनी।
2. बिहार : ज्ञान की पावन स्थली
बिहार की भूमि न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। इस प्रदेश में कई महापुरुषों को ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिनका प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा।
बिहार में ज्ञान प्राप्त करने वाले प्रमुख व्यक्तित्व
1. भगवान गौतम बुद्ध
- गौतम बुद्ध को बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था।
- उन्होंने अष्टांगिक मार्ग और चार आर्य सत्य का उपदेश दिया, जो बौद्ध धर्म का आधार बने।
- बौद्ध धर्म की स्थापना के बाद बिहार बौद्ध शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बन गया।
2. भगवान महावीर
- जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के कुंडग्राम में हुआ था।
- उन्हें बिहार में ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य का उपदेश दिया।
- बिहार जैन धर्म के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का केंद्र बना।
3. गुरु गोविंद सिंह
- सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी, का जन्म पटना साहिब में हुआ था।
- उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और सिख धर्म को एक नई दिशा दी।
- पटना स्थित तख्त श्री हरमंदिर साहिब सिखों के पाँच तख्तों में से एक है।
4. चाणक्य (कौटिल्य)
- प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के महान विद्वान और राजनीतिज्ञ चाणक्य ने बिहार की भूमि पर ही अपनी शिक्षा ग्रहण की थी।
- उन्होंने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की, जो आज भी राजनीति और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है।
5. आर्यभट्ट
- महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट का जन्म बिहार में हुआ था।
- उन्होंने शून्य (0) की खोज की और π (पाई) का सटीक मान निकाला।
- उनकी रचनाएँ “आर्यभटीय” और “सिद्धांत शिरोमणि” खगोलशास्त्र के क्षेत्र में आज भी प्रासंगिक हैं।
3. बिहार के प्राचीन विश्वविद्यालय
बिहार प्राचीन काल से ही शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ कई विश्वविद्यालय थे, जहाँ दुनियाभर से विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने आते थे।
1. नालंदा विश्वविद्यालय (5वीं शताब्दी – 12वीं शताब्दी)
- नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त (450 ई.) ने की थी।
- यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था, जहाँ 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 से अधिक शिक्षक रहते थे।
- यहाँ बौद्ध धर्म, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, व्याकरण और दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।
- नालंदा में चीन, कोरिया, तिब्बत, जापान, मंगोलिया, श्रीलंका और अन्य देशों के छात्र आते थे।
- 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।
2. विक्रमशिला विश्वविद्यालय (8वीं शताब्दी – 12वीं शताब्दी)
- विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल (8वीं शताब्दी) ने की थी।
- यह विश्वविद्यालय तंत्र, बौद्ध धर्म, योग, आयुर्वेद और खगोलशास्त्र के लिए प्रसिद्ध था।
- यह नालंदा के समान ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय था।
- इसे भी बख्तियार खिलजी ने नष्ट कर दिया।
3. ओदंतपुरी विश्वविद्यालय (8वीं शताब्दी – 12वीं शताब्दी)
- इस विश्वविद्यालय की स्थापना पाल वंश के शासकों ने की थी।
- यह बिहार शरीफ (नालंदा जिले) में स्थित था।
- यहाँ भी बौद्ध धर्म और तंत्र विद्या की पढ़ाई होती थी।
- इसे भी बख्तियार खिलजी ने तबाह कर दिया।
4. मिथिला विद्यापीठ (दर्शन और न्यायशास्त्र का केंद्र)
- यह शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था, जहाँ न्याय, व्याकरण, वेद और खगोलशास्त्र की पढ़ाई होती थी।
- यहाँ से कई प्रसिद्ध विद्वान हुए, जिनमें गंगेश उपाध्याय और मंडन मिश्र प्रमुख थे।
- अद्वैत वेदांत के महान विद्वान आदि शंकराचार्य ने यहाँ मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ किया था।
निष्कर्ष
बिहार ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को ज्ञान, विज्ञान और लोकतंत्र का उपदेश दिया है। यहाँ से उत्पन्न गणराज्य प्रणाली ने आधुनिक लोकतंत्र की नींव रखी। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों ने बिहार को वैश्विक शिक्षा का केंद्र बनाया। महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरु गोविंद सिंह, चाणक्य और आर्यभट्ट जैसे महान व्यक्तित्वों ने इस भूमि को गौरवान्वित किया।
बिहार का यह गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरित करता है कि हम अपने अतीत को जानें और शिक्षा तथा ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ें।