पटना। जितेन्द्र कुमार सिन्हा।
मुंगेर के वृद्ध के नेत्रदान से हुई शुरुआत, पहली बार एम्स में हुआ कॉर्निया ट्रांसप्लांट
पटना एम्स में अब नेत्र बैंक का संचालन शुरू हो गया है। यह राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि पहले बिहार में नेत्रदान और कॉर्निया प्रतिरोपण (ट्रांसप्लांट) की सुविधा नहीं थी।
इस पहल की शुरुआत तब हुई जब मुंगेर जिले के एक वृद्ध की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने नेत्रदान का noble निर्णय लिया। यह पटना एम्स में हुआ पहला कॉर्निया दान था।
एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. सौरभ वार्ष्णेय ने बताया कि यह नेत्र बैंक एल वी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (LVPEI), हैदराबाद के सहयोग से शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि इस नेत्र बैंक में अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे अब बिहार में भी अंधेपन से पीड़ित लोगों को नया जीवन मिल सकेगा।
नेत्रदान (Eye Donation) क्या है?
नेत्रदान का मतलब होता है मृत्यु के बाद अपनी आंखों (विशेष रूप से कॉर्निया) को दान देना, ताकि अंधेपन से पीड़ित लोगों को दोबारा देखने की रोशनी मिल सके। यह एक महान और जीवन बदल देने वाला दान है।
कॉर्निया क्या होता है?
कॉर्निया आंख की सबसे बाहरी पारदर्शी परत होती है, जो आंखों में रोशनी के प्रवेश का रास्ता होती है। अगर यह परत खराब हो जाए या धुंधली हो जाए, तो व्यक्ति अंधा हो सकता है। इसलिए कॉर्निया ट्रांसप्लांट (Cornea Transplant) से यह समस्या ठीक की जा सकती है।
नेत्रदान कब किया जा सकता है?
- मृत्यु के बाद 6 से 8 घंटे के भीतर कॉर्निया को निकाला जा सकता है।
- इस दौरान शरीर को ठंडा और आंखों को बंद रखना ज़रूरी होता है ताकि कॉर्निया खराब न हो।
- उम्र की कोई सीमा नहीं होती – कोई भी व्यक्ति, चाहे वह बूढ़ा हो या युवा, अपनी आंखें दान कर सकता है।
आई बैंक (Eye Bank) क्या होता है?
आई बैंक एक ऐसी जगह होती है, जहां दान की गई आंखों को सुरक्षित रखा जाता है, उनकी जांच की जाती है, और ज़रूरतमंद मरीजों को ट्रांसप्लांट के लिए दिया जाता है।
आई बैंक में मुख्य काम होते हैं:
- आंखों को सुरक्षित रखना
- कॉर्निया की जांच करना
- जरूरतमंद मरीजों को कॉर्निया उपलब्ध कराना
- नेत्रदान को बढ़ावा देना और लोगों को जागरूक करना
बिहार में नेत्रदान की स्थिति
कुछ समय पहले तक बिहार में कोई आई बैंक नहीं था। अगर कोई नेत्रदान करना चाहता था, तो कॉर्निया को रांची (झारखंड की राजधानी) भेजना पड़ता था, जहाँ आई बैंक था। इससे समय और संसाधनों की परेशानी होती थी, और कई बार नेत्रदान संभव नहीं हो पाता था।
अब खुशखबरी ये है कि पटना एम्स (AIIMS Patna) में एक अत्याधुनिक नेत्र बैंक शुरू हो गया है।
पहला सफल नेत्रदान – मुंगेर की कहानी:
- मुंगेर जिले के एक वृद्ध की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने कॉर्निया दान करने का निर्णय लिया।
- यह पटना एम्स में हुआ पहला नेत्रदान था।
- एम्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. सौरभ वार्ष्णेय ने बताया कि यह नेत्र बैंक एल वी प्रसाद आई इंस्टीट्यूट (L.V. Prasad Eye Institute), हैदराबाद के सहयोग से शुरू हुआ है।
नेत्रदान कैसे करें?
- किसी आई बैंक या अस्पताल में रजिस्ट्रेशन करवाएं।
- मृत्युपरांत परिजनों को तुरंत आई बैंक को सूचना देनी होती है।
- टीम 6 घंटे के अंदर कॉर्निया निकाल लेती है।
नेत्रदान के बारे में कुछ जरूरी बातें:
- आंखें दान करने से चेहरा खराब नहीं होता।
- केवल कॉर्निया निकाला जाता है, न कि पूरी आंख।
- दान की गई आंखें किसी गरीब, जरूरतमंद या अंधे व्यक्ति को नई रोशनी देती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
नेत्रदान एक महान कार्य है जो किसी को दोबारा दुनिया देखने का अवसर देता है। बिहार जैसे राज्य में अब आई बैंक की स्थापना से यह काम और भी आसान हो गया है। अगर हम सब जागरूक हों और नेत्रदान के लिए आगे आएं, तो कई लोगों की जिंदगी बदल सकती है।