अवधेश झा वेदांत|
भूमिका: गुरु का वैदिक महत्व
वैदिक संस्कृति में गुरु को अत्यंत ऊँचा स्थान दिया गया है। उन्हें केवल ज्ञान देने वाला नहीं, बल्कि आत्मज्ञान का मार्गदर्शक माना गया है।
गुरु को ‘आचार्य’, ‘ऋषि’, ‘ब्रह्मर्षि’ और ‘द्रष्टा’ जैसे महान पदों से सम्मानित किया गया है। वे न केवल पुस्तकीय ज्ञान देते हैं, बल्कि अपने जीवन से सच्चे अनुभवों का भी बोध कराते हैं।
श्रीकृष्ण: आदिगुरु के रूप में
एक स्तुति में श्रीकृष्ण को परमगुरु माना गया है —
वे शांत, प्रकाशस्वरूप और योगमूर्ति हैं।
उनके ज्ञान की ज्योति संसार को प्रकाशित करती है और मोक्ष की ओर ले जाती है।
उनके बाद हर गुरु को सच्चिदानंद स्वरूप मानकर नमस्कार किया गया है।
वे भौतिक सुख और आध्यात्मिक मुक्ति — दोनों प्रदान करते हैं।
उपनिषदों में गुरु की महिमा
- श्वेताश्वतर उपनिषद कहती है कि जिसे भगवान जैसी श्रद्धा गुरु में होती है, केवल वही व्यक्ति सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।
- छान्दोग्य उपनिषद कहती है कि सही ज्ञान केवल उसी को मिलता है, जिसके पास आचार्य (गुरु) होता है।
- कठोपनिषद स्पष्ट करती है कि आत्मज्ञान केवल उस व्यक्ति को प्राप्त होता है, जिसे आत्मा स्वयं चुनती है और वह गुरु के मार्गदर्शन से प्रकट होती है।
- मुण्डकोपनिषद में कहा गया है कि ब्रह्मज्ञान के लिए शिष्य को उस गुरु के पास जाना चाहिए जो वेदों का ज्ञाता हो और ब्रह्म में स्थित हो।
वेदव्यास: गुरु पूर्णिमा के मूल
गुरु पूर्णिमा का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक संबंध महर्षि वेदव्यास से है।
- वेदव्यास ने वेदों को चार भागों में विभाजित किया।
- 18 पुराणों की रचना की और महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना कर सनातन संस्कृति को स्थायित्व दिया।
शास्त्रों में वेदव्यास को विष्णु का रूप माना गया है।
गुरु-शिष्य परंपरा में वेदव्यास → शुकदेव → सुत जी → वैशम्पायन → जैमिनी जैसे ऋषि आते हैं, जो परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।
भगवद्गीता में गुरु का निर्देश
भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन को उपदेश देते हैं:
“गुरु के चरणों में समर्पण, विनय से प्रश्न और सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।”
इससे यह स्पष्ट है कि गुरु के बिना आध्यात्मिक प्रगति असंभव है।
गुरु पूर्णिमा: ज्ञान और कृतज्ञता का पर्व
- आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
- यह समय चातुर्मास का आरंभ होता है, जब साधु-संत एक स्थान पर ठहर कर प्रवचन और सत्संग करते हैं।
- जैसे वर्षा की बूंदें धरती को शीतल करती हैं, वैसे ही गुरु का ज्ञान हमें कर्मों के ताप से शांत करता है।
यह केवल उत्सव नहीं, बल्कि स्व-जागरण, श्रद्धा, और संकल्प का दिन है।
गुरु के बिना शास्त्र भी अधूरे
शास्त्रों को सही समझने के लिए गुरु का मार्गदर्शन अनिवार्य है।
यह कहा भी गया है:
“शास्त्रस्य गुरुर्वाक्यम्” — गुरु का वचन ही शास्त्र है।
और अंत में यही स्मरण कराया गया है:
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
निष्कर्ष: गुरु ही जीवन का प्रकाश हैं
गुरु पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि जीवन के सत्य और आत्मज्ञान का मार्ग गुरु के बिना संभव नहीं।
यह दिन हमें गुरु के प्रति आभार, समर्पण और साधना का संकल्प लेने की प्रेरणा देता है।
गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः।
लेखक परिचय:
अवधेश झा जी वेदांत, योग और ज्योतिष के विद्वान हैं। वे ज्योतिर्मय ट्रस्ट (यूएसए) के ट्रस्टी और श्रीहरि ज्योतिष केंद्र, पटना के संस्थापक हैं।