लेखक, अवधेश झा|
भारतीय दर्शन, वेदांत और गुरु स्वरूप आत्मा का महत्व”
- ज्ञान का महत्व और अर्थ
- अविद्या (अज्ञान) कैसे आती है?
- गुरु का स्वरूप: बाह्य और आंतरिक
- पूर्णता की पूजा और ब्रह्मस्वरूप गुरु
- गुरु बनने की योग्यता और आत्मा का साम्य

1. ज्ञान का महत्व और अर्थ
भारतीय दर्शन और खासकर वेदांत में “ज्ञान” सबसे ऊपर माना गया है। लेकिन यह ज्ञान केवल किताबों या सूचनाओं तक सीमित नहीं है। असली ज्ञान वह है जिससे आत्मा और परमात्मा (ब्रह्म) की पहचान होती है और मोक्ष का मार्ग मिलता है। यह ज्ञान भीतर से आता है, आत्मा इसका स्रोत भी है और इसका लक्ष्य भी।
2. अविद्या (अज्ञान) कैसे आती है?
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व जज, जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि झूठा या गलत ज्ञान (मिथ्या ज्ञान) तो अपने-आप मिल जाता है। लेकिन असली ज्ञान (ब्रह्मज्ञान) पाने के लिए मेहनत और साधना चाहिए। यह कोशिश सिर्फ आत्मा ही करती है, क्योंकि आत्मा ही सही मायनों में गुरु है और ब्रह्म है। असली गुरु वह होता है जो पूर्ण होता है। जैसे पूर्णिमा को ही चंद्रमा की पूरी सुंदरता दिखती है, ऐसे ही पूर्ण आत्मा को ही असली गुरु कहा जाता है।
3. गुरु का स्वरूप: बाह्य और आंतरिक
वेदांत के अनुसार, “ब्रह्म सत्य है और यह संसार असत्य जैसा है।” लोग जन्म से ही माया के प्रभाव में आकर इन चीज़ों को सच मान लेते हैं, जैसे अपने-आप में अज्ञान आ जाता है। लेकिन असली ब्रह्मज्ञान के लिए साधना जरूरी है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि विनम्रता, सवाल पूछना और सेवा से ही गुरु के पास से असली ज्ञान मिलता है। पर असली गुरु बाहर नहीं, भीतर है — आत्मा ही असली गुरु होती है। जब कोई साधक भीतर झाँकता है, तब उसे अनुभव होता है कि बाहरी गुरु तो बस रास्ता दिखाने वाले हैं; असली प्रवेश आत्मा ही करती है।
4. पूर्णता की पूजा और ब्रह्मस्वरूप गुरु
उपनिषदों और गुरुगीता के मंत्रों में भी कहा गया है कि गुरु कोई साधारण शिक्षक नहीं बल्कि ब्रह्मस्वरूप होते हैं। जैसे चाँद की हर रात की पूजा नहीं होती बल्कि पूर्णिमा को पूजा जाता है, ऐसे ही असली गुरु वही है जिसमें पूर्णता हो, जिसने अपने अंदर ब्रह्म का अनुभव कर लिया हो। ब्रह्म यानी परमात्मा, पूर्ण और अखंड है — उसी की पूजा की जाती है।
5. गुरु बनने की योग्यता और आत्मा का साम्य
हर कोई जो ज्ञान देता है, वह असली गुरु नहीं बन सकता। सच्चे गुरु बनने के लिए साधना, आत्म-जांच और शिष्य-भाव होना जरूरी है। जब साधक भीतर की यात्रा में आत्मा को पहचान लेता है, तब वही आत्मा गुरु की तरह बन जाती है। ऐसी स्थिति में गुरु और शिष्य में भेद नहीं रह जाता — आत्मा ही गुरु और शिष्य दोनों रूपों में होती है। यही अद्वैत वेदांत का संदेश है — आत्मा ही वास्तव में परमगुरु है, वही मोक्ष (मुक्ति) और असली सत्य का मार्ग है।
सारांश (संक्षेप में):
भारतीय वेदांत में असली ज्ञान वो है जिससे आत्मा और ब्रह्म की एकता का अनुभव हो। बाहरी गुरु सिर्फ मार्गदर्शक होते हैं, लेकिन असली गुरु हमारी आत्मा है, और वही ब्रह्म है। जब साधक साधना से भीतर जागृति लाता है, तब उसे सच में आत्मसाक्षात्कार मिलता है — यही सबसे बड़ी पूर्णता है और यही वास्तविक पूजा का विषय है।