गुरु रविदास: जीवनी और प्रेरक प्रसंग व जीवनी
गुरु / भगवान संत रविदास जी की जयंती-2025 पर पंजाब नैशनल बैंक ने फ़ेसबुक के अपने ऑफिसियल पेज पर बहुत ही प्रेरक संदेश दिया गया है। लिखा गया है-
May Guru Ravidas Ji’s wisdom guide you towards the path of compassion, kindness & humility!
गुरु रविदास जी की दिव्य शिक्षाएँ आपको करुणा, दया और विनम्रता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें!

गुरु रविदास का जन्म 15वीं शताब्दी में माघ पूर्णिमा के दिन (लगभग 1398 ईस्वी) उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे और समाज में समानता, मानवता और भक्ति का संदेश देने वाले महान संत माने जाते हैं।
उनके पिता संतोख दास एक मोची (चर्मकार) थे, और माता का नाम कर्मा देवी था। जन्म से ही वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे और समाज में फैली ऊँच-नीच की भावना को मिटाने के लिए समर्पित रहे।
गुरु रविदास बचपन से ही भगवान की भक्ति में लीन रहते थे, लेकिन जाति व्यवस्था के कारण उन्हें कई सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने हमेशा मानव मात्र की एकता, प्रेम और भक्ति का संदेश दिया और यह कहा कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा” यानी सच्चे मन से भगवान का स्मरण किया जाए तो वह किसी भी स्थान पर गंगा स्नान के समान पवित्र हो जाता है।
प्रेरक प्रसंग
1. मन चंगा तो कठौती में गंगा
गुरु रविदास के बचपन का एक प्रसिद्ध प्रसंग है कि एक बार उनके माता-पिता ने उन्हें गंगा स्नान के लिए कहा, लेकिन वे अपनी भक्ति में इतने लीन थे कि उन्होंने जाने से मना कर दिया और जूते बनाने का कार्य करने लगे। जब लोग स्नान के लिए गंगा पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि गुरु रविदास वहीं गंगा में स्नान कर रहे हैं। यह देखकर सभी हैरान रह गए।
इस घटना से यह संदेश मिलता है कि सच्ची भक्ति के लिए किसी विशेष स्थान पर जाना आवश्यक नहीं, बल्कि मन को शुद्ध और पवित्र बनाना ही सबसे बड़ा तीर्थ है।
2. राजा और गुरु रविदास
कहा जाता है कि एक बार एक राजा गुरु रविदास के भक्तों में शामिल हो गया। दरबार के ब्राह्मणों को यह अच्छा नहीं लगा कि एक चर्मकार जाति का व्यक्ति राजा का गुरु बन जाए। उन्होंने राजा से शिकायत की और कहा कि गुरु रविदास कोई चमत्कारी संत नहीं हैं।
राजा ने गुरु रविदास को बुलाया और उनसे कोई चमत्कार दिखाने को कहा। गुरु रविदास ने उत्तर दिया— “मुझे किसी चमत्कार की आवश्यकता नहीं, मेरा कर्म ही मेरी पहचान है।” फिर भी जब दबाव बढ़ा, तो गुरु रविदास ने एक बर्तन में जल भरकर उसमें भगवान का नाम लिया। देखते ही देखते उसमें से दिव्य प्रकाश निकलने लगा, जिससे सभी प्रभावित हुए और राजा ने उन्हें सच्चा संत मान लिया।
3. बेगमपुरा की अवधारणा
गुरु रविदास ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी जहाँ कोई भेदभाव न हो। उन्होंने अपने भजनों में “बेगमपुरा” नामक आदर्श समाज का वर्णन किया, जो पूरी तरह से निष्पक्ष, भेदभाव रहित और प्रेम से भरा हुआ हो।
उन्होंने कहा था:
“ऐसा चाहूँ राज मैं, जहाँ मिले सबन को अन्न। छोट-बड़े सब सम बसें, रविदास रहे प्रसन्न।।”
इसका अर्थ है कि ऐसा राज्य होना चाहिए जहाँ हर व्यक्ति को भोजन मिले, कोई छोटा-बड़ा न हो और सभी समान हों।
गुरु रविदास की शिक्षाएँ
- जाति-पांति का विरोध: उन्होंने जाति के आधार पर ऊँच-नीच को नकारते हुए कहा कि सभी मनुष्य समान हैं।
- सत्संग और भक्ति का महत्व: उन्होंने बताया कि भगवान की भक्ति से ही मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
- सादा जीवन, उच्च विचार: उन्होंने समाज को सादगी और ईमानदारी से जीवन जीने की प्रेरणा दी।
- ईश्वर एक है: उन्होंने कहा कि ईश्वर किसी एक धर्म या जाति तक सीमित नहीं, बल्कि सभी के लिए हैं।
- बेगमपुरा का सपना: उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ प्रेम, समानता और शांति हो।
निष्कर्ष
गुरु रविदास केवल संत ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने समय की कुरीतियों को चुनौती दी और समाज में समानता व प्रेम का संदेश दिया। उनकी वाणी आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उनकी शिक्षाएँ हमें मानवता की सच्ची राह दिखाती हैं।
उनकी जयंती पर हमें उनके विचारों को अपनाने और समाज में समानता लाने की दिशा में कार्य करने की प्रेरणा लेनी चाहिए।