19वीं सदी के उत्तरार्ध में भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में जल, जंगल और जमीन के लिए तीव्र विद्रोह हुआ था।
मोतिहारी।आदापुर से देश वाणी प्रतिनिधि बबिता शंकर।
पूर्वी चम्पारण के दरपा थाना क्षेत्र में स्थित राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय बीएमसी पीपरा उर्दू में उलगुलान आंदोलन के प्रणेता भगवान बिरसा मुंडा के जीवनवृत पर लघु नाटक व लोक नृत्य का आयोजन हुआ। इस आयोजन के माध्यम से भगवान विरसा मुंडा के बलिदान, त्याग व सामाजिक चेतना के बारे में बच्चों को विशेष जानकारी मिली। आयोजन में शामिल बच्चे व अभिभावक बेहद उत्साहित थें।
ब्रिटिश शासन द्वारा जनजातीय जीवन शैली, सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में हस्तक्षेप के कारण 19वीं सदी के उत्तरार्ध में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में जल, जंगल और जमीन के लिए तीव्र विद्रोह हुआ था। उक्त बातें शिक्षक शिव शंकर गिरि ने बच्चों को संबोधित करते हुए कही। आयोजन के दौरान शिक्षक श्री गिरि ने जनजातीय लोगों पर हो रहे अत्याचार व उससे उपजे आंदोलन व भगवान श्री मुंडा के नेतृत्व क्षमता की ऐतिहासिक भूमिका को स्पष्ट किया। इस आयोजन का उद्देश्य भी यही था। जो पूर्णतः सफल रहा।
दरपा थाना क्षेत्र में स्थित राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय बीएमसी पीपरा उर्दू में जनजातीय गौरव पखवाड़ा के तृतीय दिवस सोमवार को विद्यालय में उलगुलान आंदोलन के प्रणेता बिरसा मुंडा के जीवनवृत पर लघु नाटक का आयोजन किया गया।
उक्त लघु नाटक के माध्यम से बच्चों को जनजातीय समाज की वेश-भूषा, रहन-सहन, खान-पान,गीत-संगीत आदि से अवगत कराया गया। बच्चों ने मुंडा गीतों पर नृत्य प्रस्तुत किया। बच्चों को नाट्य के द्वारा बताया गया कि जनजातीय समाज के लोग जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए कटिबद्ध होते हैं।
मौके पर शिक्षक इजहार हुसैन, प्रवेज आलम, मुंतजिर आलम, अंजु सहित अरमान आलम, आबिद आलम, खुशी,फैसल रहमान, ईरशाद अआलम, कंचन कुमार,नूरसाबा खातून सानिया अंजुम, रेशमा खातून, शबाना खातून, प्रियांशु कुमारी, शबनम खातून, गुलनाज खातून, निक्की कुमारी, शबनम खातून सहित सैकड़ों बच्चे मौजूद थे।
A short play and folk dance on the life of Ulgulan movement leader Birsa Munda organized at Urdu school. Photo- deshVani, “today’s cultural news updates”
भगवान बिरसा मुंडा का जीवन और संघर्ष-
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को वर्तमान झारखंड के रांची जिले के उलिहातु गांव में हुआ था। उनकी मां का नाम करमी हातू और पिता का नाम सुगना मुंडा था। उनके नेतृत्व में उलगुलान आंदोलन की शुरुआत हुई, जो अंग्रेजों के उन काले कानूनों के खिलाफ था, जिनके जरिए आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही थी। अंग्रेजों ने ‘इंडियन फॉरेस्ट ऐक्ट 1882’ लागू कर आदिवासियों को जंगलों के अधिकार से वंचित कर दिया। इसके साथ ही जमींदारी प्रथा लागू कर आदिवासी गांवों की जमीनें जमीदारों और दलालों में बांट दी गईं।
“उलगुलान आंदोलन” और बिरसा मुंडा का योगदान-
इस संघर्ष को ‘उलगुलान’ नाम दिया गया, जिसका अर्थ है जल, जंगल, जमीन पर अधिकार की लड़ाई। भगवान बिरसा ने इस दौरान नारा दिया, ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’, जिसका अर्थ है ‘हमारा देश, हमारा शासन’। इस आंदोलन में हजारों आदिवासी बिरसा मुंडा के साथ शामिल हुए और अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए। हालांकि अंग्रेजों ने इस विद्रोह को दबा दिया, लेकिन इसने आदिवासी समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया।
समाज सुधारक के रूप में बिरसा मुंडा-
बिरसा मुंडा ने न केवल आंदोलनों का नेतृत्व किया, बल्कि समाज सुधार की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने अपने समुदाय से नशे का त्याग करने की अपील की और अंधविश्वास तथा हानिकारक धार्मिक प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई। उनके प्रयासों ने आदिवासी समाज में एक नई चेतना और सुधार की लहर पैदा की।