पटना से स्थानीय संपादक जितेंद्र कुमार सिन्हा।
क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है, जिसे प्रभु यीशु मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व न केवल ईसाई समुदाय के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। इसे “बड़ा दिन” भी कहा जाता है, क्योंकि यह साल का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात होती है।
ईसा मसीह का जन्म और उनकी शिक्षाएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ईसा मसीह का जन्म लगभग 4 ईसा पूर्व बेथलेहम शहर के एक गौशाला में हुआ। उनकी माता मरियम थीं, और उनके जन्म को दिव्य घटना के रूप में स्वीकार किया जाता है। उनका जन्म नाम “एमानुएल” था, जिसका अर्थ है “ईश्वर हमारे साथ”।
यीशु मसीह ने अपने जीवन के माध्यम से प्रेम, करुणा और मानवता का संदेश दिया। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अन्याय और पाखंड का विरोध किया और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। बाइबल में उन्हें “शांति का राजकुमार” कहा गया है।
भारत में ईसाई धर्म का आगमन
ईसाई धर्म का भारत में आगमन संत थॉमस के माध्यम से हुआ, जो सन् 52 में समुद्री मार्ग से दक्षिण भारत पहुंचे। उन्होंने केरल के मालाबार तट पर पहला चर्च स्थापित किया, जिसे ‘संत थॉमस चर्च’ के नाम से जाना जाता है। यह दुनिया के सबसे पुराने चर्चों में से एक है। संत थॉमस ने भारत में ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई वर्षों तक काम किया।
क्रिसमस की परंपराएं और प्रतीक
क्रिसमस का उत्सव 24 दिसंबर की रात से ही शुरू हो जाता है। चर्चों में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं, और यीशु मसीह के जन्म का स्मरण किया जाता है।
- क्रिसमस ट्री: जीवन और पुनर्जन्म का प्रतीक है।
- सांता क्लॉस: गरीबों और बच्चों के लिए खुशी और उपहार लाने वाला।
- घंटियां: शांति और शुभता का प्रतीक।
- चरनी: वह स्थान, जहां यीशु का जन्म हुआ।
- मोमबत्तियां: यह यीशु को “संसार की ज्योति” के रूप में दर्शाती हैं।
क्रिसमस का संदेश
यीशु मसीह ने प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने कहा, “शांति तुम्हारे साथ हो,” जो आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। यीशु का जन्म हमें सिखाता है कि सेवा, सद्भाव और सत्य के माध्यम से समाज को बेहतर बनाया जा सकता है।
धार्मिक संघर्ष और बलिदान
यीशु मसीह ने अंधविश्वास और अन्याय का विरोध किया, जिससे उन्हें यहूदी समाज के शासकों का विरोध सहना पड़ा। उन्होंने मसीह को सूली पर चढ़ाने का षड्यंत्र रचा। यीशु ने अपने अंतिम शब्दों में कहा था, “तुम मुझे आज मारोगे, लेकिन मैं कल फिर जीवित हो जाऊंगा।”
वैश्विक उत्सव
आज क्रिसमस केवल ईसाई धर्म का पर्व नहीं रहा, बल्कि यह एक वैश्विक उत्सव बन चुका है। विश्वभर में इसे प्रेम, शांति और मानवता के संदेश के रूप में मनाया जाता है। लोग इस दिन एक-दूसरे को उपहार देते हैं और शुभकामनाएं देते हैं।
क्रिसमस हमें यह याद दिलाता है कि सच्चा धर्म मानवता की सेवा, भाईचारे और शांति में है। यीशु मसीह की शिक्षाएं आज भी दुनिया को प्रेरित करती हैं और सिखाती हैं कि प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलकर हम समाज को बेहतर बना सकते हैं।