बेतिया| हृदयानंद सिंह यादव|
बेतिया में जन्मे और भागलपुर में हुआ निधन, कवि, पत्रकार और गीतकार के रूप में स्थापित किये माइल स्टोन
बेतिया से भागलपुर तक की जीवन यात्रा
आज महान गीतकार, साहित्यकार और बहुमुखी प्रतिभा के धनी गोपाल सिंह नेपाली की पुण्यतिथि है। उनका निधन 1963 में आज ही के दिन भागलपुर में हुआ था। 17 अप्रैल 1963 को ट्रेन से उतरने के क्रम में भागलपुर स्टेशन प्लेटफार्म नंबर दो पर हृदय गति रुक जाने से उनका असामयिक निधन हो गया था।
उनका जन्म 11 अगस्त 1911 को पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया में हुआ था। नेपाली का जीवन राष्ट्रभक्ति, साहित्यिक ऊर्जा और सांस्कृतिक योगदान से परिपूर्ण था।
भारत-चीन युद्ध के समय लिखे ओजस्वी गीत
वर्ष 1962 में भारत पर चीन के आक्रमण के समय गोपाल सिंह नेपाली ने जो ओजस्वी और प्रेरणादायक गीत लिखे, वे देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत थे। उनकी लेखनी ने उस कठिन दौर में जनमानस में उत्साह और आत्मबल भरने का काम किया।
साहित्य, पत्रकारिता और फिल्म जगत में समान रूप से सक्रिय
गोपाल सिंह नेपाली कई विधाओं में दक्ष थे। वे एक प्रख्यात कवि होने के साथ-साथ पत्रकारिता से भी गहराई से जुड़े रहे। मुंबई में उन्होंने फिल्मों के लिए कई गीतों की रचना की, जो उस समय बेहद लोकप्रिय हुए। उनका साहित्यिक अवदान उन्हें उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों में स्थापित करता है।
वरिष्ठ पत्रकार पारस कुंज की टिप्पणी
वरिष्ठ पत्रकार पारस कुंज, जो गोपाल सिंह नेपाली पर लंबे समय से शोध कर रहे हैं, का कहना है—
“वे किसी भी दृष्टिकोण से राष्ट्रकवि से कम नहीं थे। भागलपुर में उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग उन्हें श्रद्धा अर्पित करने उमड़े थे।“
पारस कुंज के अनुसार,
“गोपाल सिंह नेपाली पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे और उन्होंने मुंबई में कई फिल्मों के लिए गीत लिखे।”
रेडियो से घर-घर तक पहुँचा स्वर
आकाशवाणी द्वारा उनके देशभक्ति गीतों का प्रसारण भी किया गया, जो लंबे समय तक लोकप्रिय रहे। उनकी रचनाओं में भावनाओं की सादगी और गहराई ने लोगों के दिलों में जगह बनाई।
आज भी प्रासंगिक हैं उनके गीत और विचार
वर्तमान समय में जब “राष्ट्र प्रथम” की भावना को फिर से जाग्रत करने की आवश्यकता महसूस होती है, तब गोपाल सिंह नेपाली के गीत, साहित्य और विचार हमें निरंतर प्रेरणा और दिशा देते हैं। उनकी रचनाएँ सिर्फ साहित्य नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति की चेतना भी हैं।