पटना से स्थानीय संपादक जितेंद्र कुमार सिन्हा|
बिहार की राजनीति में जातीय और साम्प्रदायिक समीकरण हमेशा से अहम रहे हैं, लेकिन सीमांचल क्षेत्र का चुनावी परिदृश्य राज्य के अन्य हिस्सों से अलग है। अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिलों वाले इस क्षेत्र में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक है, जिसके कारण इसे बिहार का “मुस्लिम बेल्ट” कहा जाता है। चुनावी मौसम में सीमांचल की जनता का फैसला सीधे पटना की सत्ता समीकरणों को प्रभावित करता है।

मुस्लिम मतदाताओं की संख्या और प्रभाव:
सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों में से आधे से अधिक सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका रखते हैं। यहां के करीब 40-65% मतदाता मुस्लिम हैं, जो हर राजनीतिक दल के लिए रणनीति बनाते समय प्रमुख हैं। सीमांचल की चार लोकसभा सीटों किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया में भी मुस्लिम वोटरों की दबदबा वाली भूमिका है। अगर यह वोट बैंक एकजुट हो जाए तो चुनावी जीत लगभग सुनिश्चित हो जाती है।
सीमांचल का भौगोलिक और सामाजिक परिवेश:
सीमांचल बिहार के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित है और नेपाल तथा बंगाल की सीमा से जुड़ा है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक और भाषाई दृष्टि से बहुत विविधतापूर्ण है। यहाँ हिंदी, उर्दू, मैथिली, बंगला और संथाली भाषाएँ बोली जाती हैं। आर्थिक रूप से यह कृषि प्रधान क्षेत्र है, लेकिन बाढ़ और अवसंरचना की कमी विकास में बाधक हैं। मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ यादव, कुशवाहा, अनुसूचित जाति, राजपूत और बनिया जैसी जातियां भी सीमांचल की राजनीति में योगदान देती हैं।
राजनीतिक समीकरण और दलों की भूमिका:
सीमांचल में भाजपा और एनडीए के लिए मुस्लिम वोट बैंक एक बड़ी चुनौती है। मुस्लिम समाज भाजपा की नीतियों और हिंदुत्व एजेंडे को लेकर संदेह रखता है। भाजपा ने मुस्लिम वोटरों को बांटने के लिए हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण किया है, जबकि विकास की राजनीति को मुस्लिम बहुल इलाकों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
महागठबंधन की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम और यादव (MY) समीकरण में है। लालू प्रसाद यादव की राजनीति इसी समीकरण पर आधारित है। मुस्लिम समाज में भाजपा के मुकाबले राजद और कांग्रेस को समर्थन मिलता है, क्योंकि वे सामाजिक न्याय और पिछड़ों की राजनीति को जोड़कर वोट बैंक जुटाते हैं। कांग्रेस का पारंपरिक आधार भी मुस्लिम समाज रहा है, खासकर किशनगंज सीट से।
एआईएमआईएम और अन्य दलों की भूमिका:
ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश की है। कुछ स्थानीय दल और नेता भी मुस्लिम वोटों को बांटने का प्रयास करते हैं। मुस्लिम समाज के अंदर पसमांदा (पिछड़े वर्ग) और अशराफ (उच्च वर्ग) के बीच विभाजन की राजनीति पर प्रभाव पड़ता है।
युवा मतदाता और विकास की प्राथमिकता:
आज के युवा मतदाता केवल धर्म और जाति पर निर्भर नहीं हैं, वे रोजगार, शिक्षा और विकास जैसे मुद्दों को महत्व देते हैं। सीमांचल के प्रवासी मजदूर जो खाड़ी देशों और महानगरों में काम करते हैं, चुनाव के समय अपने क्षेत्र की राजनीति में नए विचार लेकर आते हैं।
चुनावी रणनीति का सार:
सीमांचल की राजनीति में उम्मीदवार को जाति, धर्म और गठबंधन की राजनीति दोनों को ध्यान में रखना पड़ता है। मुस्लिम वोट अगर एकजुट हो जाएं, तो महागठबंधन की जीत लगभग तय होती है। वोट बांटने पर भाजपा और अन्य दलों को मौका मिल जाता है। विकास मुद्दों के आधार पर मतदान प्रारंभ होने से समीकरण बदल सकते हैं।
इतिहास और वर्तमान चुनावी स्थिति:
1970-80 के दशक में कांग्रेस, 1990 के दशक में लालू और राजद का MY समीकरण प्रभावी था। 2005 के बाद नीतीश कुमार की पकड़ मजबूत हुई, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक अधिकतर राजद-कांग्रेस ओर झुका। हाल के चुनावों में भाजपा ने भी प्रभाव बढ़ाया है, लेकिन अब भी सीमांचल में मुस्लिम मतदाता निर्णायक शक्ति हैं।
सलाह और भविष्य की चुनौतियां:
सीमांचल की राजनीति जातीय और धार्मिक समीकरणों पर केंद्रित रही है। आगामी चुनावों में यह देखने की बात होगी कि मुस्लिम वोटर पहचान आधारित राजनीति का समर्थन करता है या विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देता है। यदि विकास-आधारित मतदान शुरू होता है, तो बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है।
यह क्षेत्र बिहार के चुनावी नक्से पर महत्वपूर्ण फर्क डालता है, जिसमें मुस्लिम मतदाता सबसे निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
Patna|Seemanchal – The Decisive Role of Muslim Voters