spot_img
Thursday, November 21, 2024
spot_img
HomeBreakingनवरात्र में बुधवार सप्तमी को हो रही मॉं कालरात्रि  की पूजा, खुल...

नवरात्र में बुधवार सप्तमी को हो रही मॉं कालरात्रि  की पूजा, खुल गये पंडालों में देवी के पट

-

 पटना से जितेन्द्र कुमार सिन्हा। 

नवरात्र में बुधवार को हो रही मॉं कालरात्रि  की पूजा। मां कालरात्रि को महायोगिनी, महायोगीश्वरी भी कहा जाता है। 

आज सप्तमी को पूजा पंडालों में देवी पट खुल गयें हैं। देवी के दर्शन के लिए श्रघालुओं की भीड़ उमड़ने लगी है।

लेखक जितेन्द्र कुमार सिन्हा पटना में स्थानीय संपादक हैं। फाइल फोटोदेश वाणी

शारदीय नवरात्र देवी पूजा को समर्पित एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। इसके समापन पर दशमी तिथि को विजयदशमी (दशहरा) पर्व मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र का महात्म्य इसलिए भी है क्योंकि इसी समय देवताओं ने दैत्यों से परास्त होकर आद्या शक्ति की प्रार्थना की थी। देवी मां के आविर्भाव के बाद दैत्यों का संहार हुआ, और इस स्मृति में शारदीय नवरात्र महोत्सव मनाया जाता है। 

मां दुर्गा को आदिशक्ति, जगत जननी, और जगदम्बा भी कहा जाता है। भगवती के नौ रूप हैं, जिनकी विशेष पूजा नवरात्र के दौरान की जाती है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यायनी की पूजा होती है। सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है, आठवें दिन महागौरी, और नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है।

सप्तमी के दिन मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है। उनका शरीर अंधकार की तरह काला है, और उनके बाल लंबे और बिखरे हुए हैं। गले में बिजली जैसी चमकती माला है। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं – एक में खड़क, दूसरे में लोह अस्त्र, तीसरे में वर मुद्रा और चौथे में अभय मुद्रा है। उन्हें लाल वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कालरात्रि की पूजा से दुष्टों का विनाश होता है और वह वीरता और साहस की प्रतीक मानी जाती हैं। उन्होंने दैत्य रक्तबीज का वध किया था। रक्तबीज के शरीर से जो भी रक्त बहता था, उससे नए रक्तबीज उत्पन्न हो जाते थे। इसे देखकर मां दुर्गा ने मां कालरात्रि को उत्पन्न किया, जिन्होंने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया और उसका अंत किया।

मां कालरात्रि को गुड़ का भोग प्रिय है। गुड़ का नैवेद्य अर्पित करने और उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है और आकस्मिक संकटों से रक्षा होती है। गुड़ का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करना स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है।

नवरात्र के सप्तमी पर साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है, जिससे ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। मां कालरात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यु-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के अन्य रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धूम्रवर्णा उनके कम प्रसिद्ध नामों में शामिल हैं। मान्यता है कि देवी के इस रूप से सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाएं भाग जाती हैं।

किसी भी मंत्र का जप विधि-विधान से करना चाहिए। मंत्र जप के बाद हवन, तर्पण, मार्जन, ब्राह्मण भोजन और कन्या पूजन करना मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक माना जाता है।

मां कालरात्रि का उपासना मंत्र: 

“एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,  

लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।  

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा,  

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥”

कार्य में बाधा उत्पन्न होने पर या शत्रुओं से बचने के लिए इस मंत्र का जप करना चाहिए:

“ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।  

एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ॥”

मां कालरात्रि दयालु और कृपालु हैं। जो लोग तंत्र-मंत्र से पीड़ित हैं, वे उनकी साधना कर शत्रुओं से मुक्ति पा सकते हैं।

**मां कालरात्रि का साधना मंत्र:**

“ॐ कालरात्र्यै नमः।  

ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।”

मां कालरात्रि की साधना करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से मुक्त होता है।

Related articles

Bihar

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
spot_img

Latest posts