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Tuesday, October 14, 2025
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जापान में गूंजा “हर-हर महादेव”, निकली कांवड़ यात्रा

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SHABD,बेगुसराय, August 4,

टोक्यो के फुनाबोरी (Funabori) में श्रद्धालुओं ने गंगाजल से भरी कांवड़ को कंधों पर उठाकर “हर-हर महादेव” के जयघोष के साथ पैदल ओजिमा (Ojima) तक यात्रा की। इसके पश्चात वाहनों के माध्यम से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी तय कर श्रद्धालु इबाराकी प्रांत स्थित श्रीराम मंदिर, बांदो पहुँचे। जहां श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किये।

हिंदू धर्म सनातन काल से चला आ रहा और इसकी जड़ें पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। संस्कृति और परंपराओं का निर्वहन करना मात्र धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह अपनी जन्मभूमि और जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है।

04 अगस्त, बेगुसराय (बेगुसराय, बिहार): 

हिंदू धर्म सनातन काल से चला आ रहा है और इसकी जड़ें पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। संस्कृति और परंपराओं का निर्वहन करना मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह अपनी जन्मभूमि और जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है।

जापान की धरती पर भी भारतीय संस्कृति की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। वहां रह रहे प्रवासी भारतीय वर्षों से अपने सांस्कृतिक मूल्यों को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। इसी क्रम में “कांवड़ यात्रा” एक प्रेरणादायी उदाहरण बन गयी है, जिसे जापान में रह रहे बिहार-झारखंड के प्रवासी भारतीय न केवल सहेज रहे हैं, बल्कि उसे और भी भव्यता प्रदान कर रहे हैं।

बिहार फाउंडेशन जापान के सचिव विकास रंजन बताते हैं –

जापान में पहली कांवड़ यात्रा वर्ष 2022 में आरंभ हुई थी और अब यह आयोजन प्रवासी समाज के बीच एक भव्य उत्सव का स्वरूप ले चुका है।

हाल ही में सम्पन्न हुई चौथी कांवड़ यात्रा टोक्यो के फुनाबोरी (Funabori) से शुरू हुई। श्रद्धालुओं ने गंगाजल से भरी कांवड़ को कंधों पर उठाकर “हर-हर महादेव” के जयघोष के साथ पैदल ओजिमा (Ojima) तक यात्रा की। इसके पश्चात वाहनों के माध्यम से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी तय कर श्रद्धालु इबाराकी प्रांत स्थित श्रीराम मंदिर, बांदो पहुँचे।

मंदिर परिसर में भोलेनाथ का जलाभिषेक, विशेष शृंगार और भव्य आरती के साथ यह दिव्य यात्रा संपन्न हुई। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि प्रवासी समाज को एकजुट कर भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान और गर्व की भावना को भी प्रबल किया।

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हिंदू धर्म सनातन काल से चला आ रहा और इसकी जड़ें पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। संस्कृति और परंपराओं का निर्वहन करना मात्र धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह अपनी जन्मभूमि और जड़ों से जुड़े रहने का प्रतीक है।

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