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Thursday, November 21, 2024
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मिथिला चित्रकला के अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैप को पाटने की जरूरत: रीना सोपम

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पटना से स्थानीय संपादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा।

मिथिला की पारंपरिक चित्रकला कोहबर को लेकर पटना में तीन दिवसीय प्रदर्शनी और परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसका समापन रविवार को हुआ। ‘

कोहबर, रूट टू रूट’ नाम से आयोजित इस समारोह का आयोजन महिला कलाकारों द्वारा किया गया। इस आयोजन में चित्रकला के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार की संभावनाओं पर चर्चा हुई।

कोहबर: मिथिला की कला से वैश्विक मंच तक

मिथिला की कोहबर कला अब सिर्फ जीवनशैली का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह देश-विदेश में एक प्रतिष्ठित चित्रकला के रूप में स्थापित हो चुकी है। हालांकि, इसे बढ़ावा देने के लिए और भी प्रयासों की जरूरत है। 

महिला कलाकारों की ऐतिहासिक पहल-

इस कार्यक्रम का आयोजन पूरी तरह महिला कलाकारों ने किया था, जो कि मिथिला में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण है। वरिष्ठ पत्रकार **रीना सोपम** ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह महिला कलाकारों की बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि महिला कलाकार अब सिर्फ चित्रकार नहीं, बल्कि आयोजक भी बन गई हैं।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मिथिला चित्रकला की मांग-

रीना सोपम ने कहा कि मिथिला चित्रकला की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहले से ही अच्छी मांग है, लेकिन इसके प्रचार-प्रसार के लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे कोहबर चित्रकला को जर्मनी और अन्य देशों में पहचान मिली। 

कलाकारों के लिए बाजार में अवसर बढ़ाने की जरूरत-

वरिष्ठ पत्रकार **पुष्यमित्र** ने कहा कि मिथिला चित्रकला के कलाकारों को ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर ध्यान देना चाहिए ताकि वे अपने कला को बड़े स्तर पर प्रस्तुत कर सकें। 

#### **पारंपरिक कला में हो रहे बदलाव पर चिंता**

रीना सोपम ने यह भी बताया कि आजकल कोहबर में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इस कला को मूल स्वरूप में बनाए रखने के लिए वर्कशॉप आयोजित करने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ी इसकी परंपरागत शैली से परिचित हो सके। 

#### **अन्य विशेषज्ञों की राय**

– **विनय कुमार**, निदेशक, बापू टावर: “पारंपरिक चित्रकला बनाते समय रीतियों का ध्यान रखना आवश्यक है।”

– अजय पांडेय, आर्ट कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल: “गुणवत्ता का ध्यान रखना जरूरी है।”

– राखी कुमारी**, प्रिंसिपल, आर्ट कॉलेज: “मिथिला के रीति-रिवाजों को बचाने के प्रयास होने चाहिए।”

अन्य गतिविधियाँ और विमोचन-

कार्यक्रम में वरिष्ठ कलाकार विमला दत्त की किताब ‘मिथिलाक पावनि तिहार आ सोलह संस्कार’ का विमोचन हुआ। साथ ही, मनीषा झा ने मिथिला चित्रकला की यात्रा पर एक प्रेजेंटेशन दिया। अमृता दास की किताब का भी लोकार्पण किया गया। 

उपस्थित प्रमुख हस्तियां-

इस आयोजन में कला, साहित्य और समाजसेवा से जुड़े कई प्रतिष्ठित लोग उपस्थित थे, जिनमें **भारत ज्योति**, **प्रियंका**, **कल्पना मधुकर**, **चंदना दत्त** आदि शामिल थे। 

कार्यक्रम का संचालन **भैरव लाल दास** ने किया और इसे सफल बनाने में **अलका दास** और **निभा लाभ** का विशेष योगदान रहा।

इस आयोजन ने मिथिला चित्रकला की चुनौतियों और उसके समाधान पर गहन चर्चा की, जिससे भविष्य में कलाकारों के लिए नए अवसर सृजित होंगे।

Bridging the Gap Between Mithila Artists and the International Market: Reena Sopam. photo- deshVani

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