आध्यात्मिक ज्ञान: भारतीय परंपरा की नींव
लेखक अवधेश झा
भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल आधार आध्यात्मिक ज्ञान रहा है। यह परंपरा मानती है कि भौतिक प्रगति को सार्थक बनाने के लिए आध्यात्मिक उन्नति आवश्यक है।
इंद्रिय ज्ञान से परे: आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान
जो कुछ दृश्य जगत में दिखता है, वह इंद्रिय ज्ञान का विषय है। लेकिन आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान इंद्रियों से परे है और यही भारतीय ज्ञान परंपरा के मुख्य स्तंभ ब्रह्म ज्ञान, शास्त्र ज्ञान, और शस्त्र ज्ञान का आधार है।
धर्म, कर्म और संस्कृति का समन्वय
धर्म, कर्म, उपासना, और नैतिकता का पालन करते हुए समाज को सशक्त और सम्पन्न बनाना भारतीय परंपरा का उद्देश्य रहा है। शिक्षा, संस्कार, और संस्कृति का इस परंपरा में अद्वितीय समन्वय है।
देवत्व और संस्कृत की प्रधानता
जस्टिस राजेंद्र प्रसाद के अनुसार, सृष्टि की प्रथम पीढ़ी देवताओं की थी। शिक्षा का लक्ष्य ब्रह्म, आत्मा, और पारलौकिक उद्देश्यों की प्राप्ति था। संस्कृत भाषा और शास्त्रों का दिव्य ज्ञान इस परंपरा की पहचान थे।
श्रेय और प्रेय: भारतीय ज्ञान का मार्गदर्शन
शास्त्रों में “श्रेय” (श्रेष्ठ) और “प्रेय” (सुखद) के बीच चुनाव का सिद्धांत भारतीय ज्ञान परंपरा का मार्गदर्शन करता है। बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा श्रेय को चुनता है, जबकि अज्ञानी प्रेय के पीछे भागता है।
वेद: सर्वोच्च ज्ञान का आधार
वेद, जिन्हें अपौरुषेय और सर्वोच्च ज्ञान माना जाता है, भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल आधार हैं। उपनिषदों में ब्रह्म और आत्मा के गहन विचार मिलते हैं। धर्मशास्त्र जीवन के हर पहलू पर निर्देश प्रदान करते हैं।
आत्मा, योग और अध्यात्म का महत्व
भारतीय ज्ञान परंपरा का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं है। यह आत्मा, योग, और अध्यात्म के माध्यम से शाश्वत आनंद प्राप्त करने पर बल देती है।
शाश्वत और अद्वितीय जीवन दर्शन
भारतीय ज्ञान परंपरा केवल भौतिक सुख तक सीमित नहीं है। यह आत्मिक आनंद और सार्वभौमिक कल्याण पर आधारित है। यही इसे विश्वगुरु बनाती है और शाश्वत जीवन दर्शन के रूप में स्थापित करती है।
Indian Knowledge Tradition: Philosophy of Life
Spiritual Knowledge: The Foundation of Indian Tradition