बिहार के नालंदा जिले के चंडी प्रखंड स्थित नरसंडा गाँव में एक कायस्थ परिवार दशकों से आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव का आयोजन कर रहा है।
पटना से स्थानीय संपादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा।
आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव का समापन महापर्व छठ के पारण के दिन देवी-देवताओं की मूर्तियों के गाँव भ्रमण और विसर्जन के साथ हुआ। इस वर्ष भी दीपावली के दिन 31 अक्टूबर को प्रारंभ हुए लक्ष्मी पूजनोत्सव का समापन महापर्व छठ के पारण के दिन 8 नवम्बर को मूर्ति विसर्जन और 9 नवम्बर को भंडारे के साथ किया गया।
ज्ञातव्य है कि बिहार के नालंदा जिले के चंडी प्रखंड स्थित नरसंडा गाँव में एक कायस्थ परिवार दशकों से आठ दिवसीय लक्ष्मी पूजनोत्सव का आयोजन कर रहा है। इसका प्रारंभ दीपावली के दिन होता है और समापन महापर्व छठ के पारण के दिन किया जाता है।
इस कायस्थ परिवार द्वारा अपने पारिवारिक भूखंड पर निर्मित पारिवारिक मंदिर में लक्ष्मी पूजनोत्सव का आयोजन दशकों से होता आ रहा है। मंदिर परिसर में ही कारीगरों से देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनवाई जाती हैं और उन्हें सजाया जाता है। पूरे परिसर में रोशनी की जाती है, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि गूंजती है, पुरोहित द्वारा प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा कराई जाती है, और हलवाई से प्रसाद बनवाकर प्रतिदिन वितरित किया जाता है।
विसर्जन के पूर्व पूजा स्थल पर देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विधिपूर्वक पूजन किया गया, तिलक-सिंदूर लगाया गया। महिलाओं द्वारा देवियों की खोईचा भराई कर उन्हें विदाई दी गई। इसके बाद गाजे-बाजे के साथ मूर्तियों को गाँव भ्रमण कराते हुए स्थानीय तालाब में विधिपूर्वक विसर्जन किया गया।
वर्तमान में इस परंपरा का निर्वहन नई पीढ़ी की जनकनन्दनी सिन्हा, उनकी पुत्री अर्पणा बाला, अर्पणा बाला की पुत्री शाकम्भरी और पुत्र अंशुमाली, शिवम् जी सहाय तथा सुन्दरम् द्वारा पूरी श्रद्धा और मनोयोग से किया जा रहा है।