पटना से जितेन्द्न कुमार सिन्हा।
मां कात्यायनी की पूजा नवरात्र के छठे दिन की जाती है। विवाह के लिए उपासना करने वाली कन्याओं द्वारा विशेषकर माता के इस रूप को पूजा जाता है।
नवरात्र का पर्व वर्ष में दो बार, चैत्र और शारदीय नवरात्र के रूप में मनाया जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा इन नौ दिनों में होती है, जिसमें छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। शक्ति का यह स्वरूप भक्तों को उनकी इच्छानुसार शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करता है।
मां कात्यायनी की उत्पत्ति
वामन और स्कंद पुराण के अनुसार, मां कात्यायनी का प्राकट्य कात्यायन ऋषि के तप के फलस्वरूप हुआ था, और इन्हीं ने महिषासुर का वध किया। देवताओं की सामूहिक ऊर्जा से जन्मी मां कात्यायनी अपने अद्वितीय शौर्य और शक्ति के लिए जानी जाती हैं। उनका तेज हजारों सूर्यों के समान माना जाता है, और उन्होंने देवताओं द्वारा दिए गए विविध शस्त्रों से महिषासुर को हराया।
धार्मिक महत्व
मां कात्यायनी की उपासना योग साधना के ‘आज्ञा चक्र’ पर केंद्रित होती है। इस दिन साधक अपनी आत्मा को मां के चरणों में समर्पित करता है और अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति करता है। उनकी आराधना से व्यक्ति को अर्थ, धर्म, काम, और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है, और रोग, शोक व भय का नाश होता है।
विवाह के लिए विशेष उपासना
जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब होता है, वे मां कात्यायनी की नवरात्र के दौरान विशेष उपासना करती हैं। उनके लिए एक विशेष मंत्र है:
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
यह मंत्र कन्याओं के लिए मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु अति प्रभावशाली माना जाता है।
स्वरूप और पूजा विधि
मां कात्यायनी का चार-भुजाधारी स्वरूप भक्तों को निर्भय और वरदान देने वाला होता है। वे तलवार, कमल-पुष्प धारण करती हैं और सिंह पर आरूढ़ रहती हैं। उनकी भक्ति से मनुष्य जीवन में सभी प्रकार की कठिनाइयों से मुक्त हो सकता है।
इस प्रकार मां कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं और उनकी पूजा विशेष रूप से विवाह व अन्य मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है