पटना से स्थानीय संपादक जितेंद्र कुमार सिन्हा का आलेख।
भगवान चित्रगुप्त का कार्य और न्याय
भगवान चित्रगुप्त को हिन्दू धर्म में न्याय का देवता माना गया है। वे यमराज के सहयोगी हैं, जो मृत्यु के बाद प्राणियों के पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं।
जब कोई प्राणी मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसके द्वारा किए गए कर्मों का हिसाब चित्रगुप्त द्वारा रखा गया विवरण देखकर किया जाता है। इसी विवरण के आधार पर यमराज यह निर्णय करते हैं कि उसे स्वर्ग में स्थान मिलेगा या नरक में भेजा जाएगा।
चित्रगुप्त का जन्म और उनके 12 पुत्र-
चित्रगुप्त का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के शरीर (काया) से हुआ था। इसलिए इन्हें “कायस्थ” कहा गया है। चित्रगुप्त के दो पत्नियां थीं: शोभावती और नंदिनी। शोभावती से आठ और नंदिनी से चार पुत्रों का जन्म हुआ, जो कुल 12 थे। इन पुत्रों के नाम हैं:
1. भानु (श्रीवास्तव)
2. विभानु (सूरजध्वज)
3. विश्वभानु (निगम)
4. वीर्यभानु (कुलश्रेष्ठ)
5. चारु (माथुर)
6. सुचारु (गौड़)
7. चित्र (चित्राख्य/भटनागर)
8. मतिभान (सक्सेना)
9. हिमवान (अम्बष्ट)
10. चित्रचारु (कर्ण)
11. चित्रचरण (अष्टाना)
12. अतीन्द्रिय (बाल्मीकि)
इन 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकी की कन्याओं से हुआ था, जिससे कायस्थों की मातृवंशीय परंपरा नागवंश से जुड़ी मानी जाती है।
कायस्थ राजवंशों की उपस्थिति-
चित्रगुप्त के वंशजों ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपने कर्तृत्व से प्रमुख स्थान प्राप्त किया। कश्मीर में दुर्लभ वर्धन कायस्थ वंश, पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण भारत में चालुक्य कायस्थ, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ तथा मध्यभारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश का प्रचलन रहा। ये सभी वंश चित्रगुप्त के अनुयायी थे।
भाई दूज पर विशेष पूजा का महत्व-
भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की जयंती मनाई जाती है। इस दिन कायस्थ समुदाय कलम और दवात की पूजा करता है, जिसे “कलम-दवात पूजा” कहते हैं। कथा है कि भगवान राम के राज्याभिषेक में चित्रगुप्त को निमंत्रण नहीं भेजा गया था, जिससे वे क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी कलम एक दिन के लिए रख दी थी। भगवान राम ने बाद में चित्रगुप्त से क्षमा मांगी और उन्हें सम्मान दिया, जिसके बाद से इस परंपरा का आरंभ हुआ। कायस्थ समाज इस दिन लेखन कार्य से दूर रहता है और कलम का प्रयोग नहीं करता।
###पौराणिक कथा और भगवान चित्रगुप्त का योगदान
भगवान चित्रगुप्त के जन्म की कथा अन्य देवताओं से भिन्न है। वेदों और पुराणों में लिखा है कि चित्रगुप्त प्राणियों के कर्मों का गुप्त रूप से चित्र संग्रह करते हैं। आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि मृत्यु के बाद मन में जीवन की घटनाओं के चित्र घूमते रहते हैं। यह विचार कि मृत्यु के बाद प्राणी के कर्मों का लेखा-जोखा होता है, हजारों वर्षों पहले से वेदों में वर्णित है।
### भगवान चित्रगुप्त की स्तुति और महत्व
भगवान चित्रगुप्त का एक प्राचीन मंदिर अयोध्या में स्थित है, जिसे “धर्म हरि मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहां दर्शन किए बिना तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है। जब राजतिलक के बाद गुरु वशिष्ठ और भगवान राम ने भगवान चित्रगुप्त से क्षमायाचना की, तभी चित्रगुप्त ने दोबारा कलम उठाकर कर्मों का लेखा-जोखा करना आरंभ किया। इस दिन के बाद से ही कायस्थ समाज को दान लेने का विशेष अधिकार प्राप्त हुआ।
### निष्कर्ष
भगवान चित्रगुप्त को सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश और पाप-पुण्य का हिसाब रखने वाले देवता के रूप में माना जाता है। उनकी पूजा के माध्यम से न्याय और सत्य की अवधारणा को समझा जाता है। भाई दूज पर चित्रगुप्त की विशेष पूजा की परंपरा भी भारतीय संस्कृति में न्यायप्रियता और धर्म का प्रतीक है।