भारत में गाड़ी खरीदते समय सबसे बड़ा सवाल होता है—पेट्रोल या डीज़ल? दोनों के अपने फायदे व सीमाएं हैं और उपभोक्ता को अपनी जरूरत के अनुसार चुनाव करना पड़ता है।
पेट्रोल कारों की बात करें तो ये आमतौर पर हल्की, शांत और किफायती मेंटेनेंस वाली होती हैं। पेट्रोल इंजन की तकनीक सरल होती है, जिससे इनका रख-रखाव डीज़ल के मुकाबले सस्ता पड़ता है। शहरों में छोटी दूरी चलाने वालों के लिए पेट्रोल कारें एक बेहतर विकल्प मानी जाती हैं। BS6 के बाद पेट्रोल इंजन में पावर और माइलेज दोनों में सुधार हुआ है।
वहीं, डीज़ल कारें लंबी दूरी और हाईवे ड्राइविंग के लिए बेहतरीन मानी जाती हैं। डीज़ल इंजन टॉर्क ज़्यादा देते हैं जिससे भारी लोड या पहाड़ी रास्तों पर चलाने में आसानी होती है। पहले डीज़ल कारें माइलेज में काफी आगे थीं, लेकिन BS6 नियमों के बाद पेट्रोल और डीज़ल में माइलेज का अंतर कम हो गया है।
डीज़ल कारों की एक बड़ी कमी है कि इनका सर्विस खर्च ज्यादा आता है और इंजिन के पार्ट्स भी महंगे होते हैं। साथ ही, कई बड़े शहरों में डीज़ल गाड़ियों पर 10 साल की सीमा लागू है, जो एक बड़ी चुनौती है। पेट्रोल कारों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती।
प्रदूषण के मामले में पेट्रोल कारें अपेक्षाकृत साफ मानी जाती हैं, हालांकि आधुनिक डीज़ल इंजन भी काफी बेहतर हो चुके हैं।
सारांश में—
- कम उपयोग, शहर में ड्राइविंग, कम बजट → पेट्रोल बेहतर
- ज्यादा चलाते हैं, लंबी दूरी, हाईवे → डीज़ल फायदे का सौदा
अंततः आपकी उपयोगिता और बजट के हिसाब से ही सही विकल्प चुना जाना चाहिए।












