पटना से जितेंद्र कुमार सिन्हा।
पत्रकार बीमा योजना के तहत बीमित पत्रकार के बीमार पड़ने पर इंश्योरेंश कंपनियाँ भुगतान में आनाकानी कर रही है। यानी प्रीमियम लेकर सरकार से वादाखिलाफी करने का आरोप इंश्योरेंस कंपनी पर लग रह है।
नतीजतन बीमा कराने के बावजूद उन्हें हॉस्पिटल में खुद भुगतान करना पड़ रहा है।
जिससे पत्रकारगण अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।इससे आक्रोशित कई पत्रकारों ने इन्शयोरेंश कंपनी को ब्लैक लिस्टेट करने की मांग की हैं।
बिहार सरकार ने राज्य के 676 मीडिया कर्मियों के लिए “बिहार पत्रकार बीमा योजना” के तहत नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से अनुबंध किया है। जिसमें स्वास्थ्य बीमा और मेडिक्लेम की सुविधा प्रदान की जाती है। इस योजना के तहत, पत्रकारों को 5 लाख तक की मेडिक्लेम राशि दी जाती है। लेकिन कई बार पत्रकारों को समय पर कैशलेस सुविधा नहीं मिल पाती, जिससे उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वर्तमान वर्ष में भी ऐसी ही स्थिति देखी गई है। पोर्टल के संपादक मिथिलेश कुमार पाठक को, अचानक तबीयत खराब होने पर 24 सितंबर 2024 को राज ट्रस्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। अस्पताल ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा जारी हेल्थ कार्ड का उपयोग करते हुए 85 हजार रुपये की चिकित्सा के लिए थर्ड पार्टी एमडी इंडिया के माध्यम से रिक्वेस्ट भेजी।
प्रारंभिक चरण में कंपनी ने मात्र 22,300 रुपये की मंजूरी दी और बाकी रकम डिस्चार्ज के बाद देने का वादा किया।
हालांकि, डिस्चार्ज के बाद, जब अस्पताल ने बाकी बिल का भुगतान मांगा, तो नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने अप्रूवल और बिल दोनों को रद्द कर दिया, जिससे मिथिलेश कुमार पाठक को खुद भुगतान करना पड़ा।
इस घटना से पत्रकारों में आक्रोश है, कई पत्रकारों ने बिहार सरकार से मांग की है कि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जाए।
ताकि भविष्य में इस प्रकार की मानसिक और आर्थिक यातनाओं से अन्य पत्रकारों को बचाया जा सके।