पटना
चुनाव में करोड़ों खर्च करने वाले बाढ़ पीड़ित जनता की मदद को भी आगे आएं: पप्पू
By Deshwani | Publish Date: 24/8/2017 6:40:52 PM
- जन प्रतिनिधियों पर सवाल खड़े कर सांसद ने शुरू की नई बहस
पटना। देशवाणी न्यूज नेटवर्क
जन अधिकार पार्टी (लो.) के संरक्षक व मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव ने बिहार में आई बाढ़ पर बड़ी बहस छेड़ी है और पूछा है कि नेता क्यों नहीं जा रहे बाढ़ से परेशान लोगों के बीच? सांसद पप्पू यादव इन दिनों पूरी तरह बाढ़ से प्रभावित कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल में कैंप कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने संकट की घड़ी में चुनाव में करोड़ों रुपए खर्च करने वाले जनप्रतिनिधि पर सवाल खड़ा कर बड़ी बहस छेड़ी है।
श्री यादव ने इस बाबत कहा कि वे पिछले कई दिनों से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में हैं, वहीं दूसरे सभी नेता सो रहे हैं। दूसरे नेता क्यों नहीं आ रहे हैं बाढ़ पीडि़तों के बीच। बाढ़ से करीब दो करोड़ की आबादी प्रभावित है। मृतकों की संख्या गिनती नहीं की जा सकती है। ऐसी हालात देखकर रोना आता है। लोग भूखे-प्यासे हैं। सरकार की राहत ठीक से सबों के पास अब भी नहीं पहुंच पाई है।
उन्होंने कहा कि इस भीषण त्रासदी के समय हम आपसे कुछ सवालों के साथ मुखातिब होना चाहते हैं, जवाब आपको ही तलाशने हैं। क्या यह सही नहीं है कि मुखिया का चुनाव लड़ने को लोग 25-25 लाख रुपये तक खर्च कर देते हैं? क्या यह सही नहीं है कि वार्ड समिति/पंचायत समिति का सदस्य बनने को 10 लाख रुपये तक का खर्च किया जाता है? क्या यह सही नहीं है कि जिला परिषद और नगर निकाय का प्रधान बनने को 1 करोड़ से 3 करोड़ रुपये तक खर्च किये जाते हैं ? क्या यह सही नहीं है कि बिहार विधान सभा का चुनाव लड़ने को प्रत्येक चुनाव में 1 करोड़ से 5 रुपये तक खर्च किये जाते हैं, चाहे कागज पर जितना कम खर्च क्यों न दिखाया जाता हो? क्या यह सही नहीं है कि लोक सभा का चुनाव लड़ने को 5 करोड़ से 10 करोड़ रुपये तक खर्च किये जाते हैं?
सांसद ने कहा कि यदि आप हमारी बातों से सहमत हैं, तो जवाब दें कि लाखों-करोड़ों खर्च करने वाले ये लोग अभी बाढ़ में फंसे और भूख से बिलबिलाते अपनी पंचायत और क्षेत्र के लोगों के लिए क्या चावल-दाल की व्यवस्था भी नहीं कर सकते हैं। हम कहते हैं कि कर सकते हैं। हम भी करने की कोशिश कर रहे हैं। हम इस बहस को बस इसलिए छेड़ रहे हैं, ताकि कुछ और लोग बाढ़ पीडि़तों की मदद को आगे आएं। आप जिनसे वोट मांगने जाते हैं, उनकी मदद में वे आगे आएं। कुछ तो परेशानी कम होगी।
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