नई दिल्ली, (हि.स.)। महराष्ट्र में पुणे-कोरेगांव में हुई जातिय हिंसा की छाया में बुधवार को उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने महाराष्ट्र के प्रमुख दलित नेता रामदास अठावले की जीवनवृत पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि जातिय विद्वेष और संघर्ष से किसी का भला नहीं होगा।
केन्द्र में मंत्री एवं दलित नेता रामदास अठावले पर लिखी पुस्तक ‘भारत के राजनेता’ के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विरोध की जगह पिछड़ों के उत्थान के लिए हम क्या कर रहे हैं इस पर राजनीति होनी चाहिए।
श्री नायडू ने कहा, ‘‘सबका हित इसी में है कि महाराष्ट्र में शांति आनी चाहिए देश में शांति होनी चाहिए और जो परिवर्तन आना चाहिए वह मानसिकता में परिवर्तन आना चाहिए। केवल मुद्दों को उठाना व आंदोलन करना ठीक नहीं है।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि इतने सालों के बाद भी ‘दलित बनाम नॉन दलित’ और ‘फॉरवर्ड वर्सेस बैकवर्ड’ का संघर्ष चल रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे में एक को दूसरे के खिलाफ लड़वाने और हिंसा से नुकसान कमजोर वर्ग का ही होगा।
उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को कहा कि अगर समाज में परिवर्तन लाना है राजनीति से जाति से अलग होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में ही नहीं पहले भी राजनीतिक लाभ उठाने के लिए जाति का प्रयोग होता रहा हैं। उन्होंने कहा कि कोई राजनीतिक दल एक जाति के वोट के आधार पर जीत नहीं सकता उसको सारे समाज का वोट चाहिए।
बाबा साहेब भीम राव अम्बेडक का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमें यह समझाना चाहिए कि यह देश हमारा है इसलिए शांति के साथ परिवर्तन लाना चाहिए । डॉ. अंबेडकर समाज के नेता थे, देश के नेता थे। उन्होंने बड़े ही धैर्य के साथ समाज हित में कार्य किया । उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम तबतक स्वयं को सभ्य समाज नहीं कह सकते जबतक हम जाति, रंग और पंथ के आधार पर फैले भेदभाव को नहीं मिटा देते।
श्री नायडू ने कहा कि समाज में किसी प्रकार की असमानता देखकर उसका विरोध करना उचित है। पुस्तक में आठवले जी के साक्षात्कार में बताये गये बहुत महत्वपूर्ण विषय हैं। विशेषत: उनकी शांतिपूर्वक विरोध और आंदोलन की नीति लोकतन्त्र को सुदृढ बनाती है। ‘भारत के राजनेता’ पुस्तक राजीव सुमन द्वारा लिखी गई है और द हाजिनालिज्ड पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।