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मन की बात: धार्मिक स्थलों पर सफाई पर सबरीमाला मंदिर, पुलिस अधिकारी पी. विजयन का उदाहरण
By Deshwani | Publish Date: 31/12/2017 6:13:32 PM
मन की बात: धार्मिक स्थलों पर सफाई पर सबरीमाला मंदिर, पुलिस अधिकारी पी. विजयन का उदाहरण

 नई दिल्ली, (हिस)। 'स्वच्छ भारत अभियान' को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2017 के आखिरी रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में धार्मिक स्थलों पर साफ-सफाई को लेकर बात की। इस मुद्दे पर उन्होंने केरल के सबरीमाला मंदिर परिसर में एक पुलिस अधिकारी पी. विजयन द्वारा डाली गई स्वच्छता की परंपरा का जिक्र किया। 

अपने रेडियो कार्यक्रम में धार्मिक स्थलों पर स्वच्छता को लेकर बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि हमारे देश के ही नहीं, जब भी कभी विश्व के प्रसिद्ध धार्मिक-स्थलों की चर्चा होती है तो केरल के सबरीमाला मंदिर की बात होनी बहुत स्वाभाविक है। विश्व-प्रसिद्ध इस मंदिर में, भगवान अय्यप्पा स्वामी का आशीर्वाद लेने के लिए हर वर्ष करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। जहां इतनी भारी संख्या में श्रद्धालु आते हों, जिस स्थान का इतना बड़ा माहात्म्य हो, वहां स्वच्छता बनाये रखना कितनी बड़ी चुनौती हो सकती है? और विशेषकर उस जगह पर, जो पहाड़ियों और जंगलों के बीच स्थित हो लेकिन इस समस्या को भी संस्कार में कैसे बदला जा सकता है, समस्या में से उबरने का रास्ता कैसे खोजा जा सकता है और जन-भागीदारी में इतनी क्या ताक़त होती है- ये अपने आप में सबरीमाला मंदिर एक उदाहरण के तौर पर है। पी. विजयन नाम के एक पुलिस अफ़सर ने ‘पुण्यम पुन्कवाणम’, एक कार्यक्रम शुरू किया और उस कार्यक्रम के तहत, स्वच्छता के लिए जागरुकता का एक स्वैच्छिक-अभियान शुरू किया। जिसे एक ऐसी परम्परा बना दी कि जो भी यात्री आते हैं, उनकी यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि वो स्वच्छता के कार्यक्रम में कोई-न-कोई शारीरिक श्रम न करते हों। इस अभियान में न कोई बड़ा होता है, न कोई छोटा होता है। हर यात्री, भगवान की पूजा का ही भाग समझ कर कुछ-न-कुछ समय स्वच्छता के लिए करता है, काम करता है, गन्दगी हटाने के लिए काम करता है। हर सुबह यहां सफाई का दृश्य बड़ा ही अद्भुत होता है और सारे तीर्थयात्री इसमें जुट जाते हैं। कितनी बड़ी सेलेब्रिटी क्यों न हो, कितना ही धनी व्यक्ति क्यों न हो, कितना ही बड़ा अफ़सर क्यों न हो, हर कोई एक सामान्य-यात्री के तौर पर इस ‘पुण्यम पुन्कवाणम’ कार्यक्रम का हिस्सा बन जाते हैं, सफाई को करके ही आगे बढ़ते हैं। हम देशवासियों के लिए ऐसे कई उदाहरण हैं। सबरीमाला में इतना आगे बढ़ा हुआ ये स्वच्छता-अभियान और उसमें ‘पुण्यम पुन्कवाणम’, ये हर यात्री के यात्रा का हिस्सा बन जाता है। वहां कठोर-व्रत के साथ स्वच्छता का कठोर-संकल्प भी साथ-साथ चलता है।
 
पीएम मोदी ने 'मन की बात' में जम्मू-कश्मीर के युवाओं के दिए उदाहरण
 
 साल 2017 के आखिरी दिन और आखिरी रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीरी युवाओं के उदाहरण दिए और उनकी इच्छाशक्ति को सलाम किया। अपने कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) टॉपर अंजुम बशीर खान खट्टक की अब तक की जिंदगी की कहानी का जिक्र किया। साथ ही कश्मीरी लड़कियों से अपनी मुलाकात और कश्मीरी लड़कियों को सपनों और दृढ़ इच्छाशक्ति का जिक्र भी किया। 
'मन की बात' रेडियो कार्यक्रम में कहा कि ऐसे अनेक लोग हैं जो अपने-अपने स्तर पर ऐसे कार्य कर रहे हैं जिनसे कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। वास्तव में, यही तो ‘न्यू इंडिया’ है, जिसका हम सब मिल कर निर्माण कर रहे हैं। आइए, इन्हीं छोटी-छोटी खुशियों के साथ हम नव-वर्ष में प्रवेश करें, नव-वर्ष की शुरुआत करें और ‘पॉजिटिव इंडिया’ से ‘प्रोग्रेसिव इंडिया’ की दिशा में मजबूत कदम बढ़ाएं। जब हम सब सकारात्मकता की बात करते हैं तो मुझे भी एक बात आप लोगों से साझा करने का मन करता है। हाल ही में मुझे कश्मीर के प्रशासनिक सेवा के टॉपर अंजुम बशीर खान खट्टक की प्रेरणादायी कहानी के बारे में पता चला। उन्होंने आतंकवाद और घृणा के दंश से बाहर निकल कर कश्मीर प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में टॉप किया है। आप ये जानकर के हैरान रह जाएंगे कि 1990 में आतंकवादियों ने उनके पैतृक-घर को जला दिया था। वहां, आतंकवाद और हिंसा इतनी अधिक थी कि उनके परिवार को अपनी पैतृक-ज़मीन को छोड़ के बाहर निकलना पड़ा। एक छोटे बच्चे के लिए उसके चारों ओर इतनी हिंसा का वातावरण, दिल में अंधकारात्मक और कड़वाहट पैदा करने के लिए काफ़ी था - पर अंजुम ने ऐसा नहीं होने दिया। उन्होंने कभी आशा नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना - जनता की सेवा का रास्ता। वो विपरीत हालात से उबर कर बाहर आए और सफलता की अपनी कहानी ख़ुद लिखी। आज वो सिर्फ जम्मू और कश्मीर के ही नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं। अंजुम ने साबित कर दिया है कि हालात कितने ही ख़राब क्यों न हों, सकारात्मक कार्यों के द्वारा निराशा के बादलों को भी ध्वस्त किया जा सकता है।
अभी पिछले हफ़्ते ही मुझे जम्मू-कश्मीर की कुछ बेटियों से मिलने का अवसर मिला। उनमें जो जज़्बा था, जो उत्साह था, जो सपने थे और जब मैं उनसे सुन रहा था, वो जीवन में कैसे-कैसे क्षेत्र में प्रगति करना चाहती हैं। और वो कितनी आशा-भरी ज़िन्दगी वाले लोग थे। उनसे मैंने बातें की, कहीं निराशा का नामोनिशान नहीं था - उत्साह था, उमंग था, ऊर्जा थी, सपने थे, संकल्प थे। उन बेटियों से, जितना समय मैंने बिताया, मुझे भी प्रेरणा मिली और ये ही तो देश की ताकत हैं, ये ही तो मेरे युवा हैं, ये ही तो मेरे देश का भविष्य हैं।
 
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