इस्लामाबाद, (हि.स.)। पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज और उनके पति को अपने खिलाफ राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो द्वारा (एनएबी) लंदन में परिवार के स्वामित्व वाली संपत्तियों से संबंधित दर्ज किए गए मामले में सोमवार को जमानत मिल गई है। लेकिन अदालत ने पेशी से स्थायी छूट के लिए नवाज शरीफ की याचिका खारिज कर दी।
डॉन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार तड़के लंदन से इस्लामाबाद पहुंचने पर एनएबी की टीम ने मरियम के पति सेवानिवृत्त कैप्टन मुहम्मद सफदर को हिरासत में ले लिया था, क्योंकि वह पूर्व सुनवाइयों के दौरान अदालत में पेश नहीं हुए थे। जवाबदेही अदालत ने दो अक्टूबर को शरीफ के बेटों और कैप्टन सफदर के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए थे।अदालत ने उन्हें 50 लाख रुपये के मुचलके पर जमानत दी है।
अदालत में पेश होने के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में मरियम ने कहा कि पहले से ही सजा मिलने (नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराए जाने) के बावजूद उनके परिवार पर मामला चलाया जा रहा है।
मरियम ने कहा, “ यह जांच फैसले के दिन तक तब तक चलेंगी, जब तक कि कुछ उभरकर कुछ सामने नहीं आता जिसमें वह (नवाज शरीफ) या उनके परिवार का कोई सदस्य पकड़ा जाए।"
मरियम ने कहा कि संयुक्त जांच टीम द्वारा उनके पारिवारिक व्यवसाय के संबंध में पूछे गए सवाल हमेशा सवाल ही बने रहेंगे, क्योंकि ये झूठे आरोप हैं, जिनका कोई जवाब नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि उनके भाई हसन और हुसैन नवाज अदालत में कब पेश होंगे, उन्होंने कहा कि वे अपना फैसला खुद लेंगे और वे विदेश में रहते हैं, इसलिए पाकिस्तान का कानून उन पर लागू नहीं होता है।
'डॉन न्यूज' की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत में नवाज शरीफ द्वारा दायर एक आवेदन पर भी सुनवाई हुई, जिसमें अदालत में उपस्थित होने से स्थायी छूट की मांग की गई थी। जवाबदेही अदालत के न्यायाधीश मोहम्मद बशीर ने पूर्व प्रधानमंत्री के आवेदन पर उनके वकील की दलील सुनी और पहले अपने निर्णय को सुरक्षित रखा लिया। लेकिन बाद में अदालत ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
बहरहाल, नवाज दपनी पत्नी को देखने के लिए लंदन गए हुए हैं। इस आधार पर उनके वकील अदालत में पेशी से स्थायी छूट मांग रहे थे।
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने 28 जुलाई को एनएबी को नवाज शरीफ और उनके बच्चों के खिलाफ छह सप्ताह के भीतर जवाबदेही अदालत में मामला दाखिल करने का आदेश दिया था और ट्रायल कोर्ट को मामले पर छह महीने के भीतर फैसला लेने का निर्देश दिया था।