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बिहार
देखना होगा कि पांच राज्य में होने वाली चुनाव में जाति गणना सर्वेक्षण का क्या असर होता है
By Deshwani | Publish Date: 28/10/2023 10:46:12 PM
देखना होगा कि पांच राज्य में होने वाली चुनाव में जाति गणना सर्वेक्षण का क्या असर होता है

पटना जितेन्द्र कुमार सिन्हा। विधानसभा आम चुनाव की शुरुआत, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में शुरू हो गया है। नवंबर महीने में होने वाले इस चुनाव में सभी  राज्यों के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तैयार है। ऐसा लगता है कि देश की आजादी के बाद, पहली बार यह चुनावी जंग पूरी तरह लगभग जाति पर केन्द्रित होगी। क्योंकि बिहार सरकार ने जाति गणना सर्वेक्षण कराकर राजनीतिक हलचल तेज कर दिया है। इसी का परिणाम है कि इन राज्यों में हो रहे चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने देशव्यापी जाति गणना सर्वेक्षण (कास्ट सर्वे) कराने की मांग रखी है। वहीं कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने जिसकी जितनी आबादी, उसका उतना हक का नारा दे दिया है। बिहार सरकार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने जाति गणना सर्वेक्षण के संबंध में कहा है कि इस रिपोर्ट से गरीबों के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी और अब केंद्र सरकार को यह काम देशभर में करना चाहिए।

 
 
 
 
वर्ष 2011 में ही कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार ने सर्वे कराया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं हुई है। कहा जाय तो कर्नाटक सरकार ने आर्थिक-सामाजिक सर्वे और जाति गणना कराकर भी, उस आंकड़े को ठंडे बस्ते में डाल रखा है। जबकि बिहार सरकार जाति गणना सर्वेक्षण कराकर जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। आँकड़ों के अनुसार बिहार में पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 63 फीसदी है। जिसमें 27.12 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 36.01 फीसदी अति पिछड़ा वर्ग है। दलितों की संख्या 19.65 फीसदी, सामान्य वर्ग 15.52 फीसदी और आदिवासी 1.68 फीसदी है।
 
 
 
 
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में कहा है कि विकास विरोधी लोग आज भी जात- पात के नाम पर देश को बांट रहे हैं। महागठबंधन ने जाति गणना को राजनीति मंच पर उठाकर बड़ा दांव खेला है। आंकड़ों को देखा जाय तो मोदी कैबिनेट में 29 मंत्री ओबीसी समूह से आते हैं। बीजेपी के 29 फीसदी यानी 85 सांसद ओबीसी हैं। पार्टी के कुल 1358 विधायकों में से 365 यानी 27 फीसदी ओबीसों के हैं। उसके 163 एमएलसी यानी विधान परिषद सदस्य हैं, जिनमें 65 ओबीसी हैं।
 
मोदी सरकार की पहल ने विपक्षी खेमों का गणित को खराब कर दिया है। धर्म और जाति के मिले-जुले समीकरण को काटने के लिए अब विपक्ष जाति गणना सर्वेक्षण (कास्ट सर्वे) का मुद्दा लाया है। यह सही है कि जाति गणना सर्वेक्षण (कास्ट सर्वे) के माध्यम से ओबीसी वोटरों तक विपक्ष सीधी पहुंच सुनिश्चित कर सकता है। 
 
 
 
 
अब प्रश्न यह उठता है कि जो पार्टियां एक परिवार और एक जाति में फंसी हुई है या फंस गई है क्या वे, पार्टियाँ सभी ओबीसी जातियों में अपनी पैठ बना सकेगी? टिकट बंटवारे के समय  ओबीसी की सभी जातियों और ओबीसी महिलाओं को तरजीह दे सकेगी?  इसका उत्तर  आगामी  चुनाव के दौरान ही मिलेगा। जाति गणना सर्वेक्षण (कास्ट सर्वे)  के असर की सीमाएं भी उसी से स्पष्ट होगी। 
 
 
 
 
 
ध्यातव्य है कि, विपक्ष को लगता है कि, हिंदुत्व की राजनीति की वजह से उसकी लगातार हार हो रही है। इसलिए देश में जाति गणना सर्वेक्षण (कास्ट सर्वे) कराने को मांग उठी है।
लेकिन विपक्ष की महागठबंधन की बैठक में तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव) के विरोध के कारण इसे राजनीतिक प्रस्ताव से हटा दिया गया है। महागठबंधन की समन्वय समिति ने सभी सहयोगी दलों से बातचीत करके रास्ता निकालने की बात कही है।
 
 
 
 
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक बड़ी ताकत उनकी हिंदुत्व समर्थक छवि है, लेकिन यह तथ्य भी कि वे ओबीसी समुदाय के हैं। बीजेपी का यह कार्ड ऐसा है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव ही नहीं, तमाम विधानसभा चुनावों में भी प्रदर्शन बेहतर रहा है। यह भी सही है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ओबीसी नेताओं को सरकार/संगठन में अहमियत दी जा रही है।
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