ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी के केसरिया से दो गिरफ्तार, लोकलमेड कट्टा व कारतूस जब्तभारतीय तट रक्षक जहाज समुद्र पहरेदार ब्रुनेई के मुआरा बंदरगाह पर पहुंचामोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगात
राष्ट्रीय
लुइतपारिया हिन्दू सम्मेलन का उद्देश्य अपने देश को खड़ा करना : मोहन भागवत
By Deshwani | Publish Date: 21/1/2018 6:17:50 PM
लुइतपारिया हिन्दू सम्मेलन का उद्देश्य अपने देश को खड़ा करना : मोहन भागवत

गुवाहाटी (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि इस लुइतपारिया हिन्दू सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य किसी एक संगठन को प्रभावी बनाने का नहीं, बल्कि अपने देश को खड़ा करने का है। ये बातें रविवार को मोहन भागवत ने राजधानी के खानापाड़ा वेटरनरी कॉलेज मैदान में संघ के उत्तर असम प्रांत के तत्वावधान में आयोजित लुइतपारिया हिन्दू सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर कही।

उन्होंने कहा कि 92 वर्षों की साधना का यह फल है कि आज हम इस तरह से गुवाहाटी खानापाड़ा के इस खेल मैदान में एकत्रित हुए हैं। यह विहंगम दृश्य जितना ही आनंददायक आपके लिए है, उतना ही मेरे लिए भी है। 92 वर्ष पूर्व देश के मध्य भाग में यह साधना शुरू हुई थी, जो आज पूरे देश में फैली हुई है।

उन्होंने कहा कि हिंदुत्व का अर्थ स्वार्थ साधना का उद्यम नहीं है। स्वहित, स्वदेशहित और विश्वहित की त्रिवेणी साधना इसका उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि 2000 वर्ष पहले से ही विश्व शांति के लिए अनेक प्रयोग किए गए हैं। लेकिन, शांति का नया मार्ग मिलेगा भारत से ही। भारत दुनिया का प्राचीनतम राष्ट्र है। और अपने प्राचीनतम राष्ट्र होने का दायित्व भारत को निभाना है। भारत को दुनिया को नया रास्ता देना है, दिखाना है । इसके लिए भारत के उठ खड़ा होने का समय आ गया है।

उन्होंने कहा कि यह कार्य कठिन अवश्य है। परिस्थितियां प्रतिकूल अवश्य हैं, लेकिन असंभव नहीं। सूर्य सतत संपूर्ण विश्व को प्रकाश देता रहता है। लेकिन, कभी भी छुट्टी पर नहीं जाता। सिर्फ एक पहिया पर यह चलता है। कहीं कोई रास्ता नहीं है। सारथी के पैर भी नहीं हैं। फिर भी प्रतिदिन नियमपूर्वक सूर्य निकलता है। हमारा कहने का तात्पर्य है कि साधन, उपकरण महत्वपूर्ण नहीं है। सत्व महत्वपूर्ण है। सत्व के आधार पर ही कार्य सिद्धि होती है और उसे सत्व को संपूर्ण भारतीयों के बीच जगाना है। यही काम संघ कर रहा है।

उन्होंने कहा कि हमारे खान-पान, वेशभूषा, रहन-सहन, धर्म सभी अलग हैं। फिर भी हमारे भाव एक हैं। सुख कहीं बाहर नहीं है। सुख को अंदर ढूंढने की जरूरत है। संतोष सुख देता है, इसलिए अंदर के सत्य को जानो।

सर संघचालक ने कहा कि हम भारतीय भेद नहीं करते। विविधताओं के बीच अंतर्निहित एकता का दर्शन करते हैं। सब की सेवा करो। तभी यह मानव जन्म सफल होगा। सभी परिस्थिति में सम रहकर जीने की कला और किसी भी देश के पास नहीं है। यह कला हमें हमारी मातृभूमि ने दी है। उन्होंने कहा कि यह समृद्धि की भूमि है। यहां परिश्रम करो और सुख पूर्वक जियो। यह भूमि सबके लिए चिंतन करने का अवसर हमें देती है। क्योंकि, इस भूमि की प्रकृति के कारण हमें यह सब मिला है। उन्होंने कहा कि हमारी दृष्टि संपूर्ण सृष्टि को जोड़ने वाली है।

सरसंघचालक ने कहा कि हमारा वेद दुनिया का सबसे प्राचीन साहित्य है। अथर्ववेद कहता है कि पृथु सम्राट ने इस भूमि को कृषि योग्य बनाया था। इसीलिए इसका नाम पृथ्वी पड़ा। विविधता में एकता हमारी परंपरा है। मोहन भागवत ने होमोसेपियंस नामक पुस्तक को उद्धृत करते हुए कहा कि मनुष्य की सफलता का कारण यह है कि इसके अंदर तकनीकी क्षमता है। यह सभी चीजों को समझता है और चिंतन करके उसका उपयोग कर लेता है। विश्वास रखकर और दूसरों से विश्वास रखवाकर चल सकता है। हम जितने अधिक लोगों को साथ लेकर चलेंगे-उतने ही सुखी होंगे।

उन्होंने कहा कि पाश्चात्य नजरिया युग को व्यापार से जोड़ने का है। लेकिन, यह प्रयोग भी सफल नहीं हुआ। सब के अलग-अलग स्वार्थ हैं। इसीलिए व्यापार से इसे जोड़ा नहीं जा सकता है। सुख के अन्वेषण को लेकर दुनिया भर में 2000 वर्षों में अनेक प्रयोग हुए हैं । लेकिन, सुख से ज्यादा हिंसा और घृणा का प्रसार हुआ है । और स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि संपूर्ण मानव जाति पर संकट आ गया है।

उन्होंने कहा कि जो एक व्यक्ति, समूह, सृष्टि और संपूर्ण विश्व को साथ लेकर चलता है उसके अंदर सत्य, करुणा, सुचिता, तपस्या -ये धर्म के चारों तत्व विद्यमान होते हैं। उन्होंने श्रीमंत शंकरदेव की वाणी को उद्धृत करते हुए कहा कि कोटि-कोटि जन्म के पुण्य धर्म के संचित होने के कारण ही हमारा भारत में जन्म हुआ है। भारत में अल्पकाल का जीवन अन्य स्थानों पर युगों-युगों के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि, भारत में समरसता है और सबके प्रति करुणा, दया, क्षमा है।

मोहन भागवत ने कहा कि भारत के अस्तित्व से भारत के प्रत्येक प्रांत, प्रत्येक धर्म, प्रत्येक भाषा का अस्तित्व जुड़ा हुआ है। हम मानवता का संदेश पूरे विश्व में फैलाने वाले हैं। भारतीय के आचरण से विश्व का सबसे सहिष्णु एवं समभाव रखने वाले देश के रूप में पहचान मिली है। हिंदू भाग का तात्पर्य विविधताओं को साथ लेकर चलना है। हिंदुत्व पर चलना सभी की अच्छाइयों को साथ लेकर चलना है।

सरसंघचालक ने बांग्लादेश और पाकिस्तान का हवाला देते हुए कहा कि भारत की प्राचीन सभ्यता के सारे प्रतीक चिन्ह सिंधुघाटी, सरस्वती, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि सभी पाकिस्तान में है। फिर भी पाकिस्तान ने आजादी के समय यह नहीं कहा कि भारत के सभी प्रतीक चिन्ह हमारे यहां हैं इसलिए भारत नाम हमें मिलना चाहिए। ऐसा पाक ने कभी नहीं कहा। क्योंकि, हमारे नाम से ही हमारी पहचान है। और, हम सब से अलग हैं। भारत का अर्थ हिंदू राष्ट्र है।

जब तक हिंदुत्व है, तब तक भारत है। हमारे यहां सब की अलग-अलग भाषाएं, खानपान, वेशभूषा, धर्म हैं। फिर भी हम सब एक हैं। हम सभी को प्रश्रय देकर चलते हैं। उन्होंने कहा कि हम हिंदू राष्ट्र हैं और हिंदुत्व के आधार पर ही हमारा अस्तित्व टिका रहेगा। हम किसी के प्रति विद्वेश नहीं रखते। हम सभी की सुख, शांति चाहते हैं। हम सभी प्रकार के लोगों को प्रश्रय देकर चलते हैं। लेकिन, दुष्ट तत्वों से बचने के लिए कभी लड़ना भी पड़ता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से शत्रुता हम 15 अगस्त 1947 को ही भूल गए थे । लेकिन पाकिस्तान आज भी हमारे साथ शत्रुता रखता है। उन्होंने कहा कि संघ इसी समभाव, सहिष्णुता, अनुशासन, त्याग, समर्पण आदि को लेकर चलता है।

उन्होंने उपस्थित जनसमूह से अपील की कि संघ में शामिल होकर, इसके करीब आकर, इसके काम को महसूस करें। और यदि इससे आपको स्वतः प्रेरणा मिलती है, तब आप इसमें शामिल हों।

उन्होंने कहा कि आज के इस कार्यक्रम को कुछ लोग कह रहे हैं कि संघ अपनी शक्ति दिखा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि शक्ति के प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं होती। शक्ति तो स्वयं दिख जाती है। और, हमारी शक्ति डराने के लिए नहीं। हम सबका मंगल चाहते हैं। उत्तम समाज बनाना हमारा उद्देश्य है। प्रत्येक व्यक्ति का परिवर्तन करके राष्ट्र का परिवर्तन करने का हमने बीड़ा उठाया है। और, जिस समाज को अपना भला करना है, उसे खुद ही अपने लिए काम करना होगा।

मोहन भागवत ने सम्मेलन में उपस्थित लोगों से आग्रह किया कि आप केवल हमारे हितैषी और शुभचिंतक बनकर हमारे साथ नहीं रहें, बल्कि स्वयं और अपने बच्चे को हमारी शाखाओं में लायें। संस्कार ग्रहण करें व कराएँ । भारत को विश्व गुरू बनाने के लिए संघ द्वारा चलाए जा रहे अभियान में योगदान दें।
इस मौके पर असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल, केंद्रीय रेल राज्यमंत्री राजेन गोहाईं, असम के मंत्री डॉ. हिमंत विश्वशर्मा, नव कुमार दलै, परिमल शुक्लवैद्य, असम विधानसभा के उपाध्यक्ष दिलीप कुमार पाल समेत अन्य राजनेता मौजूद थे।
मंच पर सरसंघचालक के साथ सर कार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, सरकार्यवाह भगैया जी, सरकार्यवाह सुनिल देशपांडे समेत अन्य संघ के अधिकारी मौजूद थे। उल्लेखनीय है कि असम में 1947 से संघ का कार्य आरंभ हुआ था, उस समय लेकर अब तक जितने भी प्रचारकों ने राज्य में कार्य किया था, वे सभी इस कार्यक्रम में मौजूद थे। वहीं नगालैंड, मेघालय व असम के 12 जनजातियों के राजा, असम के सभी सत्रों के सत्राधिकार (मठ), विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु के साथ ही लगभग कुल एक लाख के आसपास पूर्ण गणवेश व आम नागरिकों ने हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि इतना बड़ा संघ का कार्यक्रम पहली बार गुवाहाटी में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ ध्वजोत्तोलन व वंदन के साथ हुआ। तत्पश्चात शारीरिक, एकांकी व सामूहिक संघ गीत भी आयोजित किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रांत कार्यवाह खगेन सैकिया ने किया, जबकि स्वयंसेवकों का निर्देशन मुख्य शिक्षक अमल दास ने किया।

 

image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS