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लोकसभा चुनाव-2019: भारत में 'एग्जिट पोल्स', कब सटीक निकले चुनाव नतीजे और कब हुए ध्वस्त
By Deshwani | Publish Date: 20/5/2019 10:20:44 AM
लोकसभा चुनाव-2019: भारत में 'एग्जिट पोल्स', कब सटीक निकले चुनाव नतीजे और कब हुए ध्वस्त

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के लिए रविवार को आखिरी चरण का मतदान ख़त्म होने के साथ ही 'एग्जिट पोल्स' के नाम पर विभिन्न समाचार माध्यमों के जरिेए चुनाव नतीजों के पूर्वानुमान का सिलसिला शुरू हो गया। विभिन्न एजेंसियों द्वारा कराए गए एग्जिट पोल्स के बारे में तजुर्बा रखने वालों का मानना है कि वैज्ञानिक पद्धति से वोटरों के बीच यह सर्वे आधारित मात्र पूर्वानुमान है, जो नतीजे के रूप में सटीक भी बैठ सकते हैं और पूरी तरह ध्वस्त भी हो सकते हैं। परिणामों को लेकर यह कोई गारंटी हरगिज़ नहीं देता। 

 
क्या है एग्जिट पोल्स और ओपिनियन पोल्स
चुनाव के दौरान अक्सर समाचार माध्यम एग्जिट पोल्स और ओपिनियम पोल्स दिखाते हैं। ओपिनियन पोल्स चुनाव शुरू होने से पहले लोगों की राय पर आधारित सर्वे होता है  जबकि एग्जिट पोल्स मतदान करके बूथ से बाहर आए मतदाताओं की राय पर आधारित सर्वे होता है। 
 
कब शुरू हुआ एग्जिट पोल्स का प्रसारण
भारत में सबसे पहले 60 के दशक में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटीज़ (सीएसडीएस) ने एग्जिट पोल्स जारी किए थे लेकिन इसका असर तब सामने आया जब एग्जिट पोल्स का प्रसारण शुरू हुआ। 1996 का लोकसभा चुनाव भारत में एग्जिट पोल्स के लिए अहम मोड़ माना जाता है। इस चुनाव के दौरान दूरदर्शन ने सीएसडीएस को ही एग्जिट पोल्स का जिम्मा दिया था। इसके चुनावी नतीजों के पूर्वानुमान में खंडित जनादेश के साथ भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने का अनुमान लगाया गया था। एग्जिट पोल्स के नतीजे सही साबित हुए। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में साथी दलों के साथ सरकार बनाई। यह अलग बात है कि यह सरकार 13 दिनों में ही गिर गई।
 
1998 में जब फिर लोकसभा चुनाव हुए तो एग्जिट पोल्स के क्षेत्र में कई एजेंसियां मैदान में उतर चुकी थीं। इन सभी एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल्स में वाजपेयी के नेतृत्व में भारी-भरकम बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की तस्वीर पेश की थी। चुनाव नतीजे में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को करिश्माई आंकड़े से कम 252 सीटें मिलीं।
 
1999 के लोकसभा चुनाव में एग्जिट पोल्स के नतीजे तक़रीबन सटीक बैठे थे। कारगिल युद्ध में भारतीय विजय अभियान के बाद हुए इस लोकसभा चुनाव में तमाम एजेंसियों ने वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार की भारी-भरकम मतों से सत्ता में वापसी की तस्वीर पेश की थी। इन एजेंसियों ने उस वक्त एनडीए के खाते में 300 सीटों का अनुमान लगाया था। चुनाव नतीजों में एनडीए को 296 सीटें मिलीं।
 
ध्वस्त हुए चुनाव नतीजों के पूर्वानुमान
जिस तरह 1996 का लोकसभा चुनाव एग्जिट पोल्स के लिए मील का पत्थर माना जाता है, उसी तरह 2004 का लोकसभा चुनाव एग्जिट पोल्स के लिए किसी सबक से कम नहीं था। उस चुनाव में वाजपेयी सरकार के भारी बहुमत से सत्ता में वापसी का अनुमान था। भाजपा के पक्ष में माहौल इसलिए भी लग रहा था क्योंकि इससे ठीक पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा में भाजपा की सरकार बनी थी। जब चुनाव नतीजा आया तो तमाम एग्जिट पोल्स ध्वस्त हो गए। एनडीए सत्ता से पीछे छूट गया और यूपीए की सरकार बनी।
 
2009 के एग्जिट पोल्स
ठीक पांच साल पहले के अप्रत्याशित चुनाव परिणामों को देखते हुए एग्जिट पोल्स में शामिल तक़रीबन सभी एजेंसियों ने सुरक्षित दांव आजमाया। एनडीए और यूपीए, दोनों को ही लगभग बराबर की सीटें जीतने का अनुमान लगाया। एक तरह से यह अनुमान भी विफल साबित हुआ क्योंकि एनडीए काफी पीछे छूट गया और मनमोहन सरकार दोबारा सत्ता में आई।
 
मोदी लहर का चुनाव
विभिन्न घोटालों की वजह से खराब हुई छवि के साथ 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरी कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की विदाई का अनुमान तमाम एग्जिट पोल्स में लगाया गया था। सभी एजेंसियों ने नतीजों के पूर्वानुमान का ऐसा खाका खींचा जिसमें नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए के सत्ता में आने का पर्याप्त भरोसा था। हालांकि नतीजे आए तो यह भी अनुमानों से कहीं ज्यादा था। भारी बहुमत के साथ भाजपा और उसके साथी दल सत्ता में आए। भाजपा को अकेले 282 सीटें मिली तो कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई।
 
कब-कब फेल हुए एग्जिट पोल्स
2004 के लोकसभा चुनाव नतीजों को छोड़ भी दें तो कई बार एग्जिट पोल्स, नतीजे से कहीं पीछे छूट गए। 2013 का दिल्ली विधानसभा चुनाव का नतीजा ऐसे ही परिणामों में है जब कोई भी एजेंसी आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत का अनुमान तक नहीं लगा पाई थी। उसी तरह बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम भी कुछ ऐसा ही था जब जेडीयू और आरजेडी के गठबंधन की जीत का अनुमान नहीं लगाया जा सका था। 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भी पूर्वानुमानों से परे साबित हुआ जब भाजपा को साथी दलों के साथ भारी-भरकम बहुमत मिला।
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