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दिशाहीन हो चुकी है मोदी सरकार की विदेश नीति : कांग्रेस
By Deshwani | Publish Date: 19/3/2018 10:42:03 AM
दिशाहीन हो चुकी है मोदी सरकार की विदेश नीति  : कांग्रेस

नई दिल्ली। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'व्यक्ति केन्द्रित विदेश नीति' पर अमल करने का आरोप लगाते हुए आज कहा कि वर्तमान सरकार बड़े देशों के साथ भारत के संबंधों को नहीं संभाल पाई है और विदेश नीति दिशाहीन हो चुकी है। उसने यह भी आरोप लगाया कि सरकार पाकिस्तान, चीन और दूसरी चुनौतियों से निपटने में नाकाम रही है। पार्टी के 84वें महाधिवेशन में विदेश नीति पर पेश प्रस्ताव में पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिंह राव के समय की विदेश नीति की तारीफ करने के साथ मोदी सरकार की विदेश नीति पर जमकर निशाना साधा गया।
 
पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा की ओर से पेश प्रस्ताव में कहा गया है, 'विदेश नीति सदा मजबूत राष्ट्रीय सहमति के साथ तालमेल बिठाकर चलती रही है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा सरकार ने इसे बाधित कर दिया और गलत सलाह पर आधारित उसके कदमों ने राष्ट्रीय सहमति को भंग किया है।"  इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया, "सरकार बड़े देशों के साथ संबंधों को सही ढंग से नहीं संभाल पाई है। उसकी विदेश नीति को लेकर भ्रम की स्थिति है और इसमें दृष्टि एवं दिशा का अभाव है।' विपक्षी पार्टी ने कहा, 'प्रधानमंत्री द्वारा अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की उपेक्षा करने की प्रवृति और आजादी के बाद भारत की उपलब्धियों को झुठलाने की प्रवृति ने विदेशों में भारत की साख घटा दी है।' 
 
उसने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय सबंधों को लेकर दुनिया आज व्यापक संक्रमण के दौर से गुजर रही है। यह दौर अनिश्चितताओं से भरा है और इसमें अप्रत्याशित बदलाव आने वाले हैं। इससे हमारी विदेश नीति के सामने जटिल चुनौतियां आ गई हैं। तेजी से बदलते और अनिश्चित वैश्विक परिस्थितियों में बहुत ही ध्यान से तैयार राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के निर्धारण की जरूरत है। इसके अभाव में वहां पर अस्थाई नीतियों एवं उसके उद्देश्यों में बिना किसी सामंजस्य के प्रतिक्रियावादी निर्णय लिए जा रहे हैं। यह सरकार के लिए बेहद जरूरी है कि वह राष्ट्रीय सहमति को पुनर्स्थापित करे।' 
 
पार्टी ने कहा, 'य​ह चिंता का विषय है कि भारत इस उपमहाद्वीप के पड़ोस में बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है। आजाद भारत में ऐेसा पहले कभी नहीं हुआ कि देश अपने पड़ोस में ही इतना कमजोर हो जाए। एशिया और संपूर्ण विश्व में सार्थक भूमिका निभाने की भारत की आकांक्षाओं पर असर पड़ा है। हमने अपने पड़ोस में वो रिक्तता पैदा की है ​जिसमें दूसरी शक्तियों खासकर चीन को अतिक्रमण करने का मौका मिल गया।' 
 
उसने कहा, ' नेपाल, मालदीव, म्यामां औैर श्रीलंका के हालिया घटनाक्रम गंभीर चिंता का विषय हैं। इनको सावधानी के साथ और समय रहते निवारण किया जाना चाहिए। य​ह सुनुश्चित करने की जरूरत है कि भारत के साथ सबंध पड़ोसी देशों की स्थानीय राजनीति में मुद्दा नहीं बने।'  उसने दावा किया, 'प्रधानमंत्री ने व्यक्ति केन्द्रित विदेश नीति पर अमल किया है। वर्तमान में सरकार की विदेश नीति प्रधानमंत्री के विदेश दौरे और सिर्फ लेन-देन तक सीमित रह गए हैं।' 
 
प्रस्ताव में कहा गया है, 'पार्टी का यह एक सुविचारित नजरिया है कि भाजपा सरकार की विदेश नीति दिशाहीन है और पाकिस्तान के प्रति इसकी नीति त्रासदीपूर्ण है। इस नीति की समीक्षा लंबित है और कोई भी सफल नीति वर्तमान परिस्थितियों और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान देते हुए एक राष्ट्रीय सहमति पर ही आधारित हो सकती है।'  उसने कहा, 'एक प्रभावशाली सुरक्षात्मक कार्रवाई के जरिए सीमापार आतंकवाद का सामना करने के कदम को पूरे देशभर से सहमति मिली है। यह बेहद खेदजनक है कि मौजूदा सरकार ने पाकिस्तान के प्रति बनाई गई नीति को एक विभाजनकारी घरेलू मुद्दा बना दिया है। पाकिस्तान के प्रति अधिक प्रभावकारी और आक्रामक नीतियों का दावा झूठा है और इसके कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिले हैं।' 
 
विपक्षी पार्टी ने कहा, 'यह बताना जरूरी है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में, अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों में लंबे समय से, भारत-पाकिस्तान के तनावों को सफलतापूर्वक हटा दिया गया था। यह एक गंभीर चिंता का विषय है कि अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और पाकिस्तान का उल्लेख एकसाथ होने लगा है जो चिंता का विषय है।'  प्रस्ताव पेश करते हुए आनंद शर्मा ने कहा कि विदेश नीति 'इवेंट मैनजमेंट और फोटो ऑपर्चुनिटी' नहीं हो सकती। इसके लिए गम्भीरता की जरूरत होती है।
 
चीन के साथ संबंधों के संदर्भ में कांग्रेस ने कहा, 'भारत और चीन के बीच एक जटिल और बहुत ही सावधानी बरते जाना वाला संबंध कायम है, क्योंकि चीन एक बड़ा पड़ोसी मुल्क है और एक महत्वपूर्ण व्यापारिक सहयोगी भी है। एक प्रमुख शक्ति के तौर पर चीन का तेजी से उभरना भारत के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण तथ्य है।' उसने कहा, 'चीन के प्रति हमारे रवैये में सिर्फ व्यवहारवाद ही नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें यथार्थवाद भी झलकना चाहिए। हमारा प्रयास दोनों देशों के बीच मौजूद विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश होनी चाहिए।' 
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