कर्नाटक संकट: बागी विधायकों की याचिका पर फैसला सुरक्षित, सर्वोच्च न्यायालय कल सुनाएगा फैसला
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय में कर्नाटक के मामले पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम विधानसभा अध्यक्ष के लिए दिशा-निर्देश नहीं जारी कर सकते कि वे इस्तीफा स्वीकार करने या अयोग्य करार दिये जाने के अपने फैसले कैसे लेंगे। कोर्ट ने कहा कि हमारे सामने सवाल महज इतना है कि क्या ऐसी संवैधानिक बाध्यता है कि स्पीकर अयोग्य करार दिए जाने की मांग से पहले इस्तीफे पर फैसला लेंगे या दोनों पर एक साथ फैसला लेंगे। इस मामले में बहस लंच के बाद दोपहर दो बजे के बाद भी जारी रहेगी।
आज सुबह कर्नाटक के बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलीलें रखीं। मुकुल रोहतगी ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं जबकि कांग्रेस के पक्ष से प्रस्तुत अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें अधूरी रह गईं और वे दो बजे के बाद भी अपनी दलीलें रखेंगे। उसके बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन अपनी दलीलें रखेंगे।
बागी विधायकों की ओर से मुकल रोहतगी ने कहा कि स्पीकर के सामने विधायकों को अयोग्य करार दिये जाने की मांग का लंबित होना, उन्हें इस्तीफे पर फैसला लेने से नहीं रोकता है। ये दोनों अलग-अलग मामले हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के पूछने पर रोहतगी ने सिलसिलेवार तरीके से पहले दिन से बदलते घटनाक्रम की जानकारी कोर्ट को दी। उन्होंने कहा कि विधायक ये नहीं कह रहे हैं कि अयोग्य करार दिए जाने की कार्यवाही खारिज की जाए, वह चलती रहे। लेकिन अब जबकि वे विधायक ही नहीं रहना चाहते हैं। जनता के बीच जाना चाहते हैं, तो ये उनका अधिकार है। स्पीकर इसमें बेवजह बाधा डाल रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट पहुंचे विधायकों की संख्या हटा दी जाए, तो ये सरकार अल्पमत में है।
रोहतगी ने कहा कि विधायक स्पीकर के सामने, मीडिया के सामने कई बार अपनी राय जाहिर कर चुके हैं कि वो अपनी मर्जी से इस्तीफा दे रहे हैं। फिर स्पीकर अब किस बात की जांच चाहते हैं? अगर विधायक विधानसभा में नहीं आना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। रोहतगी ने कहा धारा 190 कहती है कि इस्तीफा मिलने का बाद स्पीकर को जल्द से जल्द उस पर फैसला लेना होता है। स्पीकर फैसले को टाल नहीं सकते। तब चीफ जस्टिस ने पूछा आप किस तरह का आदेश चाहते हैं? रोहतगी ने कहा कि जिस तरह का आपने पहले दिन पास किया था। स्पीकर फैसला समय पर लें। रोहतगी ने कहा कि कांग्रेस की याचिका पर इसी कोर्ट ने रात में सुनवाई की थी और 24 घंटे के अंदर फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। अगर वो आदेश सही था तो अब स्पीकर को इस्तीफा स्वीकार करने के लिए भी कहा जा सकता है। उसी आधार पर न्यायालय विधानसभा अध्यक्ष को भी कह सकता है।
रोहतगी के बाद वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विधानसभा स्पीकर की तरफ से कोर्ट से कहा कि वे तथ्यात्मक रुप से गलत हैं। अयोग्यता से जुड़ी सभी कार्यवाही इस्तीफे के पहले के हैं। अयोग्यता का मामला व्हिप के उल्लंघन का मामला है। सिंघवी ने कहा कि जो इस्तीफा दिया गया है वो वैध नहीं है। इस्तीफे 11 जुलाई को स्पीकर के समक्ष दिए गए उसके पहले नहीं। उसमें भी 4 विधायक अभी भी स्पीकर के समक्ष पेश नहीं हुए हैं। इसका मतलब कि अयोग्यता से जुड़ा मामला इस्तीफे से पहले का है। तब चीफ जस्टिस ने सिंघवी से पूछा कि जब विधायकों ने इस्तीफे खुद जाकर सौंपे तो उनके सुप्रीम कोर्ट आने तक उन पर फैसला क्यों नहीं किया गया। चीफ जस्टिस ने सिंघवी से पूछा कि आखिर क्यों विधायकों के मिलने के लिए समय मांगने के बावजूद स्पीकर उनसे नहीं मिले और आखिरकार विधायकों को कोर्ट आना पड़ा। तब सिंघवी ने कहा ये गलत तथ्य है। स्पीकर ने हलफनामे में साफ किया कि विधायकों ने कोई मिलने के लिए समय नहीं मांगा था।
कोर्ट ने कहा कि स्पीकर हमें हमारे संवैधानिक दायित्वों की याद दिलाते हैं लेकिन खुद फैसला नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि हम अपने हिसाब से फैसला करेंगे। जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने पूछा कि क्या दसवीं अनुसूची और धारा 190 एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? तब सिंघवी ने कहा कि हां। इस्तीफा अयोग्यता से भागने का रास्ता नहीं हो सकता है। सिंघवी ने कहा कि ये अयोग्यता का मामला है इस्तीफे का नहीं। सिंघवी ने कहा कि आप अपने पुराने आदेश वापस ले लीजिए। हम विधायकों की अयोग्यता और इस्तीफे पर कल तक फैसला लेंगे।