डा. वेद प्रताप वैदिक
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन को लेकर 13 विरोधी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया है। उनका कहना है कि इन मशीनों ने धांधली मचा रखी है। उसी के कारण भाजपा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत गई। अब दिल्ली में हो रहे स्थानीय चुनावों को लेकर भी इसी तरह की आशंकाएं जाहिर की जा रही हैं। इन विरोधी नेताओं ने गोरक्षकों और रोमियो-बिग्रेड के बारे में भी राष्ट्रपति से शिकायत की है।
इन नेताओं से कोई पूछे कि इन तीनों मामलों में राष्ट्रपति क्या कर लेंगे? ज्यादा से ज्यादा वे यह कर सकते हैं कि संबंधित सरकारों की तरफ इन ज्ञापनों को बढ़ा दें। मतदान मशीनों के मुद्दे की हवा तो पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने ही निकाल दी है। अमरिंदर ने कहा है कि यदि इन मशीनों में हेरा-फेरी की गई होती तो वे आज मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कैसे बैठे होते? उस पर अकाली ही जमे रहते। कांग्रेस को पंजाब, गोवा और मणिपुर में भाजपा से ज्यादा सीटें कैसे मिल गईं? वहां भी उप्र जैसा हाल क्यों नहीं हुआ?
अपनी हार को मशीनों के मत्थे मढ़ कर ये दल अपनी जगहंसाई करवा रहे हैं। 2009 में भी इसी तरह के आरोप लगे थे लेकिन आज तक कोई भी इसके ठोस सबूत पेश नहीं कर सका। चुनाव आयोग ने चुनौती दी है कि मतदान मशीनों में कोई छेड़छाड़ करके दिखाए।
जहां तक तथाकथित गोरक्षकों द्वारा किए जा रहे जुल्मों और ठगी का सवाल है, सरकार और भाजपा ने उनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन नहीं किया है, बल्कि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की है। इसी प्रकार रोमियो-बिग्रेड को लेकर जहां भी पुलिस या लोगों ने अतिरंजना की है, उन्हें वर्जित किया गया है। विरोधी दलों को चाहिए कि वे अपने कार्यकर्त्ताओं को भी सक्रिय करें। उन्हें केवल वोट और नोट कबाड़ने का साधन न बनाएं।
यदि सभी दलों के कार्यकर्ता गोवध, शराबखोरी, रिश्वतखोरी, सार्वजनिक दुराचरण और सरकारी लापरवाही के खिलाफ सक्रिय हो जाएं तो शासन का बोझ अपने आप हल्का हो जाएगा और समाज के वातावरण में जबर्दस्त परिवर्तन भी दिखाई पड़ेगा। ये कार्यकर्ता जहां भी ज्यादती करें, वे चाहे सत्तारुढ़ दल के हों या विरोधी दल के, उनके खिलाफ कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए लेकिन हमारे सारे राजनीतिक दल समाज-सुधार के मामले में बिल्कुल आलसी हो गए हैं। उन्होंने सारी जिम्मेदारी नौकरशाहों और पुलिसवालों पर डाल दी है। हमारे नेता समझते हैं कि बयान और ज्ञापन देकर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है।