झारखंड
समाज में सुधार लाने में पत्रकारिता का अहम योगदान : डॉ अशोक प्रियदर्शी
By Deshwani | Publish Date: 13/5/2017 5:14:14 PMरांची। बाखबर-बेखबर झारखंड की संपूर्ण पत्रकारिता पर नजर रखती है। इसमें झारखंड की पत्रकारिता को श्रम और क्रम में रखा गया है। यह बातें शनिवार को साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी ने कहीं। प्रियदर्शी रांची विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर मिथिलेश सिंह की झारखंड की पत्रकारिता पर लिखी गयी पुस्तक बाखबर-बेखबर के विमोचन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में लेखक की मेहनत दिखती है। वहीं कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ रमेश कुमार पांडेय ने कहा कि मिथिलेश की लेखनी में दम है। इन्होंने पुस्तक लेखन में मौलिक और सर्जनात्मक कार्य किया है। उन्होंने कहा कि समाज के क्षरण के दौर में जो कुछ भी बचा है, वह अखबारों और पत्रकारों में ही बचा है। समाज में सुधार लाने में पत्रकारिता का अहम योगदान है।
वरिष्ठ पत्रकार बलबीर दत्त ने कहा कि वर्ष 2020 तक 20 लाख मीडिया प्रोफेशनल्स की जरूरत होगी और पत्रकारिता में सफल होने के लिए भाषा पर मजबूत पकड़ जरूरी है। पत्रकारिता में करियर बनाने की इच्छा रखनेवाले युवक यह समझें कि पत्रकारिता में दीवानापन होना भी जरूरी है। वहीं दूरदर्शन के निदेशक प्रमोद झा ने कहा कि छोटे-छोटे मुद्दों और पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तियों को इसमें जगह मिली है, यही इस कृति की उपादेयता है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में लोगों का आकर्षण इसलिए है क्योंकि इसमें मानवीय संवेदनाओं को जगह मिलती है। सच को दिखाने के चुनौती हमेशा पत्रकारों के सामने रहेगी और यही उनका कर्तव्य है।
मौके पर कथाकर रणेंद्र ने कहा कि झारखंड की पत्रकारिता की बात बिना बाखबर-बेखबर के पूरी नहीं हो सकती। मुख्यधारा की पत्रकारिता में गरीबों की जगह बहुत न्यून है। वहीं प्रभात खबर के संपादक अनुज कुमार कुमार सिन्हा ने कहा कि अखबार का काम वाचडॉग का है। पर जिस तेजी से मीडिया में कॉरपोरेट का दखल बढ़ रहा है, उससे लगता है कि मीडिया पर दबाव आनेवाले दिनों में और बढ़ेगा। वहीं किताब के लेखक डॉ मिथिलेश सिंह ने कहा कि मैंने इस किताब के माध्यम से साहित्यिक और विकास पत्रकारिता पर अपनी समझ को शेयर किया है। लोकार्पण समारोह में सन्मार्ग के प्रधान संपादक वैजनाथ मिश्र ने कहा कि मिथिलेश की पुस्तक उनका भगीरथ प्रयास है।
उन्होंने कहा कि इसे पत्रकारिता के पाठयक्रम में अनिवार्य किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में संकट इसलिए बढ़ा है क्योंकि संपादकों का लगातार अवमूल्यन हुआ है और अब संपादक सीईओ में तब्दील हो गये हैं। लोकार्पण समारोह में पत्रकार सुधीर पाल ने कहा कि पत्रकारिता में बाजार का प्रभाव बढ़ने के कारण रीजनल अखबारों के सामने संकट बढ़ा है। आज पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ा खतरा यह है कि पत्रकारिता सच बोलने का साहस खो रही है। कार्यक्रम में हिन्दी विभाग के एचओडी डॉ जंगबहादुर पांडेय, डॉ अरुण कुमार, डॉ हीरानंदन प्रसाद और अन्य ने विचार रखें। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में हिन्दी विभाग के विद्यार्थी और गणमान्य लोग मौजूद थे।