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झारखंड
झारखंड में जमीन तलाशने में जुटा है राजद-जदयू
By Deshwani | Publish Date: 12/6/2017 4:55:30 PM
झारखंड में जमीन तलाशने में जुटा है राजद-जदयू

रांची, (हि.स.)। झारखंड में विपक्ष की एकता के प्रयासों के साथ ही राजद और जदयू फिर से अपना वजूद कायम करने में जुट गये हैं। चारा घोटाले के एक मामले में बीते दिनों रांची आये राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव अपने प्रवास के दौरान गैर भाजपा दलों को विपक्षी एकता का पाठ पढ़ा गये। इस दौरान उन्होंने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय से अलग-अलग मिलकर बातचीत की। लालू ने कहा है कि झारखंड में भी बिहार की तर्ज पर महागठबंधन बनेगा। इस सिलसिले में 14 जून के बाद वह फिर रांची आयेंगे और सभी विपक्षी दलों के नेताओं से बात करेंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि भाजपा के नेतृत्ववाली केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ नवंबर में वह रांची में एक बड़ी रैली करेंगे। इसमें सभी विरोधी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया जायेगा। 

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इधर झारखंड में सक्रिय हो गये हैं। नीतीश एक महीने के अंदर दो बार झारखंड का दौरा कर गये। रविवार को उन्होंने बतौर मुख्य अतिथि झाविमो की रैली को संबोधित किया। इसके पहले 17 मई को नीतीश ने रांची में आदिवासी सेंगेल अभियान की रैली को संबोधित किया था। इन रैलियों में नीतीश ने झारखंड सरकार की जनविरोधी नीतियों खासकर सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ सभी दलों और मंचों को एकजुट होने की नसीहत दी थी। दरअसल, झारखंड के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में बिहार में महागठबंधन के दो प्रमुख घटक राजद और जदयू का जनाधार लगातार खिसकता रहा है। वे फिर से यहां खड़ा होने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। 
एकीकृत बिहार में नौ विधायकों के साथ झारखंड में धाक जमाये रखनेवाला राजद 2005 में सात और 2009 में पांच सीटों पर सिमट गया। 2014 के विधानसभा चुनावों में तो उसका खाता भी नहीं खुला। यही हाल जदयू का है। 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू को पांच सीटें मिली थी। यह संख्या 2009 में घटकर दो पर सिमट गयी। 2014 में इसका सूपड़ा ही साफ हो गया। अब दोनों फिर से जनाधार बढ़ाने की जुगत में हैं। इसके लिए जदयू ने अपना कार्यालय खोला है वहीं राजद ने प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि शराबबंदी को लेकर जहां जदयू को जनता का समर्थन मिला है, वहीं राजद भी जनता की सहानुभूति बटोरने मेें सफल रहा है। यह एकजुटता अगर महागठबंधन में तब्दील होती है तो वर्ष 2019 के चुनाव में विपक्ष भाजपा को चुनौती दे सकता है।
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