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झारखंड
सिद्धस्थली भी है आरके मिशन टीबी सैनेटोरियम
By Deshwani | Publish Date: 30/5/2017 4:25:39 PM
सिद्धस्थली भी है आरके मिशन टीबी सैनेटोरियम

रांची,  (हि.स.)। तुपुदाना के डुंगरी गांव में स्थित सबसे पुराना रामकृष्ण मिशन टीबी सैनेटोरियम केवल तपेदिक के मरीजों का इलाज ही नहीं करता बल्कि यह एक सिद्धस्थली भी है। यहां के लाेगों का कहना है कि यह एक जाग्रत स्थल है। कई स्वामियों ने यहां के जंगल में ध्यान साधना की है। इसी आश्रम में स्वामी शान्तानन्द जी की कुटिया है। कुटिया के फाटक के बगल में लिखे आलेख के अनुसार स्वामी शान्तानन्द जी, मां शारदा देवी के प्रत्यक्ष शिष्य थे। वे इस कुटिया में 1951 से 1964 तक रहे। जब 1956 में ये सैनेटोरियम वित्तीय परेशानियों से गुजर रहा था, तब स्वामी शान्तानन्द जी महाराज ने अपनी प्रार्थना से मां शारदा देवी का आह्वान किया। मां ने दर्शन दे के आश्वासन दिया कि चिंता मत करो, पैसा आ जायेगा। उसके कुछ दिन बाद कोलकाता के एक बैरिस्टर निर्मल कुमार डे ने अपने पूर्वजों की सारी जायदाद इस आश्रम को निर्विघ्न रूप से चलने के लिए दान कर दी।
यहां वृद्धों के रहने का आश्रम भी है। यहां की जगधात्री पूजा प्रसिद्ध है। इनका अपना डेरी फार्म और जल शोधक संयंत्र भी है। यहां पर एक स्कूल भी है जिसमें बच्चों को पूर्णतावादी शिक्षा का ज्ञान दिया जाता है जिसमें गीता का पाठ बच्चों से कराया जाता है। यहां स्वामी बुद्धदेवानन्दा महाराज जी बैटरी चलित ऑटो से आश्रम का भ्रमण करते हैं। यहां के जंगल व हरियाली शांति के साथ सुकून देते हैं। इसके बनने की शुरुआत 1919 में हुई। 1951 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस टीबी सैनेटोरियम का उद्घाटन किया। स्वामी बुद्धदेवानन्दा महाराज जी के अनुसार शुरू में 32 रोगियों का बिस्तर था अब यहां 120 रोगियों के रहने की व्यवस्था है। उस क्षेत्र के लगभग 600 गांव इस टीबी सैनेटोरियम पर निर्भर हैं। यह 283 एकड़ में फैला हुआ है। इस जगह को उस वक़्त के जमींदार लाल हलधर नाथ शाहदेव ने स्वामी सत्यानंद जी को दान किया था।
गौरतलब है कि सत्यानंद जी के घर के लोग तपेदिक से मर गए थे जिसके बाद उन्होंने तपेदिक के रोगियों के इलाज का बीड़ा उठाया और रांची चले आये। रांची की जलवायु तपेदिक के रोगियों के लिए अच्छी मानी जाती थी। इस टीबी सैनेटोरियम में उस वक़्त पूरे भारत से लोग इलाज कराने आते थे। यहां की ओपीडी में साल भर में 10,000 रोगियों को देखा जाता है। विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार भारत में विश्व के सबसे ज्यादा तपेदिक के रोगी है। आज यहां बिहार, झारखंड तथा ओडिशा से आकर लोग इलाज कराते हैं। इस आश्रम के बीच से एक नदी बहती है जिसका पुराना नाम नाहक सिंघा था जो बाद में चल के नहर कटा हो गया। ये नदी आगे जाकर स्वर्णरेखा नदी से मिल जाती है। इस नदी पर 1956 में दामोदर वैली कारपोरेशन ने बांध बनवाया। ये बांध आज भी है तथा इसकी अभी सफाई चल रही है। आश्रम के अंदर साल के पेड़ों का जंगल है और छोटी छोटी पहाड़ियां हैं जो जगह को और भी मनोरम बनाती है।

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