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झारखंड में संघर्ष ने दिलाया था सत्यार्थी को नोबेल
By Deshwani | Publish Date: 24/5/2017 5:23:10 PM
झारखंड में संघर्ष ने दिलाया था सत्यार्थी को नोबेल

रांची, (हि.स.)। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बचपन बचाओ आंदोलन के प्रणेता कैलाश सत्यार्थी को यह पुरस्कार दिलाने में झारखंड में उनके संघर्ष के दिनों की अहम भूमिका रही है। डॉ सत्यार्थी का झारखंड से गहरा संबंध भी रहा है। वह बीते तीन दशक से अविभाजित बिहार और झारखंड में बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिए काम कर रहे हैं। उनका झारखंड के बच्चों, यहां की जनता, सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यकर्ताओं से घनिष्ठ संबंध रहा है। नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद वह पहली बार झारखंड की राजधानी रांची आये थे। उन्होंने यहां कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने नोबेल पुरस्कार का श्रेय झारखंड को दिया। 

डॉ सत्यार्थी ने मंगलवार को सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत विषय पर सेमिनार में कहा कि उन्हें जो नोबेल पुरस्कार मिला है, इसका श्रेय झारखंड को जाता है। उनका कहना था कि झारखंड की धरती पर वर्षों पहले बचपन बचाने के लिए नहीं घूमा होता तो शायद यह सम्मान नहीं मिलता। दरअसल, बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग पर रोक लगाने तथा शिक्षा का मौलिक अधिकार सुनिश्चित कराने के लिए डॉ सत्यार्थी ने कई यात्राएं की हैं। लेकिन पहली यात्रा उन्होंने 1990 में झारखंड के नगर उंटारी से दिल्ली तक की थी। उसमें हजारों लोग शामिल हुए थे। अस्सी के दशक में उन्होंने पलामू में बंधुआ मुक्ति चौपाल का आयोजन किया था। इसमें पूरे देश से सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हुए थे। 
इसी चौपाल ने बंधुआ मजदूरी जैसे गंभीर मुद्दे पर पूरे देश का ध्यान खींचा था। 1981 में बचपन बचाओ आंदोलन की शुरुआत करने के बाद सत्यार्थी ने 1984 में पलामू जिले के चैनपुर में बंधुआ मुक्ति चौपाल का आयोजन किया था। उसमें महाश्वेता देवी और स्वामी अग्निवेश सहित कई लेखक पत्रकार और समाजसेवियों का जुटान हुआ था। उस चौपाल में बंधुआ मजदूरी के साथ बाल बंधुआ मजदूरी का मुद्दा प्रमुखता से उठा था। पाटन थाना के छेछनी गांव से मुक्त कराकर बाल बंधुआ मजदूरों को उस चौपाल में लाया गया था। गढ़वा जिले के कालीन कारखानों में काम करनेवाले बाल बंधुआ मजदूरों का यह मामला केवल देश में ही नहीं बल्कि दुनिया में सुर्खियों में छा गया था। 
गौरतलब है कि डॉ सत्यार्थी ने बच्चों के शिक्षा के अधिकार को लेकर झारखंड में अभियान चलाया था। रांची के टाउन हॉल में 90 के दशक में राइट टू एजुकेशन पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। डॉ सत्यार्थी के आंदोलन के बाद ही शिक्षा का अधिकार कानून बना था। इधर, रांची के प्रोजेक्ट भवन में मंगलवार को आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि नोबेल पुरस्कार मेरी जिंदगी की इबारत का कॉमा भर है। इसमें फुल स्टॉप तब आयेगा जब दुनिया के सारे बच्चे आजाद होंगे। भारत की धरती पर एक अरब समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन भारत एक अरब समाधानों की मां भी है। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों पर यौनाचार और हिंसा की रोकथाम के लिए वह कन्याकुमारी से 15 अगस्त को सुरक्षित बचपन-सुरक्षित भारत, यात्रा निकालेंगे। यात्रा दिवाली से एक दिन पूर्व समाप्त होगी।
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