चडीगढ़। हरियाणा की छात्र राजनीति में अब मनोहरलाल सरकार की परीक्षा होगी। राज्य के मुख्य विपक्षी दल इनेलो की छात्र विंग इनसो के प्रयासों से राज्य में छात्र संघ के चुनाव तो बहाल हो गए, लेकिन इन चुनाव को बिना हिंसा और खून-खराबे के संपन्न कराना प्रदेश सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। करीब 22 साल पहले चौ. बंसीलाल की सरकार ने 1996 में छात्र संघ के चुनाव सिर्फ इसलिए बंद किए थे, क्योंकि कॉलेज व यूनिवर्सिटी कैंपस युवाओं के खून से रंग चुके थे।
छात्र संघ के चुनाव को राजनीति की पाठशाला माना जाता है। हरियाणा में छात्र राजनीति के कई सुखद पहलू हैैं तो दागदार पहलू भी कम नहीं हैैं। करीब एक दर्जन छात्र नेताओं की हत्या और हर जिले में मुकदमेबाजी के मामले किसी से छिपे नहीं हैं।
भाजपा ने वर्ष 2014 में अपने चुनाव घोषणा पत्र में छात्र संघ के चुनाव बहाल करने का वादा किया था। अब 2018 है। साढ़े तीन साल में मनोहर सरकार इनसो प्रधान दिग्विजय सिंह चौटाला के अनशन के बाद छात्र संघ के चुनाव कराने को राजी हो गई, मगर असली परीक्षा सितंबर 2018 में होने वाले छात्र संघ के चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने को लेकर होगी।
भाजपा सरकार ने छात्र संघ के चुनाव के प्रारूप की सिफारिश के लिए जो कमेटी बनाई थी, उसमें गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय (हिसार) के कुलपति डा. टंकेश्वर प्रसाद, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केसी शर्मा, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय (रोहतक) के कुलपति डा. वीके पुनिया और रेवाड़ी के मीरपुर के इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार मदन लाल गोयल शामिल हैैं। इस कमेटी ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों के आधार पर चुनाव कराने की रिपोर्ट दी है, जिसके आधार पर सरकार चुनाव कराने को तैयार हुई है।
केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हरियाणा की छात्र राजनीति की देन हैैं। हरियाणा के दो बड़े छात्र नेताओं धर्मवीर सिंह (भिवानी से मौजूदा भाजपा सांसद) और प्रो. छत्रपाल (कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए) ने दो बड़े राजनेताओं पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल और पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल को हराया। सुषमा स्वराज, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सिंह सुरजेवाला के अलावा पूर्व मंत्री देवेंद्र शर्मा, पूर्व मंत्री निर्मल सिंह, पृथ्वी सिंह, सीपीएम नेता इंद्रजीत सिंह, पूर्व सीपीएस राव दान सिंह, पूर्व मंत्री व विधायक कर्ण सिंह दलाल, छात्र नेता संपूर्ण सिंह और पूर्व सांसद जयप्रकाश जेपी छात्र राजनीति की देन हैं।
1970 के बाद प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कई कत्ल हुए। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मक्खन सिंह व जसबीर सिंह, एमडीयू रोहतक में देश के इतिहास में पहली बार दो बार चुनाव जीतने वाले देवेंद्र कोच, रवींद्र बालंद, सुभाष चंद रोहिला की हत्या हुई। हिसार में पहलवान हत्याकांड भी सुर्खियों में रहा। कोई जिला ऐसा नहीं था, जहां मुकदमेबाजी नहीं हुई। इसलिए सरकारें छात्र चुनाव से डरती रहीं।