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मुख्यमंत्री ने 'रमन के गोठ' में पीएससी उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को दी बधाई
By Deshwani | Publish Date: 15/1/2018 12:29:23 PM
मुख्यमंत्री ने 'रमन के गोठ' में पीएससी उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को दी बधाई

रायपुर । मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में राज्य के युवाओं की सफलता पर खुशी प्रकट की है। उन्होंने कहा, 'मुझे इस बात का संतोष है कि राज्य सरकार ने लोक सेवा आयोग की कार्य प्रणाली को पटरी पर लाकर सैकड़ों युवाओं को उनकी प्रतिभा के अनुरूप पद दिलाया है। इतना ही नहीं, बल्कि चाहे पीएससी हो, व्यापम हो या अन्य विभागीय सेवाएं, सभी जगह सरकार ने बहुत बड़े पैमाने पर नियुक्तियां की हैं।' 

डॉ सिंह ने आकाशवाणी के रायपुर केन्द्र से रविवार को अपने मासिक रेडियो प्रसारण ‘रमन के गोठ’ में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की राज्य सेवा परीक्षा 2016 के नतीजों में सफल सभी युवाओं को बधाई दी। उन्होंने इस परीक्षा में बेटियों की सफलता का विशेष तौर पर उल्लेख किया है और इसके लिए उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि इन बेटियों ने बड़ा संघर्ष करके बड़ी सफलताएं हासिल की हैं और यह साबित कर दिया है कि वे किसी से कम नहीं है। पीएससी के टॉपरों में लाइन से तीन लड़कियां हैं और ‘टॉप-टेन’ में से छह लड़कियां हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैं सभी सफल युवाओं को बधाई देता हूं। विशेष तौर पर उन बेटियों का अभिनन्दन करता हूं, जिन्होंने बड़ा संघर्ष करके, बड़ी सफलताएं हासिल की हैं। बेटियां अब मैदान में उतरकर यह साबित कर रही हैं कि वे किसी से कम नहीं हैं। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि राजनांदगांव के पाण्डेय परिवार की बिटिया अर्चना ने तीन बार पीएससी दी और हर बार बेहतर पद पर चुनी गई और इस बार टॉप करके अपने मनचाहे डिप्टी कलेक्टर के पद पर पहुंच गई।' अर्चना तीन बहनों में सबसे बड़ी है। उसकी एक बहन सीए कर रही है और दूसरी एमबीए। पाण्डेय परिवार नारी सशक्तीकरण की मिसाल बन गया है। दूसरे स्थान पर आने वाली दिव्या वैष्णव ने 2014 में 11वीं रैंक पाई थी, लेकिन संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा। फिर परीक्षा दी, इस बार ‘टाप-दो’ में रही और डिप्टी कलेक्टर बन गई। दिव्या की बहन भी डॉक्टर है। डॉ रमन सिंह ने कहा दीप्ति वर्मा की कहानी भी बड़ी रोचक है। डेंटल सर्जन यानी दांतों की डॉक्टर, दीप्ति ने शादी के बाद पीएससी की तैयारी शुरू की। उसके पति और ससुराल वालों ने संबल दिया। डेंटिस्ट्री और कहां नया क्षेत्र, नए ढंग की पढ़ाई और तैयारी, लेकिन उसकी लगन और मेहनत ने पहले ही प्रयास में उसे डिप्टी कलेक्टर बना दिया। सौमित्र प्रधान और देवेन्द्र कुमार प्रधान दोनों इंजीनियर हैं। लेकिन इन्होंने प्रशासनिक सेवा की जिद ठानी और सफल हुए। देवेन्द्र के पिता की तबियत खराब होने के कारण पढ़ाई में रूकावट भी आई। लेकिन सारी बाधाओं को पार करते हुए देवेन्द्र डिप्टी कलेक्टर का पद पाने में सफल हुए। कई बार हमारे युवा अपनी विपरीत परिस्थितियों का हवाला देकर विचलित होने लगते हैं। हिम्मत हारने लगते हैं। उनके लिए मैं दो उदाहरण देना चाहता हूं, कि कैसे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकलता है। बीजापुर के उसूर गांव को छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित गांव में गिना जाता है।
बीजापुर में शिक्षक के पद पर काम करने वाले दुर्गम नागेश और मीना नागेश की बिटिया प्रीति ने शिक्षा से अपना जीवन संवारने की जिद की। वह तमाम विपरीत परिस्थितियों से लड़ती रही और अपना लक्ष्य पाने के लिए डटी रही, और आखिर उसूर गांव की बेटी प्रीति का चयन डिप्टी कलेक्टर पद के लिए हो गया है। माओवादी प्रभावित अंचल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चों ने अपनी परिस्थितियों से लड़ते हुए जिस तरह जीत और विकास का परचम फहराने का हौसला दिखाया है, उसको मैं सलाम करता हूं। प्रीति नागेश बीजापुर ही नहीं, बल्कि समूचे आदिवासी अंचल के युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई है। एक और कहानी रायपुर की एक बस्ती रामनगर से आती है। ये कहानी है श्रीधर पांडा की। पिता नीलकंठ का छोटा सा भोजनालय है, जिसमें रोज आठ घण्टे काम किए बिना परिवार की रोजी-रोटी नहीं चलती। सब्जी काटना, खाना बनाना, ग्राहकों को परोसना, पानी पिलाना और यहां तक कि, बर्तन मांजने तक का काम श्रीधर ने किया है। श्रीधर 2013 और 2014 में बुरी तरह पिछड़ गया था, जिसके कारण उसकी रातों की नींद भी छिन गई थी। एक समय पर तो उसने मन बना लिया था कि पिता के काम में ही हाथ बंटाना है। लेकिन उसका मन हुआ कि एक और कोशिश सही ढंग से की जाए। इस तरह उन्होंने बाजी जीत ली। 
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