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दुनिया में मिलते हैं हमारी संस्कृति के पदचिन्ह : डॉ. मोहन भागवत
By Deshwani | Publish Date: 5/1/2018 2:11:30 PMउज्जैन, (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शुक्रवार को उज्जैन में शैव महोत्सव के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी संस्कृति के पदचिन्ह दुनियाभर में मिलते हैं। विष पीकर अमर होने वाला देश भारत ही हो सकता है। हमारा कर्तव्य बनता है कि दुनिया को राह दिखाने का काम करें। शिव का पहला नाम रूद्र है, रूद्र का अर्थ है शक्ति। बिना शक्ति के शिव होने का कोई मतलब नहीं है। दुनिया की सारी दुष्ट शक्तियों को भस्म करने वाले रूद्र ही शिव हैं। हम लोगों को शक्ति की उपासना करना पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि शारीरिक ताकत ही सबकुछ नहीं होती, उसके साथ आन्तरिक ताकत भी होना आवश्यक है। हमको भौतिक बल से साथ आध्यात्मिक बल-सम्पन्न संवेदनशील समाज बनाना पड़ेगा। दक्षिण में शिव की भभूति लगाकर बिना स्नान के भी चल सकता है। मन में कोई विकार नहीं है तो शिव का प्रतीक भस्म लगाने से तन और मन पवित्र हो जाता है। शिव भगवान अत्यन्त शातिपूर्वक बर्फीले टीले पर बैठकर आराधना पूरी करते हैं और वहीं से दुनिया को देखते हैं। शिव के समान आन्तरिक एवं बाह्य पवित्रता का वरण करने वाले को ही रूद्र की शक्ति प्राप्त होती है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय व व्यक्तिगत चरित्र शिव के समान होना चाहिये। शांति के लिए युद्ध नहीं करना पड़ता है। इसके लिये सम्पूर्ण स्वार्थ का त्याग करना होता है। हम लोगों का दायित्व है कि हम शिव को समझें। सम्राट विक्रमादित्य ने 2100 वर्ष पूर्व शैव महोत्सव प्रारंभ किया था। आज से आयोजित होने वाला शैव महोत्सव आम जन में शिवत्व की प्रेरणा जगाएगा।
डॉ. भागवत ने कहा कि भगवान राम ने उत्तर से दक्षिण को, भगवान कृष्ण ने पूर्व से पश्चिम को जोडऩे का काम किया किन्तु भगवान शिव सम्पूर्ण भारत के कण-कण में विद्यमान है। हिमालय के दोनों ओर सागर तट तक फैली हुई भूमि में शिव का पूजन किया जाता है। सम्पूर्ण दुनिया को जीवन जीने की कला सिखाने वाली भारतीय संस्कृति विश्वव्यापी है। उन्होंने कहा कि कई वर्षो पूर्व जब वे केन्या गए थे तब वहां उन्होंने भगवान शिव के स्वयंभू लिंग के दर्शन किए। इसी तरह तंजानिया और केन्या के बीच फैले विक्टोरिया सरोवर के किनारे भी शिव के दर्शन हुए।