बुरहानपुर, (हि.स.)। प्रदेश की महिला-बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने कहा है कि महिलाओं के लिये समानता का आशय पुरुषों जैसा होना नहीं हैं, अपितु महिलाओं का अपना विशिष्ट स्थान है, जिसे समाज भलि-भाँति स्वीकार करता है। महिलाओं कि प्राथमिकता को उनकी कमजोरी नहीं समझना चाहिए। यदि महिला, मातृत्व संबधी कारणों से कुछ गतिविधियों को विशेष अवधि में कम समय देती है तो यह उनकी कमजोरी नहीं, अपितु उनके विशेष अधिकार है, जिसे उनकी प्राथमिकता के प्रति संवेदनशीलता के रूप में देखा जाना चाहिए। हमें हमारे परिवेश और समृद्ध तथा स्वस्थ परम्परा के अनुसार सोच का नजारिया विकसित करना होगा। हमारे अतीत को अंधकारमय बताने वाले औपनिवेशिक सोच से मुक्त होना बड़ी चुनौती है।
श्रीमती चिटनिस ने यह बातें रविवार को देर शाम मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस पर महिलाओं के अधिकार-मानवाधिकार हैं विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों में भय व्याप्त करने के लिये कानून जरूरी है। महिला अधिकारों और महिलाओं की सुरक्षा तथा सशक्तिकरण के लिये बनाये गये कानून की जानकारी देने के लिये प्रदेश की 92 हजार ऑगनवाड़ी में गठित शौर्या दलों के माध्यम से विशेष अभियान चलाया जाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के यह स्पष्ट निर्देश हैं कि थाने में पहुँचने वाली हर पीडि़त महिला की रिपोर्ट दर्ज हो।
न्यायाधीश जे.पी. गुप्ता ने कहा कि यूएनओ ने 2030 तक महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने की समय-सीमा निर्धारित की है। उन्होंने विधिक प्रक्रिया तथा अधिकारों की जानकारी का विस्तार ग्रामीण क्षेत्र विशेष कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति बाहुल्य क्षेत्रों में करने की आश्यकता बताई। गुप्ता ने कहा कि अदालतों में 40 प्रतिशत मामले महिला उत्पीडऩ से संबंधित हैं जिनमें दहेज और घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों का प्रतिशत बहुत अधिक है। गुप्ता ने कानूनों और प्रक्रिया को व्यवहारिक बनाने की आवश्यकता भी बताई।
मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष मनोहर मनतानी ने कहा कि महिला अपराध में वृद्धि सरकार के साथ-साथ समाज के लिये भी चिंता का विषय है। इस दिशा में हम सब को सहभागी होना होगा। व्यक्तिगत और समाज की सोच बदलने की जरूरत है। महिला उत्पीडऩ पर विरोध जताने और चुप्पी तोडऩे की प्रवृत्ति विकसित करनी होगी। उन्होंने महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के प्रकरणों के शीघ्र निराकरण के लिए स्थाई व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता बताई। महिलाओं द्वारा शिक्षा निरंतर नहीं रख पाने, लिव इन रिलेशनशिप, पीसीपीएनडीटी एक्ट के संबंध में भी उन्होंने अपने विचार रखे।
मानव अधिकार आयोग के सदस्य सरबजीत सिंह ने कहा कि अभिभावकों की भूमिका, बालक-बालिकाओं को समान वातावरण देने और बालिकाओं में विश्वास की भावना विकसित करने की आवश्यकता है। महिला अधिकारों के संबंध में उन्होंने कहा कि इस दिशा में बने कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन समानता और समाज के सोच के तरीके को बदलने के लिए कारगर सिद्ध होगा। प्रमुख सचिव महिला-बाल विकास जे.एन. कंसोटिया ने कहा कि महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा, हिंसा से रक्षा के साथ-साथ उनकी उच्च शिक्षा, पोषण से जुड़े मुद्दों तथा समान पारिश्रमिक के क्षेत्र में विशेष पहल करने की आवश्यकता है।