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मौसम के मिजाज ने बिगाड़ा खेती का हाल, अन्ना पशुओं पर भी प्रशासन का नहीं कोई जोर
By Deshwani | Publish Date: 29/11/2017 5:20:54 PMउरई, (हि.स.)। बारिश न होने की वजह से खरीफ की फसल का नुकसान सहने वाले किसानों को उम्मीद थी रबी की फसल उन्हें काफी हद तक सहारा दे देगी। लेकिन मौसम में आये बदलाव के चलते अंकुरण के स्तर से ही किसानों को फिर बिगाड़ होने का अंदेशा होने लगा है।
अक्टूबर के महीने में जल स्तर काफी नीचा हो जाने से पलेवा के दौरान ही किसानों के पैरों तले जमीन खिसकने लगी थी। माधौगढ़ तहसील तक में हालत यह थी कि डीजल इंजन को गड्ढे में रखने पर पानी निकल पा रहा था। इसके बाद नहर के संचालन और तपिश में आई कमी की वजह से जल स्तर में तो कुछ सुधार आ गया है लेकिन गर्मी अभी भी नवजात फसलों के लिहाज से बहुत ज्यादा है।
किसानों ने बताया कि पहले मसूर और चना की बुबाई बिना पलेवा के ही हो जाती थी लेकिन इस बार हालत बदली हुई है। पलेवा के बाद बुबाई करने के बावजूद गर्मी के कारण फसल बढ़ नहीं पा रही जबकि पानी भी लगाया जा चुका है। उधर, इस इलाके में इफरात में होने वाली हरी मटर में नाम मात्र की फलियां आ रही हैं जिससे किसान को लागत के बराबर भी उपज न निकलने की आशंका सताने लगी है।
ऊपर से अन्ना पशु प्रथा पर प्रशासन कोई रोक नहीं लगा पा रहा है। डीएम ने पशुओं को छुट्टा छोड़ने वालों के खिलाफ थानों में मुकदमा दर्ज कराने और तहसील स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दर्ज मुकदमों की लगातार समीक्षा के जो आदेश दिये थे, उनका कोई असर देखने को अभी तक नहीं मिला है। जिले में आज तक किसी एक मवेशी वाले के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ। अन्ना पशुओं का आतंक चरम सीमा पर होने की वजह से भीषण ठंड में किसानों को पूरी रात फसलों की रखवाली करते गुजारनी पड़ती है। एक किसान ने बताया कि बदहाल स्थितियों की वजह से ही खेती की नगद जुताई का रेट गिरकर आधा रह गया है। अगर यह दुर्दशा बरकरार रही तो अगले साल बड़ी संख्या में किसान खेती से विरत हो जाएंगे।