लखनऊ, (हि.स.)। सरसों की खेती लगभग हर जगह होती है। खेती अधिकतर तेल के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में की जाती है तथा शहरी क्षेत्रों के आस-पास हरी सब्जी के रूप में पैदा की जाती है।
सरसों की फसल के लिये ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। यह फसल जाड़ों में लगाई जाती है। बुवाई के समय तापमान 30 डी.सें.ग्रेड सबसे अच्छा होता है। अधिक ताप से बीज का अंकुरण अच्छा नहीं होता है। ये फसल पाले को सहन कर सकती है।
इस फसल को 18 से 25 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। सरसों की फसल के लिए फूल आते समय वर्षा, अधिक आर्द्रता एवं वायुमण्ड़ल में बादल छायें रहना अच्छा नहीं रहता है। अगर इसस प्रकार का मौसम होता है तो फसल पर माहू या चैपा के आने का अधिक प्रकोप हो जाता है।
सरसों की खेती रेतीली से लेकर भारी मटियार मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन बलुई दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को सहन कर सकती है।
सरसों के लिए भुरभुरी मृदा की आवश्यकता होती है। इसके लिए खरीफ की कटाई के बाद एक गहरी जुताई करनी चाहिए तथा इसके बाद तीन चार बार देशी हल से जुताई करना लाभप्रद होता है। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को तैयार करना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में वर्षा के पहले जुताई करके खरीफ मौसम में खेत पड़ती छोड़ना चाहिए, जिससे वर्षा का पानी का संरक्षण हो सके। जिसके बाद हल्की जुताइयां करके खेत तैयार करना चाहिए।
यह हैं उन्नत किस्में की बीज आर एच 30 टी 59 (वरूणा), पूसा बोल्ड बायो 902 (पूसा जयकिसान), वसुन्धरा (आर.एच. 9304), अरावली (आर.एन.393जगन्नाय, (बी. एस. एल.5), लक्ष्मी (आर.एच. 8812), स्वर्ण ज्योति (आर. एच. 9820), आशीर्वाद (आर. के. 01से03)।
पौधों की संख्या अधिक हो तो बुवाई के 20 से 25 दिन बाद निराई के साथ छटाई कर पौधे निकालने चाहिए तथा पौधों के बीच 8 से 10 सेन्टीमीटर की दूर रखनी चाहिए। सिंचाई के बाद गुड़ाई करने से खरपतवार अच्छी होगी।
सरसों की फसल के लिये देशी खाद की अधिक आवश्यकता होती है। देशी गोबर की खाद 20-25 ट्राली प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है तथा रासायनिक उर्वरकों की मात्रा नाइट्रोजन 60 किलो, डाई-अमोनियम फास्फेट 40 किलो, पोटाश 40 किलो तथा जिप्सम 60 किलो प्रति हेक्टर की दर से देना चाहिए।
इस बारे में कृषि विशेषज्ञ डा. एसके सिंह ने बताया कि सरसों की खेती किसानों को मुनाफा प्रदान करती है। इसको सही ढंग से सिंचित करने के साथ अच्छी देखभाल भी करना चाहिए। खासकर फूलों को खरपतवार से बचाने की अवश्यकता है।